Impact Factor - 7.125

Monday, January 27, 2020

*इंदौर के नाम दर्ज विश्व कीर्तिमान,  मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने हिंदी में बदलवाएं लोगों के हस्ताक्षर* #वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ कीर्तिमान





*इंदौर के नाम दर्ज विश्व कीर्तिमान,  मातृभाषा उन्नयन संस्थान ने हिंदी में बदलवाएं लोगों के हस्ताक्षर*

 

#वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ कीर्तिमान

 

इंदौर। हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा 11 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिंदी में बदलवाएं इस लिए संस्थान को 2020 की 11 जनवरी को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, लंदन द्वारा वरिष्ठ पत्रकार डॉ.वेद प्रताप वैदिक, वरिष्ठ कवि डॉ. कुँवर बैचैन, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ हास्य कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र शर्मा, वरिष्ठ कवि एवं बाल साहित्यकार डॉ. दिविक रमेश, पतंजलि योगप्रचारक प्रकल्प के प्रमुख स्वामी विदेह देव जी, साउथ एशियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर जनरल व वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स के अध्यक्ष संतोष शुक्ला, वरिष्ठ कवि प्रो. राजीव शर्मा के आतिथ्य में मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.अर्पण जैन 'अविचल एवं दल ने यह विश्व कीर्तिमान ग्रहण किया, उसी को *वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स 2020* गोल्ड संस्करण में दर्ज किया गया। अहिल्या नगरी और मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नाम यह कीर्तिमान दर्ज हुआ हैं। 

इसी के साथ मातृभाषा उन्नयन संस्थान का नाम वैश्विक फलक पर दर्ज हो गया। तीन साल पहले मातृभाषा उन्नयन संस्थान के बैनर तले डॉ अर्पण जैन 'अविचल' ने हिंदी में हस्ताक्षर के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया। 2017 में की गई मेहनत का असर बाद के दो सालों में नजर आने लगा। इस अभियान का असर यह हुआ कि पहले जो लोग बैंक से लेकर अन्य सरकारी कामकाज में अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते थे न सिर्फ हिंदी में हस्ताक्षर करने लगे हैं बल्कि संस्थान के अभियान का समर्थन करने के साथ प्रधानमंत्री से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आग्रह भी कर चुके हैं। 

 *पहले अंग्रेजी में हस्ताक्षर करने वाले अब करने लगे हिंदी में हस्ताक्षर* 

उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 3.50 लाख, मध्य प्रदेश में 2.85 लाख, राजस्थान में 1.62 लाख, दिल्ली एनसीआर 1.00 लाख, उत्तराखंड 65,800 हजार, कर्नाटक 55,000 हजार, केरल, सिलीगुड़ी 22000 हजार, तमिलनाडु 20 हजार, झारखंड 12हजार और असम में 3 हजार लोग हिंदी में हस्ताक्षर के संकल्प पत्र भर चुके हैं।  

 

🔹 *कर्नाटक में तो हिंदी के संकेतक लगाए जाने लगे, लेकिन बंगलाभाषी को हिंदी से नहीं मोह* 

400 शहरों में बैठकें कर चुके डॉ अर्पण जैन और उनकी टीम को खट्टे मीठे अनुभव भी हुए हैं। आम धारणा है कि दक्षिण प्रदेशों में हिंदी से नफरत की जाती है लेकिन उनका अनुभव यह रहा कि इन प्रदेशों में तो लोगों को हिंदी की उपयोगिता समझ आने लगी है लेकिन बंगालीजन मातृभाषा के मोह से आसानी से मुक्त नहीं हो पाते। केरललऔर कश्मीर में पर्यटन वाले राज्य हैं यह बात समझाने का ही नतीजा रहा कि वहां बच्चों को हिंदी पढ़ाने के लिए न सिर्फ लोग राजी हुए हैं बल्कि क्षेत्रीय भाषा वाले संकेतक बोर्ड पर अब हिंदी को भी स्थान मिलने लगा है। 

 

🔹 *तैयार किए एक हजार हिंदी योद्धा* 

अपने अभियान की शुरुआत गृह नगर इंदौर से करने वाले डॉ अर्पण जैन ने हरिद्वार में बाबा रामदेव के पंतजलि संस्थान में व्याख्यान दिया, नतीजा यह रहा कि बाबाजी के शिष्यों में से डेढ़ हजार हिंदी के प्रचार को तैयार हो गए।इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में हिंदी के एक हजार योद्धा सक्रिय हैं जो लोगों को हिंदी का महत्व समझाते हैं और हिंदी में हस्ताक्षर के संकल्प पत्र भरवाते हैं। संस्थान के इस आंदोलन को देश की अन्य हिन्दी सेवी संस्थाओं का भी साथ मिल रहा है। कश्मीर में तो 10 हजार बच्चों को उनके अभिभावकों ने प्रथम विषय हिंदी दिलाने में तत्परता दिखाई। इस बदलाव पर 2017 में महबूबा मुफ्ती सरकार के वक्त वादिस हिंदी शिक्षा समिति और जम्मू कशमीर पर्यटन विभाग अर्पण का सम्मान भी कर चुका है। दूसरी तरफ बंगाल में हिंदी के प्रचार के दौरान कई स्थानों पर उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा है।




 




No comments:

Post a Comment

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal, January - 2025 Issue