परदेश में...
मेराी सुमी इतनी बड़ी कब हो गई ,पता ही नही चला;कैसे रहेगी अकेले ?सोच- सोच कर मेरी तबीयत ख़राब हो गई थी |एक हफ़्ते सेछुप -छुप कर रोती थी ,सुमी सब समझ रही थी पर मेरे सामने कठोर ,बेपरवाह बनने की कोशिश करती|मुझे थोड़ा अजीब लगता था।सुमी का व्यवहार -कैसी लड़की है;संवेदहीन!”
दीपक मुझे समझाते -‘देखो सुमी का सपना है ,उसे पूरा करने दो ;मुश्किल से दाख़िला मिलता है,आक्सफोर्ड में ,उपर से छात्र- वृत्ति भी मिला है;मैं तो पारिवारिक समस्या के कारण नही जा पाया था|मैं अपना सपना ,सुमी के रुप में पूरा होते देखना चाहता हूँ |मेघावी सुमी का परचम विदेश की धरती पर भी लहरा रहा था|हर क्षेत्र में अग्रणी ,प्रतिभा की धनी थी मेरी बेटी|
सुमी का आलेख “हिन्दी भारत की शान” विशेष पुरुस्कार से नवाज़ा गया था|मैं और दीपक पहली बार विदेश गए थे|दर्शकदीर्घा में भारतीय पोशाक में बैठे हमदोनों गर्व से फूले नही समा रहे थे|
तीन साल हो गए थे सुमी को विदेश गए|इन्ही तीन साल में कहाँ से कहाँ पहुँच गई ;आज वो अपना घर ख़रीद ली थी |गृह प्रवेशकरवाना हैं ;बस आपलोगों को आना ही पड़ेगा |फरमान के साथ टीकट मेल कर दिया |हवाई जहाज़ में बैठे -बैठे मेरा मन उड़ चला उनदिनों कि याद में जब मैं सुमी के लिए एक भाई की चाहत में कई डॉक्टरी प्रक्रिया से गुज़री पर सारी कोशिश नाकामयाब सिद्ध हुई थी|दिल को समझा ली थी ;सुमी ही हमारी बेटी भी है और बेटा भी|
एयरपोर्ट से सीधे हमलोग सुमी के दिए पते पर पहुँचे |दरवाजे पर हमारे अगुवाई में सुमी मखमली रेशमी पीली साड़ी मेंसौन्दर्य की प्रतिमा ;सूर्यमुखी सी खिली आत्म विश्वास से भरी दिख रही थी|”फटाफट तैयार हो जाइए “-आपलोग पंडित जी आतेहोंगे|पूजा के बाद सुमी गेट के पास ले गई ,हमदोनों को |जहाँ छोटे से एक तख्ती पर पर्दा पड़ा हुआ था |सुमी ने पर्दा हटाने के लिएकहा ,कौतूहलवश हमदोनों ने एक साथ पर्दा हटाया “माँ”शब्द अंकित देख हमदोनों भाव विभोर हो गए|सुनहरे रंग में “माँ “मेरी सुमीके घर का नाम विदेश में शान से मुस्कुरा रहा था |अपने जड़ों से सुमी के प्यार को दर्शा रहा था|मुझे गर्व है ,की सुमी अपनी माटी कोनही भूली|
राँची (झारखंड)
राँची (झारखंड)
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