वर्चुअल लाईब्रेरी वर्तमान दौर की मांग और आवश्यकता : पुखराज यादव
छत्तीसगढ़|| कौन जानता था? ना वो प्राचीन काल में वृक्ष की छाल से कागज का आविष्कार्ता वह मिस्रवासी और लगभग ईसा पूर्व 16वीं शताब्दी में राजा एमोनोफिस के काल का एक ग्रंथ वृक्ष-तत्व-निर्मित कागज प्राचीन मिस्र में अनेक पुस्तकों के निर्माण एवं संग्रहणकर्ता हुए श्रेष्ठ ज्ञानीजन, की पन्नों और किताबों के दौर से होते हुए ग्रंथालय, संग्रहालय से होते हुए लोकतांत्रिक दौर में पुस्तकालय और भी अत्याधुनिक होगा। वर्तमान से लगभग ११० वर्ष पूर्व भारतवर्ष में पुस्तकालय आंदोलन की गूंज तात्कालिक बड़ोदा राज्य से उठी। भारतवर्ष में शनैः-शनै: विभिन्न राज्यों में पुस्तकालय आंदोलन चलते रहा।भारत के महान पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ॰ एस. आर. रंगनाथन के प्रयत्न से सन् 1933 ई. में 'लाइब्रेरी ऐक्ट' विधानसभा द्वारा पारित किया गया। परम श्रद्धेय डॉ. रंगनाथन की पुस्तकालय के पंच महाशूत्रों में पंचम् पुस्तकालय एक वर्धनशील संस्था है। शायद ही किसे ने कल्पना उस समय की होगी की एक दौर ऐसा भी आएगा की पुस्तकालयों की उपलब्धता लोगों के उँगलियों के एक टच पर भी आधारित हो सकता है।
वर्तमान में एनडील, ई-ग्रंथालय, और सैकड़ों की तादात में ई-बुक डाऊनलोड़र उपलब्ध है। इसे अनुक्रम या ईलेक्ट्रानिकी लैस विद्युत पृष्ठों को ऐसे समझने का प्रयास करते हैं। पहले पाठकगन घंटों लाईब्रेरी में बैठकर अपनी अतृप्त जिज्ञासाओं के वनाग्न को ज्ञान की प्राप्ति रूपी वर्ष से शांत करते थे। लेकिन वर्तमान फास्ट फारवर्ड जनरेशन के लिए हर सुविधाएँ,जानकारियों की उपलब्धता तीव्र से अति तिव्र होना आवश्यक है। इसी के चलते ऐसे ई- अनुप्रयोगों का जन्म हुआ जो पुस्तकालय को वर्चुअलता की सीढ़ी के सोपान दर सोपान आगे बढ़ा रहा है। कम्प्यूटर ने विकास और फिर 1989 टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को सरल बनाने के लिए ब्राउज़रों, पन्नों और लिंक का उपयोग कर के वर्ल्ड वाइड वेब बनाया और 1998 में गूगल के आने के बाद इंटरनेट का चेहरा ही बदल गया जिससे आज हम सब वाकिफ हैं। शनै:-शनै: पुस्तकालयों की ओर भी यह ई-प्रौद्योगिकी दौड़ने लगीं और लाईब्रेरी में प्रारंभिक रूप में केवल कम्प्यूटर डाटा संरक्षण हेतू रखा गया। पुस्तकालयों का संचालन जब काम्प्यूटर्स में विशेष साफ्टवेयर्स जैसे- डेलप्लस, कोहा, सोल से होने लगा। फिर डवलेपर्स ने पुस्तकालय को और भी रोचक, आकर्षक बनाने की ठान ली, जिससे वर्तमान समय में लाईब्रेरी २.० के पश्चात् लाईब्रेरी ३.० यानी पूर्ण वर्चुअल होने को तैयार है। साथ ही वैश्विक बाजार में सूचनाओं की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। जिसके चलते कई सॉफ्टवेयर कम्पनियाँ, डेवलेपर्स और इंजिनियर्स में वर्चुअल लाईब्रेरी की कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक द्वंद प्रारंभ हो गया है। भावी समय में पुस्तकालयों का अपडेटेड वर्जन ३.० का अानंद अलहदा ही होगा।
पुखराज यादव "प्राज"
प्रमुख्य लाईब्रेरियन
आईएसबीएम विश्वविद्यालय
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment