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Sunday, January 12, 2020

संस्कृत काव्य में 20वीं शताब्दी में वीरों के अतीव  का यथार्थ एवं रोमांचक चित्रण: एक अध्ययन

संस्कृत काव्य में 20वीं शताब्दी में वीरों के अतीव 
का यथार्थ एवं रोमांचक चित्रण: एक अध्ययन
       डॉ. चंचल जादोन
एमए, संस्कृत, पीएचडी, डॉ.बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा, उप्र.



 स्वतंत्रता मानव का जन्म सिद्ध अधिकार है। संसार का प्रत्येक व्यक्ति सृष्टि के प्रारम्भ से ही स्वतन्त्रता के प्रति विशिष्ट भावों से परिपूर्ण होकर प्रयासशील रहा है। भारतवासियों ने भी अंग्रेजी शासन की दुष्टता, उनके क्रर स्वभाव, दुर्नीति और स्वार्थ सिद्धि से पीढि़त होकर भारत वसुन्धरा को अपने प्राणों का बलिदान देकर मुक्त किया। भारत का यह दुर्भाग्य रहा कि विदेशी मुसलमानों तथा अंग्रेज दोनों ने ही भारत देश को अपने अधीन बनाकर, अनेक प्रकार से अत्याचार किये तथा भारत के वैभव, समृद्धि और साहित्य को विनिष्ट कर डाला। 
 मुगलशासन काल में स्वतंत्रता को सर्वस्व रूप मानकर भारतवासियों ने परतन्त्रता की जंजीरों में जकड़ी हुई भारत बसुन्धरा को मुक्ति दिलाने का निरन्तर प्रयास किया जिसमें राणा प्रताप ने स्वतंत्रता को सब कुछ मानकर देष के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।1 इनके अलावा दूसरी ओर शिवाजी ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ खोकर भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा को सभी दिशाओं में प्रसारित किया।2
 इसके बाद अंग्रेेजो ंके शासन काल में अंग्रेजों के दुराचार एवं दुष्टता को देखकर भारत बसुन्धरा दुखी हुई।3 जिसे आजाद कराने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की गरिमा, गोरव और स्वाभिमान देश की रक्षा के लिए पीडि़त हो उठे।4 जिसमें अंग्रेजों को उखाड़ फेकने के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन को प्रारम्भ करने वाले नाना साहब, धौधूपंत, सेनापति तॉत्याटोपे, बाबू कुॅवर सिंह, झॉंसी की रानी लक्ष्मीबाई, रानावेनी माधव, मौलवी अहमद, अल्लाहशाह, नबाव खान बहादुर खान और बेगम हजरत महल थे।5 जिन्होंने भारत देश की पराधीनता और दुर्दशा को समाप्त करने के लिए भारत मॉ के प्रति अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। यद्यपि यह क्रान्ति अंग्रेज सेना के द्वारा दवायी गयी लेकिन फिर भी अंग्रेज, स्वतंत्रता की ज्वाला को मिटा पाने में पूर्ण रूप से समर्थ न हो सके।8 
 भारत के समाज सेवकों में राजा राममोहन राय और केशवचन्द्र सेन ने देश के उद्वार एवं धार्मिक उन्नति के लिए प्रयास किया।9 स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना करके भारतीयों को अन्धविश्वास एवं अनेक सामाजिक कुरीतियों से निकालने का प्रयास किया।10 इनके अलावा रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानन्द ने भी विविध प्रयासों से भारत वसुन्धरा की पीड़ा को दूर करने का प्रयास किया।11
