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Tuesday, December 10, 2019

भूमंडलीकरण और समकालीन स्त्री कविता                  

भूमंडलीकरण का प्रभाव बहुत ही व्यापक होता है स यह हम सबको किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है। समाज के विभिन्न हिस्सों में इसका प्रभाव बहुत ही भिन्न - भिन्न तरह का होता है। कुछ लोग इसे नये अवसर के रूप में देखते है तो कई  लोगो की अजीविका के लिए यह हानि का कारण होता है। भूमंडलीकरण का प्रभाव अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त हमारे खान.पानए बोलचाल की भाषा, मनोरंजनए ज्ञान विज्ञान के साथ ही साहित्य पर भी देखने को मिलता है। प्रस्तुत शोध पत्र में भूमंडलीकरण के प्रभावों को स्त्री कविता के माध्यम से रेखांकित किया गया है। भूमंडलीकरण का ही प्रभाव है कि स्त्री रचनाकारो ने गुलामी और यातनाए शारीरिक और मानसिक पीडा, आह ! वेदना मिली विदाई से आगे बढकर गाँव,समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण संसार के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक समस्यायों को भी अपने लेखन का विषय बनाया है।
 प्रस्तावना:- भूमंडलीकरण एक विस्तृत संकल्पना हेतु प्रयुक्त एक शब्द है, इस शब्द के अनेक पर्याय प्रचलित है यथा- वैश्वीकरण, विश्वग्राम, संसारीकरण, जगतीकरण, सर्वव्यापीकरण, खगोलीकरण इत्यादि। परन्तु सर्वाधिक प्रचलित शब्द भूमंडलीकरण है। व्याकरणिक  पक्ष से इसका अर्थ हुआ कि जो भूमंडल नहीं है उसे भूमंडल बनाना है विभिन्न अकादमिक शास्त्र भूमण्डलीकरण केविभिन्न निहितार्थ रखते है यथा अर्थशास्त्र में यह आर्थिक आयामों, पूंजी, निजीकरण, उदारीकरण, बाजारवाद,प्रतियोगी परिवेश निर्माण तथा प्रौद्योगिकी परिवर्तन  आदि की विवेचना का संदर्भ है। राजनीतिशास्त्र में सरकारों कि बदलती भूमिकाए नए एवम् जन कल्याणकारी प्रशासनिक  तरीको से संदर्भित होता है। समाजशास्त्रियों के लिए यह सामाजिक एवम् सांस्कृतिक प्रभावो एवम् दुष्प्रभावों के अध्ययन का विषय है ससाहित्य में भूमंडलीकरण भाषा, घटना, विषय चयन आदि को प्रभावित करता है स वर्तमान में मानव जीवन के हर क्षेत्र में यह अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है स यह राष्ट्र संवाद की परिधि को लाँघकर जनसंवाद के चौराहे तक पहुँच गया है स  जहाँ हर ओर से वस्तुओ के साथ -साथ विचार भी आयात एवम् निर्यात किये जा रहे है। भूमंडलीकरण ने साहित्य के विषय क्षेत्र में सर्वाधिक घुसपैठ की है। अब साहित्य में राजाओए शासको की प्रसंशा भरे गीतों से ऊपर उठकर  सीधे तथा तीखे कटाक्ष प्रश्नों का दौर आ गया है -
इतिहास के कुछेक पंक्तियों पर उँगलियाँ फेरो 
          देखो, उस निरंकुश सत्ता को हमने 
          कब का ठुकरा दिया 
          ('मायालोक से बाहऱ'आरती) 
भूमण्डलीकरण ने बाजारवाद को बढावा दिया है आज हर वस्तु का बाजारीकरण होता जा रहा है। बाजार होते समाज में नारी शोषण का एक अलग ही रूप हमारे सामने आ रहा है एक समय था जब स्त्रियाँ घरो के अंदर यातना भोगती थी परन्तु भूमंडलीकरण के दौर में मीडियाए इंटरनेट के प्रयोग ने स्त्री को समस्त भूपटल पर शोषण का शिकार बना दिया है। मनीषा जैन 'बाजार'कविता में स्त्री शोषण का चित्र इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
चेचक के दानो सा 
फैल रहा है 
स्त्री के सारे शरीर पर 
बाजार 
