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Friday, February 21, 2020

हिन्दी ग़ज़लों में मानवीय  प्रेम और प्रकृति

हिन्दी में ग़ज़ल की परंपरा चाहे जहां से शुरू हुई हो, प्रेम उसके रगों में मौजूद रहा है। असल में ग़ज़ल एक प्रेम  काव्य है। ग़ज़ल का अर्थ अगर स्त्रियांे से बातें करना है,तो यह स्त्री वो महबूबा है, जिससे शायर मोहब्बत की बातें करता है। इसलिए हिन्दी उर्दू दोनों ग़ज़लों में प्रेम शिद़दत के साथ मौजूद रहा है। यह अलग बात है कि धीरे-धीरे ग़ज़ल ने अनय सामाजिक मुद्दों को भी अपने में समाहित कर लिया। लेकिन तब भी प्रेम अपनी जगह महफूज़ रही। ग़ज़ल वो विधा है जो इशारों से बातंे करती है लेकिन यह संकेत इतने दुरूह नहीं होते कि समझ में न आएं। यहां जो प्रकृति है, वो भी खुले रूप में शायर का साथ निभाती है। जब कवि या शायर खुश होता है, प्रकृति हंसने लगती है और उसके उदास होते ही प्रकृति की आंखें शबनम की बूंदों की तरह भींग जाती हैं। यह प्रकृति सचमुच मानव की सहचरी है। मानव सभ्यता का विकास इसी प्रकृति की गोद में हुआ इसे ही शकुंतला अपनी सखियां मानती थी और यक्ष इसी के माघ्यम से अपनी तकलीफें प्रिया तक पहंुचा देते थे।
हिन्दी साहित्य में प्रकृति वर्णन की अनेक शैलियां प्रचलित हैं, जैसे आलंबन रूप में, उद्दीपन रूप में, प्रतीकात्मक रूप में, अलंकार विद्यान के रूप में, पृष्ठभूमि के रूप में, बिंब-प्रतिबिंब रूप में, दूती रूप में, उपदेशिका रूप में, रहस्यात्मक रूप में, या संवेदना के रूप में। हिन्दी ग़ज़ल में भी प्रकृति कभी उद्दीपन के रूप में हमारे सामने आती है, तो कभी आलंवन के रूप में 
प्रेम से ग़ज़ल के तो पैदाइशी रिश्ते रहे हैं। जैसा कि कभी ग़ालिब ने भी कहा था- 
हर चन्द हो मुशाहदए-हक़ की गुफतगू
बनती नहीं है  बादओ सागर कहे बग़ैर
रतिलाल शाहीन ने भी अपने  आलेख में लिखा है- हिन्दी मे अमीर खुसरो, कबीर, बहादुर शाह जफ़र  भारतेन्दु, बद्रीनारायण चैधरी,- प्रेमधन, गया प्रसाद शुक्ल स्नही सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के अलावा शमशेर बहादुर सिंह ने भी ग़ज़लें लिखी है। मगर उनका कथ्य प्रेम, श्रृगार के इर्द-गिर्द ही रहा है।1 यह अलग बात है कि दुष्यंत ने गजलों को आम लोगों की तकलीफों से जोड़ने की चेष्टा की, और उसमें वो कामयाब भी हुए, लेकिन उनकी ग़ज़लों में भी पे्रम के तत्व मौजूद हैं-
अगर खुदा न करे सच से ख्वाब हो जाए
मेरी  सुबह  हो तेरा  आफ़ताब  हो जाए
तुमको  पुकारता  हूं सुबह से  ऋतंबरा
अब शाम हो गई है मगर दिल नहीं भरा
लालसा लाल तरंग की बातों में सच्चाई भी है कि हिन्दी ग़जल आधुनिक संबंध से जोड़कर रूमानियत की आदिम गुफाओं से खींचकर आम आदमी के निकट पुहंचाने का सुढृढ़ एवं पावन कार्य दुष्यंत कुमार ने किया।2
ग़ज़ल एक तरीके़ का काव्य है। वो चाहे  प्रेम का शेर हो, या उसमें कोई अन्य समस्याएं उठाई गई हों, अगर वो पाठकांे को प्रभावित नहीं करतीं तो वो काव्य की कोई विधा हो कम से कम ग़ज़ल तो नहीं होगी। रामप्रसाद शर्मा महिर्ष इसे स्वीकारते हुए कहते हैं कि “सबसे विशेष गुण जो शेरों में होना चाहिए वह है अद्भुत वर्णन शैली3 ।
ग़ज़ल लेखन की काव्य कला वास्तव में उपयाओं प्रतीकों और संकेतों की कला है। उर्दू में ग़ज़ल जब लोकप्रिय हुई तो धीरे-धीरे अन्य भाषाओं ने भी उसे अपनाया भारत में ग़ज़ल सर्वप्रथम दक्षिण के कवियों ने शुरू की। राजधानी दिल्ली के आसपस उस समय जो ग़ज़ल लिखी जा रही थी, उसमें लगभग सभी फारसी भाषा के प्रतीक और उपमाओं-शमां, परवाना, लैला, मजनूं, गुल- बुलबुल आदि का इस्तेमाल हो रहा था । फिर भी ग़ज़ल अपनी शैली के कारण लोकप्रिय होती चली गई। इसके एक शेर में एक मुकम्मल बात कह देना लोगों को पसंद आने लगा। डाॅ0 गिरिराजशरण अग्रवाल ने भी ग़ज़ल पर विचार करते हुए इस बात की तस्दीक की है कि बड़ी से बड़ी बात को कम शब्दों में कहना ग़ज़ल की पहली विशेषता होनी चाहिए4।
इसी बात को डाॅ0 नरेश और स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि किसी भी शेर को अर्थ तक पहुंचाने के लिए उसके आगे या पीछे के शेर की सहायता अपेक्षित नहीं है।5
सुविधा के लिए हिन्दी ग़ज़ल में प्रकृति और प्रेम का निरूपण हम इस प्रकार भी कर सकते हैं-
प्रारंभिक युग की ग़ज़लों में प्रकृति और प्रेमः- हिन्दी ग़ज़ल का आरंभ अमीर खुसरो से माना जाता है।  उनकी हिन्दी में लिखी गई ये ग़ज़ल - जो हाले मिस्की मकुन तग़ाफुल दुराए नैना बनाए बतियां काफ़ी प्रसिद्ध है, जिसमें प्रेम और प्रकृति का संुदर निरूपण किया गया है। उनके बाद कबीर की कुछ ग़जलों को भी रेखांकित किया जाता है। कबीर की ये ग़ज़ल-
हमन  है  इश्क़  मस्ताना
हमन  को  होशियारी क्या
रहे  आजाद  इस जग में
हमन दुनिया को यारी क्या
हिन्दी जगत में काफ़ी प्रसिद्ध है
भारतेन्दु युग की ग़ज़लों में प्रेम और प्रकृतिः- भारतेन्दु ने प्राय: हिन्दी गद्य और पद्य की तमाम विद्याओं को अपनाया। उन्होंने रसा उपनाम से ग़ज़लें भी लिखीं। ज्ञानप्रकाश विवेक ने उनकी ग़ज़लों का अध्ययन करते हुए लिखा है कि भारतेन्दु की ग़ज़लें बेशक प्रेम परक हैं। उनके शेरों में शेरीयत, लोच और नाद सौंदर्य उत्तम है6। उदाहरण के लिए भारतेन्दु के ये शेर देखें जा सकते हैं-
दिल मेरा ले गया दग़ा कर के
बेवफा  हो गया  वफ़ा कर के
हाव-भाव के निरूपण में बिहारी अपने दोहे में बेजोड़ हैं। भारतेन्दु में यही बिहारी वाली नफ़ासत पाई जाती है। उनके एक शेर में प्रेम के साथ प्रकृति भी साकार हो गई है-
अजब जोबन है गुल पर आमदे फसले बहारी है
शिताब आ साकिया गुलरू  की तेरी यादगारी है
भारतेन्दु के समकालीन गोपाल लाल गुल की ग़जलों का संग्रह गुलबहार नाम से प्रकाशित है, जिनकी अधिकांश ग़ज़लें प्रकृति और प्रेम पर है। देखें एक शेर-
इश्क की मंज़िल कडी  है नाम सुन कांपे है लोग
इसलिए उसकी गुबां  पर   फ़िक्र लाना  है बुरा
भारतेन्दु युग में ग़ज़ल की दृष्टि से बद्रीनारायण चैधरी प्रेमधन का नाम अत्यधिक महत्वपूर्ण है। शुक्ल ने कहा था कि  प्रेमधन के पास कवि ह्रदय था। प्रेमधन ने अपने समय में प्रचलित हर महत्वपूर्ण विषय को अपनी कविता का उपजीव्य बनाया है, जिसमें प्रेम और प्रकृति की मौजूदगी भी रही है। उनका एक शेर है-
अपने आशिक़ पर सितमगर रहम करना चाहिए
देखकर   एकबारगी  उससे  न फिरना चाहिए
