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Sunday, January 12, 2020

घरेलू हिंसा का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव      

घरेलू हिंसा का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव
      साधना मौर्या


नेट, समाजशास्त्र, पीजी कॉलेज, गाजीपुर, उप्र.


 इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि भारत में सदियों से महिलाएं तिरस्कार, अपमान, उत्पीडऩ एवं शोषण का शिकार रही है। महिलाओं की हत्या, शीलभंग, अपरहण एवं उत्पीडऩ की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। हिंसा और महिलाओं का संबंध सदियों पुराना है। सदियों से महिलाएं स्वयं हिंसा और शोषण की गर्त से बाहर निकलने में सफल नहीं हो पा रही हैं। महिला जो एक अगरबत्ती के समान जीवन में सुगंध फैलाती है वह आज हिंसा और शोषण के धुए में जलकर राख हो रही है। पुरुषों ने युगों-युगों से महिलाओं का शोषण किया है। भयावह सच के बावजूद हिंसा के मुद्दे पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया और नहीं यह जानने का प्रयास किया गया कि इस मुद्दे पर महिलाओं की उपेक्षा क्यों की जाती है। अथर्ववेद में कहा गया है कि नववधू तू जिस घर में जा रही है वहां की तू सम्राज्ञी है तेरे साथ ससुर देवर तथा अन्य व्यक्ति तुझे सम्राज्ञी मानते हुए तेरे शासन में आनंदित हो, धार्मिक कार्यों के संपादन में स्त्री पुरुष के अधिकार समान थे,धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने के लिए पत्नी का होना आवश्यक था स्त्रियों की रक्षा करना पुरुष का सबसे बड़ा धर्म माना जाता था और उनका अपमान करना पाप। मनु ने कहा है कि स्त्रियां कभी भी स्वतंत्र रहने योग्य नहीं है। बाल्यावस्था में उन्हें पिता, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में पुत्र, के संरक्षण में रहना चाहिए। 18 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों से स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तक का समय ब्रिटिश काल के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों ने यहां के लोगों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपनाई, इस नीति के कारण उन्होंने स्त्रियों की स्थिति को सुधारने की दृष्टि से कोई प्रयत्न नहीं किया। सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं थी। इन्हें शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व हमारे यहां स्त्रियों में साक्षरता दर 6 प्रतिशत से भी कम थी। बाल विवाह, सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा के प्रचलन ने स्त्री शिक्षा में विशेष बाधा पहुंचाई। स्त्रियों के संबंधों का क्षेत्र पिता एवं पति के परिवार तक ही सीमित था। धार्मिक कर्तव्यों का पालन ही इनके जीवन का मुख्य कार्य रह गया था। पारिवारिक क्षेत्र में स्त्रियों को कुछ भी अधिकार प्राप्त नहीं थे। सब प्रकार के अधिकार पुरुष कर्ता मे ही केंद्रित थे। स्त्रियों का मुख्य कार्य संतान उत्पत्ति एवं परिवारजनों की सेवा करना था। विवाह विच्छेद के अधिकार के नहीं होने से, पति के चरित्र, क्रुर और अत्याचारी होने पर भी पत्नी को उनके साथ अनुकूलन करना ही पड़ता था। विश्व में जैसे-जैसे तकनीकी और प्रौद्योगिकी विकास किया है, वैसे-वैसे महिलाओं के हिंसा और शोषण के प्रकारों में वृद्धि होती आई है। एक बच्ची को पैदा होने से पहले ही कितनी यातना से गुजरना पड़ता है। उसके बाद  उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक ऐसी विभिन्न प्रकार की यातनाएं सोशल हिंसा उनके जीवन का हिस्सा बन जाती हैं। महिलाओं को कभी धर्म, कभी संस्कृति कभी, पत्नी होने तो कभी, महिला होने के नाम पर सूचित किया जाता है। महिलाओं के साथ हो रही हिंसा और शोषण के कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं। कन्या भू्रण हत्या, बालिका यौन शोषण, यौन उत्पीडऩ और तस्करी, अनैतिक देह व्यापार, लैंगिक असमानता, असुरक्षित गर्भपात, कार्यस्थल पर यौन शोषण, सती प्रथा, दहेज उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा, शारीरिक, मौखिक, आर्थिक उत्पीडऩ, भावनात्मक शोषण, बलात्कार एवं  मानसिक और भावनात्मक शोषण, ऑनर किलिंग, गैंग बलात्कार, अपहरण, अतिक्रमण, एसिड अटैक, डेटिंग दुरुपयोग, अंतरण साथी हिंसा, जबरन वेश्यावृत्ति शोषण, जबरन पोर्नोग्राफ ी संबंधी यौन शोषण, साइबर क्राइम, स्आकिंग, छिपकर देखना, ब्लैकमेल करना इत्यादि।
