मकर संक्रांति पर्व विशेष रचनाएं
संक्रांति
उत्तरायण होकर सूर्य
पतंग संग करें मस्ती ।
तिल - गुमूंगफली
बिना बेगानी संक्रांति ।।
दूर करती खुशियों से
मन में फैली जो भ्रांति ।
देती रिश्तों में मिठास
मतभेद मिटाती संक्रांति ।।
ऊंची उड़ान भरें सद्भाव
प्रेम से रहना सिखलाती ।
पोंगल तो कही लोहडी
रुप में मनातें हैं संक्रांति ।।
पतंग
खुशियों की भरकर उड़ान
आसमान छू रहीं हैं पतंग ।
लेकर संग धागें की डोर
प्रेम का संदेश रहीं पतंग ।।
जीवन जीना सिखाती पतंग
भर देती खुशियों के नवरंग ।
शिखर पर पहुंचकर भी
करों न घमंड कहती पतंग ।।
शिखर पर देखकर ख्याति
शत्रु तैयार रहते काटने अंग ।
हौंसलों की भरकर उडान
जीत जाती है जंग पतंग ।।
बाल कविता
पतंग और चूहा
हाथी दादा लेकर आएं
बाजार से पतंग न्यारी ।
चूहा बोला मुझको दे दो
लगती है कितनी प्यारी ।।
चूहेजी ने पतंग का जैसे
ही पकडा मांजा - धागा।
नटखट पतंग के संग
सर-सर उड गए चूहे राजा ।।
✍ गोपाल कौशल
नागदा जिला धार मध्यप्रदेश
99814-67300
No comments:
Post a Comment