 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ लार्ड डलहौजी के कुशासन से प्रारम्भ हुआ। मंगल पाण्डे ने सबसे पहले बैरकपुर में सेनापति ड्यूशन का वध किया।12 नाना साहब क्रान्ति के पवित्र दूत बनकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।13 उसी समय दिल्ली में रानी वेगम महल ने प्राणों की आहूति देकर स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रदीप्त किया।14 इतना ही नहीं उस महारानी ने अपने देष और धर्म की रक्षा के लिये श्रेष्ठ वीरों को आहूत किया और प्राणों के समर्पण के दौरान भारत वसुन्धरा को स्वतंत्रता दिलाने के लिये निरन्तर प्रेरित किया। विद्रोह की वह ज्वाला एक ही स्थान पर स्थिर न रहकर वाराणसी, कानपुर, प्रयाग, झॉसी, और अवध आदि में फैल गयी15 विठूर क्षेत्र में नाना साहब ने विद्रोह के नेतृत्व को सॅभाल लिया। उत्तर प्रदेश में लखनऊ के बीच वाजिद अली शाह की पत्नी वेगम हजरत महल अपने पराक्रम का प्रदर्शन करेक सदा -सदा के लिए अमर हो गयी और उहोंने भारत देश के वीरों का आह्वान किया और उन्होंने आह्वान किया कि भारतवासियों केा प्राणों का समर्पण करके भी स्वतंत्रता की आग को समाप्त नहीं होने देना चाहिए।16 झॉसी की रानी लक्ष्मीबाई पत्नी गंगाधर राव ने भी स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपना सब कुछ बलिदान करके 1857 में अमरता को प्राप्त किया।17 बिहार राज्य में जगदीशपुर में बाबू कुॅवर सिह ने अंग्रेजी सेना को विनष्ट करके भारत वसुन्धरा की सेना को विनष्ट करके अपने नाम को अमर कर दिया।18
 श्री सिदो माझी, बिहार के श्री विश्वनाथ साहदेव, श्री अमर सिंह, वानपुर नरेश श्री मर्दन सिंह, छत्रसाल के कुलदीपक, श्री वख्तवली, श्री रावतुलाराम, लाला हुकुम चन्द्र जैन, श्री राव गोपाल देव, नर्तकी अजीजन, जोरापुर के शासक वालवीर अप्पा, गौंडा नरेश देवी नक्षसिंह, श्री अमर सिंह बॉडियॉ, विद्रोही श्री दाराव: आदि भारतीय वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन यह भारत देश का दुर्भाग्य रहा कि अनेक समस्याओं ने स्वतंत्रता की पावनाग्नि को धीरे-धीरे शान्त कर दिया लेकिन वह दावाग्नि शान्त न होकर भी विनष्ट नहीं हुई।19
 भारतीय क्रान्ति का द्वितीय चरण 1871 से 1884 तक चला। इस क्रान्ति ने अंग्रेजों की जड़ों को हिलाकर भारत देश को छोडऩे को मजबूर कर दिया। इस क्रान्ति में पहला पंजाब के शेर श्री रणजीत सिंह की है उन्होंने भारत माता की स्वतंन्त्रता के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।20 रणजीत सिंह के साथ कूका नाम वाले सिक्खों ने क्रान्ति का प्रारम्भ कर दिया। पटियाला राज्य के रण नामक ग्राम के पास युद्ध करते हुए विश्वास घात में पराजित हुए और कावन नामक अंग्रेजी उपायुक्त सामने लाये गये जहां उस दैत्य ने वीरों को तोपों से बंधवा दिया। उसकी पत्नी ने रामसिंह नामक बालक को मारने का विरोध किया तो निकृष्ट अंग्र्रेज ने उसके दोनों हाथ कटवा दिये और वह बालक मृत्यु को प्राप्त होकर सदैव-सदैवके लिये अमर हो गया।21 इतना ही नहीं मलीय युद्ध के सोलह वीर सूली से बाँधकर तीन दिन तक रखे गये और अन्त में वे सभी वीरगति को प्राप्त हो गये।22
