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Tuesday, December 10, 2019

प्रवासी साहित्य और अमेरिका के साहित्यकार

प्रवासी साहित्य और अमेरिका के साहित्यकार
            स्वर्णलता ठन्ना अमेरिका का प्रवासी हिंदी साहित्य विविधताओं से भरा हुआ है। यहाँ प्रवासी भारतीयों ने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है। इस दुनिया में घर, परिवार, व्यापार, उद्योग आदि के साथ कला, संस्कृति एवं साहित्य के आयाम भी सीमाए है। अमेरिका के हिंदी साहित्य की यह विशेषता  है कि वह अपनी जड़ों को, अपनी अस्मिता को तथा अपनी भारतीय पहचान को अभिव्यक्त करता है। डॉ. वेद प्रकाश  बटुक ने ठीक ही लिखा है कि . 'अमेरिका के हिंदी लेखकों की रचनाओं में स्वदेश अर्थात भारत का सम्वेदन बोलता है, जो उन्हें विदश  में जीवित रखता हैए वह बार-बार विस्थापित अनुभव करता है और वह जानता है कि वह स्वेच्छा से वनवास भोगता है। परंतु वह बार-बार अपनी जड़ें खोजने के लिए भी लौटता है।'
          अमेरिका में भारतीय के आगमन का पहला लिखित प्रकरण सन् 1670 का मिलता है, फिर 1788 में व्यापार का और 1898 में कुछ भारतीय कृषक आप्रवासी के रूप में पहुँचे। विवेकानंद की सन् 1893 की अमेरिका यात्रा तथा हिंदू धर्म-संस्कृति पर उनके आख्यानों में अमेरिका-भारत के सम्बन्धों का नया युग शुरू हुआ। सन् 1997 में अमेरिका में भारतीयों की संख्या करीब 13 लाख थी।1
         अमेरिका में बसने वाले इन भारतीयों ने हिंदी भाषा, हिंदू धर्म, एवं संस्कृति के साथ हिंदी में साहित्य का शुभारंभ अमेरिका के कई शहरों में पूरी प्रगति के साथ किया। अमेरिका के प्रमुख साहित्यकारों में गिने जाने वाले साहित्यकार है. कुँवर चंद्रप्रकाश  सिंह, रामेश्वर अशांत, गुलाब खंडेलवाल, डॉ. भूदेव शर्मा, वेदप्रकाश  बटुक, राम चौधरी, हरिशंकर  आदेश, डॉ. विजय मेहता, सुषम वेदी, अंजना संधीर, सुधा ओम ढींगरा, रेणु गुप्ता राजवंशी  आदि अनेक हिंदी लेखकों ने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
         रामेश्वर अशांत  ने न्यूयार्क मेें 'विश्व  हिंदी समिति' की स्थापना की, वे समिति के केंद्र थेए उनकी हिंदी समिति में लगभग चालीस सदस्य जुडे थे। इस समिति के तहत ही उन्होंने अपना कविता संग्रह 'दूर किनारा गहरा पानी'् (1995) तथा 'यशोवर्मन' उपन्यास प्रकाशित  कराये। गणित के प्रोफेसर डॉक्टर भूदेव शर्मा ने भी सन् 1992 में 'विश्व विवेक' त्रैमासिक पत्रिका निकालकर भारतीय चेतना के विकास के साथ हिंदी रचनाओं को प्रकाशित  किया तथा इसके लगभग 50 अंकों में अमेरिका के सौ से अधिक हिंदी लेखकों एवं भाषाविदों की रचनाएँ प्रकाशित  करके एक कीर्तिमान स्थापित किया। वेदप्रकाश  'बटुक' ने लोकसाहित्य पर एक संस्था बनायी और अमेरिका एवं भारत के कवि के रूप में ख्याति पाई। 
        'बटुक' जी के अब तक कई काव्य-संग्रह प्रकाशित  हो चुके हैं जिनमें प्रमुख है . 'त्रिविधा' (1965), 'बन्धन अपना देश  पराया' (1976) 'आपात शतक' (1977), 'कैदी भाई बन्दी देश' (1977), 'नीलकंठ बन न सका' (1978),'एक बूँद और' (1980), 'कल्पना के पंख पाकर' (1981),'प्रात का अकेला सफर' (1986), 'नये अभिलेख का सूरज'(1982), 'बाहों में लिपटी दूरियाँ' (1986), 'सहन्न्बाहु' (1989), 'अनुगूँज'(2002), 'बाहुबली' (2002), 'इतिहास की चीख' (2003) तथा 'अमर  रामकथा' (2003) आदि।