 महिलाएं कमोबेश हर समाज में हिंसा का शिकार रहीं हैं। उनके रूपों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन उस हिंसा को महिलाएं सहती है।ं अफ्रीका सहित कई देशों में तो संस्कृति के नाम पर महिला जननांग छेद्रीकरण और ब्रेस्ट आयरनिंग जैेसी भयावह अमानवीय प्रथाएं प्रचलित है। इसी प्रकार इंपीरियल चीन में संस्कृति के नाम पर फु ट बाध्यकरण महिलाओं पर सदियों से थोपे जा रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में 25 अगस्त 2013 को राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में हर 20 मिनट में महिलाओं का बलात्कार हो रहा है। और महिलाओं के प्रति हिंसा में 2010 से अब तक 71 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बच्चों के यौन शोषण में पिछले 10 वर्षों में 336 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में महिलाएं घरेलू हिंसा और शोषण की शिकार होती रही है। विभिन्न आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार है।ं हर 3 मिनट में महिलाओं के खिलाफ अपराध प्रतिबंध है। हर 29 मिनट में महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। हर 77 मिनट में महिलाओं को दहेज के लिए प्रताडि़त किया जा रहा है। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में शारीरिक शोषण, मार-पीट, अभद्र व्यवहार, पीड़ा उत्पीडऩ, इत्यादि प्रमुख है। ऐसा करने वालों में महिला का पति, दोस्त, रिश्तेदार, अजनबी, नौकर, सहकर्मी इत्यादि व्यक्ति शामिल होते है।ं
 घरेलू हिंसा निस्संदेह महिला के मानवीय अधिकारों, विशेष रूप से पति-पत्नी के संबंधों को लेकर वाद-विवाद का विषय है। यह वास्तव में समाज और देश के विकास के लिए गंभीर एवं भयावह स्थिति है कि देश की आधी आबादी को पुरुष वर्ग दबाव और शोषण में रख रहा है। वहीं कुछ अपराधों में यह भी सही है कि महिलाएं अतिरंजित कार्यवाही कर निर्दोष या कम दोषी को तंग और परेशान कर रही है। शायद यह स्त्री की ही भूल है कि उसने गलत संस्कारों का बीजारोपण करके पुरुष को सारा स्वामित्व दे दिया। और अपनी जाति का हास्य किया। अगर महिला बच्चों की परवरिश कायदे से करें और उन्हें मूल्यों से अवगत कराएं तो शायद ही उसे इतनी प्रताडऩा झेलनी पड़े। क्योंकि नारी की पराधीनता कभी खत्म नहीं होती। बचपन में मां-बाप के, जवानी में पति और बुढ़ापे में बेटों के अधीन, अंतत: बंधन में यह अपनी पहचान ही खो देती है महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में यौन संबंधी समायोजन, भावनात्मक गडबड, अहम या हीनभावना, नशा और ईष्या शामिल है। आमतौर पर हिंसा की शिकार वे महिलाएं होती हैं जो असहाय और अवसाद ग्रस्त होती है। जिनकी आत्म छवि खराब होती है। जो आत्म अवमूल्यन से ग्रसित या वे हिंसा के फलस्वरूप भावनात्मक रूप से समाप्त हो चुकी हैं या यथार्थवादी व्यवस्था से ग्रस्त हैं जो दबावपूर्ण पारिवारिक परिस्थितियों में रहती है या ऐसे परिवारों में रहती हैं जिन्हें समाजशास्त्री शब्दावली में सामान्य परिवार नहीं कहा जा सकता है जिनमें सामाजिक परिपक्वता की या सामाजिक अंतर प्रवीताओ की कमी है जिसके कारण उन्हें व्यवहार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनके पति ससुराल वालों के विपरित व्यक्तित्व है और जिनके पति बहुत मदिरापान करते हैं। घरेलू हिंसा की घटनाओं से संरक्षण हेतु घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 बनाया गया। जिसके मुताबिक राज्य पक्ष की यह जिम्मेदारी है कि वह स्त्रियों के प्रति किसी भी प्रकार की हिंसा के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करें। घरेलू हिंसा अधिनियम की मूल मनसा प्रताडि़त