 मीडिया पर बाजारवाद के ब?ते प्रभाव के कारण स्त्री अपनी भाव भंगिमा और अंगो का प्रदर्शन कर रही हैए इसके पीछे मजबूरी यह है कि   बाजार की माँग अधिक है क्यूंकि उपभोक्ता को आकर्षित करने का यही तरीका रह गया है स बीसवीं सदी में ग्राहक शब्द उपभोक्ता में बदल गया है स  हर व्यक्ति उपभोक्तावादी संस्कृति में मशीन बनकर रह गया है जो महिलायें पहले घर पर ही रहकर सिलाई, कढाई एवम् खाना पकाने कि कला तक ही सीमित थी आज वे भी कारखानों में नौकरी पर जाती हुई मिल रही है -
अब हर लडकी भेजी जा रही है 
          शिक्षा के कारखाने में 
          सीखने के लिए कमाने का हुनर 
          अर्थ युग में बढ रही है 
कमाऊ औरतो की माँग  
 ये औरते चलता-फिरता-बोलता 
कारखाना बन चुकी हैं 
 एक साथ कई उत्पाद पैदा करती 
एक बडी आर्थिक इकाई में बदल चुकी औरतें 
                        ('नौकरी पर जाती हुई औरते'सोनी पाण्डेय)
 भूमंडलीकरण के दौर में भारतीय संस्कृति पर एक भयावह बादल मंडरा रहा है। इसका प्रमुख कारण है  पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण स इस पश्चिमीकरण में भारतीय लोगों के खानपान, भाषा, घरों की सजावट, पहनावे आदि में परिवर्तन देखने को मिलते है परन्तु आतंरिक रूप से वे अभी भी परम्परागत- रुढिवादी सोच से बंधे हुए दिखते है स इसका ज्वलंत उदहारण है कन्या भ्रुणहत्या एवम् महिलाओं के प्रति संकीर्ण विचार।     
मेरा होना बहुमंजिली भवनों के 
       किसी फ्लैट में सहमी-सी
       प्रताडना सहने वाली 
       अंतत: जला देने वाली 
                ('आत्मसाक्षात्कार सा-कुछ,' नीरजा हेमेंद्र)
अतरू देखा जाये तो लोगों ने बाहरी तौर पर पश्चिम की संस्कृति को अपना लिया है परन्तु आतंरिक रूप से नही स भूमंडलीकरण सम्पूर्ण मानव जन के सुख एवम् हित के प्रयोजन को सामने रखता है,परन्तु यह कैसा सुख एवम् हित है जहाँ लोग अपनों के  ही हित से दुखी होते है।  लोगो के बीच संवेदनाएं मरती जा रही है। जहाँ पहले एक व्यक्ति के दु:ख में सम्पूर्ण गाँव शामिल हो जाता था वहां अब बहुमंजिला इमारतों में रहने वाले पडोसी के बारे में भी जानना उचित नहीं लगता। भूमंडलीकरण की निजीकरण कि नीति ने व्यवसाय तथा उद्यम के साथ - साथ परिवारों में भी निजीपन ला दिया है एक ही परिवार के सदस्य अपने-अपने आप में सीमित होते जा रहे  है्र।  उनकी जीवन शैली में भी भिन्नता दिखाई देती है, लोगो के बीच आँसू, अवसाद, जज्बात, प्रेम की  भावनाएं छल होती जा रही है-
 अँधेरे के साथ रोशनी का छल 
            झूठी मुस्कान के साथ व्यवहार का छल 
            छुटपन को बडप्पन मानने का छल 
            खुद को प्रतिपल मारते सजाते सँवरते  
            जीने का छल 
                             ('रोशनी का छल',यशस्विनी)
 भूमंडलीकरण ने कृषि को सबसे अधिक प्रभावित करते हुए इसे विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सम्मिलित किये जाने के संकेत दिए है जिसका सीधा प्रभाव किसानो और ग्रामीण समाज पर पडा है। कृषि मदों जैसे- बीज, कीटनाशक तथा खाद के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनिया विक्रेता के रूप में प्रवेश कर रही है। नवीन कृषि पद्धतियों के प्रयोग के लिए किसानो को बीज,खाद और कीटनाशकों कि आवश्यकता होती है परन्तु यह बहुत महंगे होते है, जिसके कारण किसानों पर भारी कर्ज हो जाता है इस कर्ज को चुकाने के लिए किसान अपने बच्चो को कमाने के लिए शहर भेज देते है। गाँव का आदमी गाँव को एक बाधा के रूप में देखने लगता है स डॉ अमरनाथ लिखते है-'दूर-दराज के उन क्षेत्रो में जहाँ  लोगो को साफ पेय जल या सडकें व अन्य मौलिक सुविधायें उपलब्ध नहीं है टी.वी. कि पहुँच के कारण लोग काल्पनिक दुनिया व यथार्थ में फर्क करना भूल चुके है।
गाँव में हर गाँववासी बनना चाहता था 
      बडा आदमी 
      और बडा आदमी बनने के इस सपने में 
      गाँव एक बाधा कि तरह आता