        अमेरिका में 'अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्य'के साथ भी बहुत से लेखक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, प्रोफेसर आदि जुडे और 'विश्वा' नामक पत्रिका निकाली। 'विश्वा' के सम्पादक मण्डल में शामिल गुलाब खण्डेलवाल ने अपने 47 काव्य-ग्रंथों में से अनेक की रचना अमेरिका में रहकर की। इनका पहला संग्रह 'कविता' शीर्षक से सन् 1947 में प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका निराला ने लिखी थी। इसके अलावा इनके आरम्भिक 29 काव्य संग्रह को 'गुलाब ग्रंथावली' (चार खण्ड) शीर्षक से प्रकाशित किया गया।
        अमेरिका में महिला त्रय के रूप में डॉ. अंजना संधीर, डॉ. सुधा ओम ढींगरा तथा रेणु गुप्ता राजवंशी  बहुत ही महत्वपूर्ण काम कर रही है। डॉ अंजना संधीर हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी की लेखिका हैं। ये वर्तमान में न्यूयार्क में निवास कर रही है। आप जनवरी, 1995 में न्यूयार्क पहुँची थी और उसके बाद इनका गजल संग्रह 'धूप छाँव और आँगन' (1999), कविता-संग्रह 'तुम मेरे पापा जैसे नहीं हो' (1997) एवं 'अमेरिका हड्डियों में जम जाता है' (2003), रचनात्मक पुस्तक 'अमेरिका एक अनोखा देश' (2003) तथा सम्पादित काव्य-संग्रह 'प्रवासी हस्ताक्षर' (1997), 'प्रवासिनी के बोल' (2006), 'प्रवासी आवाज' (2008) तथा 'ये कश्मीर  है' (2001) प्रकाशित हो चुके हैं।
         अमेरिका में रहकर साहित्य के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रही डॉ.सुधा ओम ढींगरा समाचार-पत्रों में लेख लिखने के साथ ही 'हिंदी चेतना'् नामक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन कर रही है। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में हैं . 'मेरा दावा है' (2002), 'तलाश  पहचान की', 'परिक्रमा' (अनुवाद), 'माँ ने कहा था' (काव्य कैसेट), 'सफर यादों का', 'वसूली' तथा और गंगा बहती रही आदि। डॉ. सुधा ओम ढींगरा के साथ रेणु गुप्ता राजवंशी  भी 'विश्वा' त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन कर रही है, साथ ही लेखन कार्य भी कर रही है। उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं . 'प्रवासी स्वर' व 'प्रवासी मन' कविता संग्रह, 'कौन कितना निकट', 'जीवन लीला' तथा 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' (2009), कहानी-संग्रह तथा एक उपन्यास ष्असतो मा सद्गमयष् भी प्रकाशित है। 
          अमेरिका में मॉरिशस की तरह साहित्य का कोई इतिहास नहीं लिखा गयाए जिससे की वहाँ के साहित्य की क्रमबद्धता पता चल सके, इसके अलावा वहाँ का स्वरूप और चरित्र भी भिन्न है, अमेरिका में भारतीयों का आगमन शिक्षा  एवं रोजगार के लिए थाए ये मॉरिशस के गिरमिटिया मजदूरों की व्यथा एवं अपमान से भी अपरिचित थे। 