 स्वतंत्रता की ज्वाला देश के प्रत्येक कोने में प्रज्वलित हो उठी। महाराष्ट्र में वासुदेव बलवन्त फडके ने महादेव गोविन्द रानाडे की घोषणा को सुनकर स्वतंत्रता की दावाग्नि को धारण किया। भारत की दुर्दशा और आर्थिक शोषण को देखकर उन्होंने व्याख्यान तथा अपने लेखों के द्वारा अंग्रेजी कुनीति को कहना प्रारमभ किया। बम्बई के राज्यपाल ने यह घोषणा की कि जो कोई फडके का सिर काट लेगा उसे एक लाख पुरुस्कार दिया जायेगा। उसके वीरतापूर्व कार्य को देखकर अंग्रेज घबरागये। मेजर डेनियल ने उसे पकड़कर अंग्रेजों के सामने कर दिया, लेकिन मरने से पहले फडके ने यह घोषणा की कि अपने देश में अंग्रेजों ने शासन को समाप्त करे लोकतन्त्र की स्थापना करनी चाहिए। 
 स्वतंत्रता संग्राम में, श्री चापेकर बान्धवों ने भारत बसुन्धरा के लिए अपने प्रणा का बलिदान करके शाश्वत कीर्ति को प्राप्त किया। इसमें अनेक वीरों ने मातृभूमि के प्रति अपना सब कुछ बलिदान कर दिया इन्होंने बचपन में ही यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं क्रान्ति के ध्वज को ऊँचा करूंगा और मृत्यु प्रयन्त तक अंग्रेजी सेना से युद्ध करूंगा। शिवाजी को आदर्श मानकर उन्होंने देष भक्ति को सर्वस्व माना। उनके साथ-साथ श्याम जी कृष्ण वर्मा तथा श्री लालाहरदयाल भारतीय क्रान्ति को समर्पित हो गये। उन्होंने लंदन में स्वर्ण जयन्ती क्रान्ति महोत्सव का आयोजन किया।23 गणेश सावरकर को देश में जैक्षन ने असह्म दण्ड दिया। इतना ही नहीं कृष्णपंत, विनायक और अनन्त कन्हेर तीनों वीर फासी को प्राप्त हुए लेकिन फासी पाकर भी इन वीरों ने अपनी कीर्ति को अमर कर दिया।24 इन वीरों के अलावा भी अनेक भारत के वीरों ने मातृभूमि के प्रति अपना सब कुछ बलिदान कर दिया, इन वीरों में श्री गेंदालाल जी दीक्षित, श्री मानवेन्द्र नाथराय, श्री अमीरचन्द्र, श्री अवध बिहारी, श्री भाई बालमुकुन्द, श्री बसन्त कुमार विष्वास, श्री भाई वतन सिंह, श्री भाग सिंह, श्री मेवसिंह, श्री पण्डित काशीराम, श्री गन्ध सिंह, श्री करतार सिंह, श्री वी0जी0 पिंगले, श्री सूफी अम्बा प्रसाद, श्री सोहन लाल पाठक, श्री बलवन्त सिंह, डा0 माथुर सिंह, श्री वन्ता सिंह, श्री यतीन्द्र नाथ मुकर्जी, श्री नलिनीकान्त वागची, श्री विनायक देष पाण्डेय25 श्री कृष्णधन घोष के पुत्र वारीन्द्र कुमार घोष26 लाला हरदयाल, श्री सोनलाल पाठक, रामप्रसाद विस्मिल27 श्री चन्द्रषेखर आजाद28 श्रीसुभाषचन्द्र बोस29 आदि वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 
 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदनमोहन मालवीय एवं मोतीलाल नेहरू ने जीवनके सम्पूर्ण सुखों का परित्याग करके स्वतंत्रता को सर्वस्व माना। धर्म परायण श्री मालवीय बाल शिक्षा में कष्टों को सहन करके अत्यधिक हर्ष के साथ देश के हित के कार्य में संलग्न हुए। देेश तथा समाज की वृद्धि को ही उन्होंने अपना सब कुछ माना तथा कांग्रेस के अध्यक्ष पद को सुषोभित किया। वे हिदुस्त्व के भक्त, देश प्रेमी तथा परोपकार की भावना से सदा युक्त रहे।30 