करने वाले पति या उसके परिजन को दंडित किए जाने की ना होकर मुख्य उद्देश्य पति -पत्नी व परिजन के मध्य आपसी सामंजस्य स्थापित करना है। इसलिए इस अधिनियम के अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष जब कोई कार्यवाही की जाती है तो मजिस्ट्रेट ऐसे विवादों के निराकरण हेतु संरक्षण अधिकारी नियुक्त करता है और आवश्यकता पडऩे पर बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा की व्यवस्था भी करता है आदेश का पालन न होने पर दंडित करने का भी उसे अधिकार है। यह अधिनियम उन स्त्रियों को समाविष्ट करता है जो कर्ता या उसकी रिश्तेदारी में रह रही है ग्रहणी में भागीदारी है, विधवा है, मां है, या अकेली स्त्री है यह विधेयक किसी पुरुष भागीदार को पत्नी के विरुद्ध परिवारवाद फाइल करने के योग्य नहीं बनाता।
 घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के मुख्य प्रावधानों के मुताबिक घरेलू हिंसा की परिभाषा काफ ी व्यापक है इसके अंतर्गत विशेष रूप से मारपीट करना, थप्पड़ मारना, ठोकर मारना, दांत से काटना, लात मारना, मुक्का मारना, धक्का देना, धकेलना व अन्य रीति से शारीरिक पीड़ा या क्षति पहुंचाना, बलात मैथुन,अशालीन सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित या नीचा दिखाने के लिए अस्वीकार्य लैंगिक प्रकृति का कृत्य करने वालों के साथ लैंगिक दुव्र्यवहार, अपमान, गालियां देना, चरित्र आचरण पर दोषारोपण, लड़का ना होने पर अपमान, दहेज के लिए अपमान, बालक को विद्यालय या महाविद्यालय जाने से रोकना, नौकरी करने से रोकना, नौकरी छोडऩे को मजबूर करना, किसी व्यक्ति से मिलने, विवाह करने के लिए मजबूर करना, अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से रोकना, किसी व्यक्ति विशेष से विवाह करने के लिए मजबूर करना, आत्महत्या करने की धमकी देना, मौखिक या भावनात्मक दुव्र्यवहार, बच्चों के अनुरक्षण के लिए धन उपलब्ध न कराना, कपड़ा इत्यादि उपलब्ध न कराना रोजगार से रोकना, या बाधा डालना, वेतन पारिश्रमिक को ले लेना, उपभोग करने से रोकना, निवास से बाहर निकलने को मजबूर करना, घर के उपभोग करने से रोकना, घरेलू कपड़ों वस्तुओं आदि के इस्तेमाल से रोकना, मकान किराए आदि का संदाय न करना।धारा 5 के अधीन महिला संरक्षण अधिकारी और सेवा प्रदाता की सहायता प्राप्त कर सकती है। धारा 9 एवं 10 के अधीन अनुतोष के लिए आवेदन कर सकती है। धारा 18 के अधीन घरेलू हिंसा से स्वयं एवं बच्चों के लिए संरक्षण प्राप्त कर सकती है। वह दैनिक उपभोग की वस्तुएं वापस कब्जे में ले सकती है। धारा 4 में किसी भी नागरिक को से संबंधित इत्तला करने की नैतिक जिम्मेदारी मानवीय दृष्टिकोण से सौंपी गई है। आज की विषम परिस्थितियों में पड़ोस की घटनाओं से जानबूझकर व्यक्ति स्वयं को अलग रखता है। घटना को देखने, सुनने से परहेज करता है इतला देने वाले पर शिकंजा कसा जा सके या उसे इतला देने का खामियाजा न भुगतना पड़े इस लिहाज से धारा 4 में सूचना देने की जिम्मेदारी से उसे पूर्ण मुक्ति प्रदान की गई है। इस कानून के मुताबिक प्रत्येक पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट मिलने पर उसका अन्वेषण करें और कार्यवाही करें। वह इस आधार पर कर्तव्य विमुख नहीं हो सकता कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही होनी है ऐसा होने पर पुलिस अधिकारी कर्तव्य पालन में दोषी माना जाएगा। विश्व भर के संविधान में नारी को समानता के अधिकार दिए हैं। लेकिन यह अधिकार केवल लिखित ही है अलिखित कानून यही है कि संपूर्ण विश्व में नारी बचपन से लेकर बुढ़ापे तक पुरुष के जुल्मों का शिकार होती है खासकर भारत में पूरे देश में ही महिलाओं के समग्र एवं सार्थक विकास के संबंध में बहुआयामी महिला नीति बनाकर लागू करने की होड़ चल रही है। संस्थागत प्रजातांत्रिक ढांचे में नारी को नारायणी बनाने के प्रयासों के फलस्वरूप एक तिहाई सरपंच, जिला पंचायत अध्यक्ष, पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष एवं महापौर महिलाएं है। महिला नीति में शिक्षा सहकारिता नौकरियों आज में महिलाओं के आरक्षण के साथ-साथ भूमि स्वामित्व में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से नारी उत्थान के आर्थिक स्वावलंबन पक्ष को निश्चित ही मजबूती मिलेगी लेकिन हर चमकीली चीज सोना नहीं होती है इसका विकृत रूप भी सामने आ रहा है पहले पूरे जिले में एस.