        अमेरिका के प्रमुख रचनाकारों के अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण रचनाकार भी हुए है जिन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के संवर्धन में महत् कार्य किए है। जिनमें महत्वपूर्ण है, डॉ. राजेश्वरी  पन्ढरी पांडे के सम्पादकत्व में 'अमेरिका के हिंदी कवि' तथा डॉ. रविप्रकाश  सिंह की 'अमेरिका के हिंदी कवि'(1983), छप चुकी है। डॉ. विजय कुमार मेहता के दो कविता संग्रह 'मधुमास के फूल' (1996) तथा  'पुष्पाजंली' (1997) प्रकाशित हो चुके हैं और चंद्रगुप्त पर उनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हो गया है। साथ ही राकेश  खण्डेलवाल का कविता संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' (2008), प्रो. रामदास चौधरी  की 'भारतीय अस्मिता के अग्रदूत' (1998) तथा वेदप्रकाश  सिंह की 'प्राचीन हिंदू राष्ट' (1997) आदि।
        अमेरिका के स्थापित रचनाकारों के अलावा वहाँ कुछ नये रचनाकारों ने भी अपनी जगह बनाने का प्रयास किया है। अमेरिका और कनाडा में पिछले दो दशकों से भाषा एवं साहित्य के प्रति नयी जागृति दिखाई दे रही है। इन देशो  में भारत के हिंदी प्रदेशों  से जाने वाले हजारों-लाखों इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, वित्तप्रबंधक, साहित्यकार, कलाकार आदि जाकर बस गए हैं और वे स्वदेश  तथा परदेश  दोनों का हित कर रहे हैं। वे हरदम यह प्रयास कर रहे हैं कि आने वाली पीढी अपनी मातृभाषा, संस्कृति एवं धर्म से भी जुडी रहें और परदेश  में रहते हुए भी भारतीय बने रहें। 
       इन प्रयासों की कडी के रूप अमेरिका के हिंदी प्रेमियों तथा लेखकों द्वारा सम्पादित तीन साहित्य संकलन सामने आए है, जो वहाँ के प्रवासी हिंदी लेखकों को एक सूत्र में बाँधकर वहाँ की सर्जनात्मकता का एक बिम्ब हिंदी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। इन सामूहिक संकलनों का एक लाभ यह होता है कि पाठक एक विशिष्ठ  विचार के अन्तर्गत प्रकाशित रचनाओं का रसास्वादन एक साथ कर पाता है तथा साहित्य में गतिशील प्रवृतियों  को समझ पाता है। 
       अमेरिका की डॉ. अंजना संधीर ने ऐसे कई प्रयास किए हैं। उन्होंने अमेरिका के प्रवासी 22 हिंदी कवियों का संकलन 'प्रवासी हस्ताक्षर' वर्ष 1997 मेंए 23 प्रवासी हिंदी कवियों का कश्मीर  पर लिखी कविताओं का संकलन 'ये कश्मीर  है' वर्ष  2001 में, 'सात समुन्दर पार' कविता संकलन वर्ष 2002 में, अमेरिका की 81 कवयित्रियों का कविता संकलन 'प्रवासिनी के बोल' वर्ष 2006 में तथा अमेरिका के ही 44 प्रवासी हिंदी कहानीकारों का संकलन 'प्रवासी आवाज' नाम से वर्ष 2008 में सम्पादित कर प्रकाशित कराया है। 
        डॉ. अंजना संधीर ने अमेरिका में प्रवासी कवयित्रियों की खोज की और वे 81 कवयित्रियों को खोजने और उनसे कविताएँ लेने में सफल हुईं। अमेरिका के घोर व्यस्त जीवन में, जहाँ आदमी अपने में ही डूबा रहता है, इतनी बडी संख्या में कवयित्रियों को एक साथ एक पुस्तक में प्रस्तुत करना अद्भुत हिंदी प्रेम का प्रमाण है। 'प्रवासी आवाज' के माध्यम से प्रवासी हिंदी कहानीकारों के ऐसे कहानी संकलन का प्रकाशन भी एक बडी उपलब्धि है और अमेरिका के प्रवासी हिंदी संसार का एक व्यापक चित्र प्रस्तुत करता है। ये दोनों ही संकलन इसके प्रमाण है कि अमेरिका में प्रवासी भारतीय बडी संख्या में हिंदी में लिख रहे हैं ओर वे निरन्तर अपनी सर्जनात्मकता को प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
       अमेरिका में स्थापित अनेक संस्थाओं के माध्यम से भी वहाँ हिंदी का विकास हुआ है। कनाडा के दो विश्वविद्यालय में तथा 'मुकुल हिंदी स्कूल' में हिंदी शिक्षण  की व्यवस्था हैए तथा हिंदी परिषद् क्यूबेक, हिंदी संघ, विश्व हिंदू परिषद, हिंदी प्रचारिणी सभा, हिंदी साहित्य परिषद आदि हिंदी-शिक्षण  एवं कवि सम्मेलनों का आयोजन करते हैं।2