      हर ऱोज 
 ('जब गाँव में थे', नेहा नरुका)
वैश्वीकरण के दौर में स्त्री-पुरुष के संबंधो में बहुत परिवर्तन हुआ है जिसे ष्लिव इन रिलेशनशिपष् के नाम से जाना जाता है स भारत जैसे देश में इस तरह के रिश्ते भारतीय परम्परा पर करारा प्रहार हैए भारत में वैवाहिक  सम्बंध दो व्यक्तियों का ही नहीं अपितु दो परिवारों का मिलन  होता है । लिव इन रिलेशनशिप स्त्रियों के लिए अच्छा है या बुरा इसका पता आने वाला वक्त ही बताएगाए ऐसे देश में जहाँ स्त्री और पुरुष की  मित्रता भी संदिग्ध दृष्टी से देखी जाती है ऐसे देश में यह परिवर्तन किस प्रकार स्वीकार्य होगा। ऐसा समाज जो आज भी पुत्र कि कामना में बेटियों की गर्भमें ही हत्या कर देता है वह स्त्री को इतनी बडी आजादी कैसे दे पायेगा । 'अनब्याही औरत' कविता में 'अनामिका' लिखती है -
ऐसो से क्या खाकर हम करते है प्यार 
       सो अपनी वरमाला 
       अपनी ही चोटी में गुंथी 
       और कहा खुद से 
       एकोअहम बहुस्याम 


निष्कर्ष-
   भूमंडलीकरण कि व्याख्या जितनी जटिल है उतना ही इसके प्रभाव एवम् दुष्प्रभाव का आकलन स कुछ इसे संस्कृति एवम् परम्पराओ का विनाशक मानते है कुछ संस्कृतियों के इस मिलन को मानव सौहार्द के लिए उत्तम मानते है स एक ओर ये विश्व ग्राम कि कल्पना को साकार कर  'वसुधैव कुटुम्बकम' की भारतीय  परम्परा को बल देता है दूसरी ओर यह भारतीय परम्पराओं रीति रिवाजों पर कुठाराघात भी करता है स यह संकल्पना विदेशी सरकारों से संबंध तो सुदृढ करती है किन्तु बहुदेशीय संकायों के शासन में दखल से ईस्ट इंडिया कम्पनी कि पुनरावृत्ति का भय भी दिखाती है।  
 स्त्री कविता अनुपात में तो बहुत कम है परन्तु रचनाकारों की रचनाओ में भूमंडलीकरण के आने से कुछ तो बदलाव आया है अब स्त्री लेखक घर कि चारदिवारी से  राजनीति  के आखाडे तक में अपनी प्रतिभा दिखा रही है। यह देखा जाता है कि आत्म निर्भर स्त्रियों पर  आरोप लगता है कि उसने पश्चिमी सभ्यता के अनुपालन में भारतीय परंपरा एवम् मूल्यों को ताक पर रख दिया है और इसी तराजू पर तौली जाती है उनकी रचनाधर्मिता । भूमंडलीकरण के इस दौर ने स्त्री को नया पाठक वर्ग दिया है जो कम से कम रचना का तो लिंग भेद नहीं करता। उपसंहारात्मक रूप में ये कहा जा सकता है कि भूमंडलीकरण एक वास्तविकता है जिसे बदला नहीं जा सकता। जरुरत तो इस बात की  है कि उपभोक्तावादी, बाजारवादी, निजीकरण, उदारीकरण सबके प्रभावों से सचेत रहते हुए अपनी लेखनी की उपयोगिता को बचाना होगा तभी साहित्य और भाषा प्रवाहमान रहेंगे अन्यथा लगातार ठहरा हुआ जल भी अपना अस्तित्व खो देता है।      


सन्दर्भ सूची :-
01. प्रभा खेतान, बाजार के बीच: बाजार के खिलाफ , वाणी    प्रकाशन,दरियागंज,नई दिल्ली .110002
02. पुष्पपाल सिंह, भूमंडलीकरण और हिंदी,राधाकृष्ण    प्रकाशन,प्रालि.7/31,दरियागंज  नई दिल्ली -110002
03. पुष्पपाल सिंह,21वीं शती का हिंदी उपन्यास,राधाकृष्ण प्रकाशन,  प्रालि.7/31,दरियागंज  नई दिल्ली -110002
04. डॉ. अमरनाथ,हिंदी आलोचना की परिभाषिक शब्दावली,    राजकमल प्रकाशन, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली .110002
05. श्यामाचरण दुबे, मानव और संस्कृति,राजकमल प्रकाशन,
 नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली .110002
06. डॉ. माणिक मृगेश,भूमंडलीकरण,निजीकरण व हिंदी,वाणी   प्रकाशन,दरियागंज,नई दिल्ली .110002
07. मधु धवन,बोलचाल की हिंदी और संचार,वाणी प्रकाशन,
 दरियागंज,नई दिल्ली .110002
08. द्धह्लह्लश्चह्य://222.द्धद्बठ्ठस्रद्बह्यड्डद्वड्ड4.ष्शद्व/ष्शठ्ठह्लद्गठ्ठह्ल.
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