 इन स्वतंत्रता सेनानियों के अतिरिक्त, भारत देश की स्वतंन्त्रता के लिये, पुरुषोत्तमदास टंडन, आचार्य नरेन्द्र देव, श्री लालबहादुर शास्त्री, श्री बंकिम चन्द्र चटर्र्जीै, श्री स्वामी श्रद्धानन, श्री भाई परमानंद, श्री अलीबन्धवाँ, श्रीमती एनीबेसेन्ट, श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर, श्रीमती सरोजनी नायडू, श्री राजगोपालाचार्य, श्री भीमराव अम्बेडकर, श्री अब्दुल गफ्फार खान, श्री गणेश शंकर विद्यार्थी, श्री रफी अहमद किदवई, श्री आचार्य जे0वी0 कृपलानी, आचार्य विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण आदि सवतंत्रता सेनानियों के नाम उल्लेखनीय है। 
 इस तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक भारतीय मनीशियों, अनेक वीरों ने अपने धन मन  अर्पित करके प्राणों को न्यौछावर करते हुए विशेष सहयोग एवं महत्वपूर्ण योगदान देकर स्वतंन्त्रता को प्राप्त किया। संस्कृत काव्य में 20 वी शताब्दी के वीरे के अतीत का यर्थात् एवं रोमांचक चित्रण प्रस्तुत किया गया है, जो भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। सदैव से प्रत्येक वीर पुरुष एवं मनीषियों की भावना रही है कि प्रत्येक व्यक्ति आजाद रहकर 'जीओ और जीने दोÓ, 'फले फलो और फलने देते रहने के द्वारा विष्वबन्धुत्व अर्जित होता है। 
सन्दर्भ सूची:-
1.  मंगलम, भारतम् डा0 चन्दन लाल पराशर, 91
2. मंगलम, भारतम् डा0 चन्दन लाल पराशर, 92
3. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्ति वृत्तम, 2
4. भारतस्वातन्त्रयसंग्रामेतिहास, डा0 रमेशचन्द्र शुक्ल, पृ0 24
5. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्तिवृत्तम, 8, 9
6. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्ति वृत्तम, 12
7. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्ति वृत्तम, 6  
8.. वही 18 
9. वही 20
10. वही 29
11. वही 31
12. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्ति वृत्तम
13. वही 38
14. वही 45
15. भारतस्वातन्त्रयसंग्रामेहिताम, डा0 रमेश चन्द्र शुक्ल 42 
16. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भरतीय क्रान्तिवृत्तम् 55
17. वही 65
18. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, क्रान्तिवृत्तम् 120
19. राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, भारतीय क्रान्ति युद्धम 1
20 राष्ट्रगीतांजलि, डा0 कपिल देव द्विवेदी, क्रान्ति युद्धम, 6
20. वही 6
21. वही, 6
22. राष्ट्रगीतांजलि, कपिलदेव द्विवेदी, क्रान्ति युद्धम, 15
23. वही, 32
24. राष्ट्रगीतांजलि, कपिलदेव द्विवेदी, शान्ति युद्धम, 29, 30
25. वही, 36, 37, 38, 39, 40
26. वही, 41, 42, 43, 44, 45
27. राष्ट्रगीतांजलि, कपिलदेव द्विवेदी, शान्ति युद्धम, 131
28. वही 167 
29. राष्ट्रगीतांजलि, कपिलदेव द्विवेदी, शान्ति युद्धम, 44
पुस्तके:-
1. शिखाबन्धनम, डा0 रामशीष पाण्डेय, 2/1,2
2. सीताचरितम् आचार्य रमेशचन्द्र शुक्ल, 2/24
3. सुगमरामायण्, आचार्य रमेशचन्द्र शुक्ल, 14/106
4. मंगलम् भारतं, डा0 चन्द्रनलाल पाराशर, 126
5. भग्यवन्तो नरा जन्म लब्ध्वा शुभं, यत्र जाता: प्रसन्ना महन्तो ध्रुवम।  
6. भाति में भारतम, डा0 रमाकान्त शुक्ल, 76


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