आया बसंत
—————————
अहा !बसंत का देखो पीत दर्पण...
ऋतु राज का पावन क़दम
पुष्प गुच्छों के झूमते सरगम
नवल देह तरू वर पत्र पहन
तितलियों की चंचल तनमन
बगीया की देखो अद्भुत यौवन
अहा !बसंत का देखो पीत दर्पण ...
अमिया की डाली गुँथीं मंजरी
ख़ुशबू फैली मादक रसभरी
खेत सजी सजनी की पियरी
निहारती प्रकृति प्रेमी सुंदरी
अहा !बसंत का देखो पीत दर्पण |
गेंदा ,सरसों के लहराते फूल
सींच लूँ मन को बसंत के रंग में
सराबोर हो जाउँ बासंती बयार में
माँ शारदा के आगमन का दस्तक है
धरा ने देखो अद्भुत शृंगार किया है
अहा! बसंत का देखो पीत दर्पण |
मंद मंद हवाएँ ,शोख़ फ़िज़ाएँ
गुनगुना रही फाल्गुन के गीत
सुर्ख़ टेसू के फूल के रंग से
भीगे तन मन गोरी प्रेम से
अहा !बसंत का देखो पीत दर्पण |
सविता गुप्ता-(स्वरचित)
राँची (झारखंड)
ISSN : 2349-7521, IMPACT FACTOR - 8.0, DOI 10.5281/zenodo.14599030 (Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma
Saturday, February 15, 2020
आया बसंत
Aksharwarta's PDF
-
मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या | मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई भूमिका : लोक ...
-
सारांश - भारत मेे हजारों वर्षो से जंगलो और पहाड़ी इलाको रहने वाले आदिवासियों की अपनी संस्कृति रीति-रिवाज रहन-सहन के कारण अपनी अलग ही पहचान ...
-
हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत : भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र “निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल” अर्थात अपनी भाषा की प्रगति ही हर...
No comments:
Post a Comment