 कनाडा से 'विश्व भारती', 'हिंदी चेतना' (1998), तथा 'वसुधा'् आदि हिंदी पत्रिकाएँ निकलीं और अनेक हिंदी लेखकों की रचनाएँ प्रकाशित कीं। इनके अलावा 'कनैडियन हिंदी काव्य-धारा' (1998) के नाम से 17 कवियों का संग्रह श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी के सम्पादकत्व में निकला। त्रिलोचन सिंह गिल ने 'भारती' पत्रिका निकाली और रघुबीर सिंह ने 'हिंदी विश्व भारती' पत्रिका निकाली। 'वसुधा' पत्रिका स्नेह ठाकुर के संपादन एवं संरक्षण में विगत कई वर्षो से प्रकाशित हो रही है।  
          अमेरिका में हिंदी भाषा एवं साहित्य तथा हिंदू धर्म और संस्कृति के प्रचार तथा विकास में इन हिंदी पत्रिकाओं ने बडा महत्वपूर्ण योगदान किया है। रामेश्वर अशांत, डॉ. वेद प्रकाश 'बटुक', डॉ. रामप्रकाश  अग्रवाल, डॉ. भूदेव शर्मा, प्रो. राम चौधरी, डॉ. विजय मेहता, डॉ. सुषमा वेदी, डॉ. अंजना संधीर आदि ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। रामेश्वर अशांत ने 'विश्व  हिंदी समिति' की स्थापना की और 'सौरभ' पत्रिका निकाली। डॉ. कुँवर चंद्रप्रकाश  सिंह ने 1980 में 'अंतराष्ट्रीय हिंदी समिति' की स्थापना की और 'विश्वा'पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया और अब इसका सम्पादन श्रीमती रेणु गुप्ता राजवंशी  कर रही हैं। इसी प्रकार डॉ. भूदेव शर्मा ने 'हिंदू एजुकेशनल एण्ड रिलीजीयस सोसाइटी आफ अमेरिका' बनायी और 'विश्व विवेक' नामक हिंदी पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। कुछ वर्ष पूर्व प्रोण् राम चौधरी  ने 'विश्व हिंदी न्यायष् की स्थापना की और 'हिंदी जगत'त्रैमासिक हिंदी पत्रिका का प्रकाश  शुरू किया।3                   
        भारतेतर देशो  में अमेरिका पहला ऐसा देश  है जो एक साथ हिंदी की तीन पत्रिकाओं का प्रकाशन कर रहा है। 'बाल हिंदी जगत' पत्रिका न्यूयार्क की अंचला सोब्रिन सम्पादित कर रही हैं और 'विज्ञान प्रकाश' को प्रो. राम चौधरी, जो स्वयं वैज्ञानिक हैं। भारत से इसकी देखभाल विश्वमोहन तिवारी कर रहे हैं। 'हिंदी जगत' के मुख्य सम्पादक प्रो. राम चौधरी  ही हैं, परन्तु उसके प्रबंध संपादक तोक्यो विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. सुरेश  ऋतुपर्ण और भारत में नारायण कुमार इसकी सामग्री के चयन, प्रकाशन एवं वितरण की व्यवस्था देखते हैं।
        ये सभी हिंदी पत्रिकाएँ सामग्री, प्रस्तुतीकरण तथा साज-सज्जा की दृष्टि से स्तरीय और श्रेष्ठ पत्रिकाएँ है, जो मूलत: सेवा भाव से निकाली जा रही हैं। भारत में इन तीनों पत्रिकाओं का स्वागत होना चाहिए तथा 'विश्व हिंदी न्यास' को भी यह व्यवस्था करनी चाहिए कि ये हजारों की संख्या में छपें और ग्राहक बनाने की समुचित व्यवस्था हो। वास्तव में तभी यह नयी अमेरिकन पत्रिकाएँ हिंदी भाषा के साथ नए ज्ञान-विज्ञान को सभी जगह पहुँचाने में सफल होंगी।
संदर्भ सूची :- 
1. डॉ.कमल किशोर गोयनका, हिंदी का प्रवासी साहित्य, प्रथम  ् संस्करण 2011, अमित प्रकाशन,गाजियाबाद, पृष्ठ, 31
2. वही, पृष्ठ, 34
3. वही, पृष्ठ, 381


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