मैं कुछ भी सही
मगर उससे पहले
एक मानव हूँ ।
मैं कुछ भी नहीं
यदि मैं सबसे पहले
एक मानव नहीं हूँ ।
एक अंतर्द्वंद तो है
मेरे भीतर
जो मुझे ले आता है
खींच-खींच कर
अपनी ओर,
कर देता है आत्म केंद्रित मुझे
मेरे ही वृत्त की परिधि के
घेरे में,
जहाँ मैं भूल जाता हूँ
मेरे उन कर्तव्यों को
जो शायद
किसी दूसरे के लिए
अधिकार हों..
और हो सकता है
मुझसे भी ज़रूरी हों ।
लेकिन...
दूसरे ही पल
मुझे मेरी चेतना जगा देती है,
मेरे मानव होने पर
किसी को
हो ना हो
मुझे गर्व ज़रूर है,
क्योंकि,,
मैं सोच सकता हूँ,
मैं कर सकता हूँ,
मुझ में संवेदना है
और क्षमता है..
किसी को जानने
समझने
और
पढ़ने की..
यही क्षमता तो मुझे
मेरी परिभाषा बतलाती है,
और मुझे एहसास दिलाती है
कि हाँ !
मैं एक मानव हूँ..
और
अन्य पशुओं से
हटकर भी हूँ।
__ टी.सी. सावन
सर्वाधिकार सुरक्षित
टी.सी.सावन
साहित्यिक संपादक/साहित्यकार
डायरेक्टर, माइंड पावर स्पोकन इंग्लिश इंस्टिट्यूट हांडा बिल्डिंग, वीपीओ सरोल, तहसील और जिला,चंबा,हिमाचल प्रदेश 176318
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