पी. होता था अब हर गांव में एस.पी. मिल जाएगा एस.पी. यानी सरपंच पति, घर की जिस चारदीवारी को स्त्री की सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी माना जाता है वस्तुत: वह कई बार स्त्रियों के लिए उनके हिंसक शारीरिक, मानसिक उत्पीडऩ का सबसे बड़ा और स्थाई स्रोत बन जाता है। उदाहरण हमारे चारों ओर बिखरे पड़े हैं। बड़े मंत्रियों और उनके बेटों प्रसिद्ध अभिनेताओं और कलाकारों से लेकर झुग्गी बस्तियों के वे बड़े निखट्टू पतियों तक के द्वारा पत्नी या बच्चों की निर्गम धुनाई और मानसिक प्रताडऩा के हजारों किस्से हमारी पुलिस की बहियों मीडिया और हस्पताली रजिस्टरों से भी लगातार उजागर होते रहती हैं। हाल में एक बिगड़ैल मंत्री पुत्र द्वारा अपनी कामकाजी पत्नी के आर्थिक शोषण और शारीरिक बदसलूकी के प्रकरण मीडिया में छाए रहे उससे पहले एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध अभिनेत्री द्वारा पति के घर से वापस मायके लौटने की वजह भी पति द्वारा मारपीट बताई गई इन दिनों वी.आई.पी. पत्नियां यद्यपि बाद में अपने कहे से मुकर गई लेकिन ऐसे अप्रिय प्रकरणों की छवियां भुक्तभोगी परिवार के मन में आसानी से उतरने वाली नहीं। उतरने भी नहीं चाहिए स्त्रियां और उनके परिजन अक्सर उत्पीडि़ता की समग्र शारीरिक, मानसिक सुरक्षा और उसपर लगातार मडराते खतरों को जबरन नकार कर सुविधाजनक पूर्वाग्रहों और निष्ठा पूर्वक जबरन दिलवाए गए वक्तत्यों के आधार पर मामले चुपचाप सुलझाना पसंद करते हैं। लेकिन समाज की बुनियाद में व्याप्त गंभीर शक्ति असंतुलन और उसके अन्याय पूर्ण दुष्परिणामों से उपजी गहरी शर्म और तकलीफ के साथ रूबरू हुए बिना घरेलू हिंसा के असली स्वरूप को नहीं समझा, रोका जा सकता है। घरेलू हिंसा यौन प्रताडऩा एवं महिलाओं के प्रति अन्य अपराधों में मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है चाहे जेसिका लाल या प्रियदर्शनी मट्टू की हत्या हो मेरीड्राइव रेप केस हो या इमराना के साथ ससुर की हैवानियत या फिर नैना साहनी तंदूर कांड से लेकर आरूषि तलवार के अनसुलझे कत्ल की गुत्थी के बहुचर्चित मामले यह हल्ला केवल महानगरों तक सीमित है लेकिन देहात गांव कस्बों एवं दूरस्थ स्थानों पर इन जैसे मसलों को उठाने कोई नहीं है।
 इन मामलों में सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा संपूर्ण समाज को जागृत करना होगा तभी नारी के स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा हो पाएगी, इसके लिए जरूरत है चेतना की, जागरूकता की, आत्मविश्वास की, आज नारी को खुद ही साबित करना होगा कि वह कोमल जरूर है लेकिन वह कमजोर बिल्कुल नहीं है। उसमें पन्नाधाय का त्याग है रानी लक्ष्मीबाई का पौरुष है इंदिरा गांधी जैसी नेतृत्व क्षमता है मदर टेरेसा की ममता है हिमादास जैसी धावक क्षमता बछेंद्री पाल व संतोष यादव जैसी एवरेस्ट फतह का जज्बा और कल्पना चावला एवं सुनीता विलियम की तरह अंतरिक्ष विजय का सपना है आज जरूरत है इन उदाहरणों और विचारों को गली मुहल्लों और गांव की चौपालों तक पहुंचाने की शहरों में जागरूकता बढ़ी है तो गांव में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है सिर्फ सम्मेलनों भाषणों सेमीनारों से कुछ नहीं होगा इस पर विचार करने की आवश्यकता है किताबों और किस्से कहानियों में हमने नारी को नायिका बना दिया किंतु यथार्थ के धरातल पर इसे साकार करने की जरूरत सबसे ज्यादा है महिला सशक्त तभी होगी जब वह साक्षर स्वाबलंबी एवं आत्मनिर्भर बनेगी।


संदर्भ सूची:-
1. नारीवादी सिद्धांत और व्यवहार पृष्ठ 199, 200
2. महिला अधिकार और मानव अधिकार पृष्ठ 143, 144, 147,   148
3. स्त्री लंबा सफर पृष्ठ 17, 18


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