द्विवेदी युग में प्रकृति और प्रेम का रूपः- द्विवेदी युग हिन्दी भाषा और हिन्दी सहित्य की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है। इस काल ने हिन्दी साहित्य को गंभीर निबंधकार, समालोचक, तो दिए ही भाषा की दृष्टि से भी हिन्दी समृद्ध बनी। द्विवेदी कृत सरस्वती पत्रिका ने काव्य की अन्य विधाओं के साथ ग़ज़ल को भी स्थान प्रदान किया। इस समय के लाला भगवानदीन, और गया प्रसाद शुक्ल सनेही महत्वपूर्ण ़गज़लकार साबित हुए। लाला भगवानदीन हिन्दी-उूर्द, और व्रजभाषा तीनों में पावंदी से लिखते थे। उनकी ग़ज़लों के बारे में डाॅ0 इन्द्रनारायण सिंह ने लिखा है कि-दीन जी की हिन्दी ग़ज़लों में देश की स्थिति, पारिवारिक और सामाजिक संबंध के साथ प्रेम और सौन्दर्य की भावनाओं की भी अभित्यक्ति हुई है7। दीन का ये मशहूर शेर तो सबकी जुबान पर है-
तुने पांवों में  लगाई मेहंदी
मेरी आंखों में समाई मेहंदी
इस समय के हिन्दी ग़ज़लकारों में सनेही जी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। आप त्रिशुल नाम से भी ग़ज़लें लिखते थे।
इसी दौर में प0 रामनरेश त्रिपाठी, और सत्यनारायण कविरत्न की भी ग़ज़लें पढ़ने को मिलती हैं।
छायावाद में ग़ज़ल और प्रकृति का वर्णनः- डाॅ0 सरदार मुजावर के अनुसार-हिन्दी की छायावादी ग़ज़लों का विषयगत परिप्रेक्ष्य विविधतापूर्ण रहा है।  ये विविधताएं छायावादी ग़ज़ल को एक विशिष्टता प्रदान करती है8।
छायावादी कवि निराला ने अपनी ग़ज़लों में प्रेम और श्रृंगार को एक प्रमुख विषय के रूप में चुना है। उनके कुद शेर देखे जा सकते हैं-
तुम्हें  देखा    तुम्हारे   स्नेह के  नयन देखे
देखी सलिला नलिनी के सलिल शयन देखे9 ।
भेद कुल खुल  जाए वो  सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए वो पँूजी तुम्हारे  मिल में है10।
ठीक उसी प्रकार जयशंकर प्रसाद ने भी संध्या रूपी युवती के माध्यम से प्रकृति के उद्दीपन के साथ प्रणय भाव की व्यंजना की है-
अस्ताचल पर युवती संध्या की खुली अलक धुंधराली है
लो मणिक मदिरा की धारा  अब बहने लगी निराली है
अपने एक अन्य शेर में प्रसाद ईश्वर से प्रेम- रसा का प्याला पिलाने का आग्रह करते हैं-
अपने असुप्रेम अरस अका प्याला पिला दो मोहन
तेरे को अपने को हम जिसमें भुला दे मोहन-11
शमशेर और दुष्यंत की ग़ज़लों में प्रेम और प्रकृति का रूपः-शमशेर बहादुर सिंह (1911.1993) हिन्दी के ऐसे शयर हैं, जिन्होंने उर्दू ग़ज़ल का बारीकी से अध्ययन किया है इसलिए उनकी ग़ज़लों में उर्दू बाला लबो लहजा पाया जाता है। जैसा कि डाॅ0 विश्वनाथ त्रिपाठी ने भी कहा है- शमशेर उर्दू में बाजाब्ता ग़ज़ल कहते थे................शमशेर जब उर्दू में रचना करते हैं तब अधूरा वाक्य नहीं लिखते12।
शमशेर की शयरी को ज्ञानप्रकाश विवेक ने तलाश की शायरी माना है। उनमें एक बेचैनी है, यह बेचैनी अपने लिए भी है, और समाज के लिए भी इस संदर्भ में शमशेर के कुछ शेर देखे जा सकते हंै-
वही उम्र का एक पल कोई लाएं
तडपती हुई सी ग़ज़ल कोई लाए
फिर निगाहों ने तेरे दिल  में कहीं चुटकी ली
फिर  मेरे  दर्द ने   पैमान वफ़ा  का  बांधा
दिल जिनमें ढूंढ़ता  था  कभी अपनी  दास्तां
वो  सुर्खियां   कहां है  मोहब्बत  के बाब में
हिन्दी ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत ने अपना साहित्यिक जीवन बारह वर्ष की अवस्था में ही प्रारंभ कर दिया था। उनकी लेखनी की शुरूआत नई कविता के एक बेहद संभावनाशील कवि के रूप में हुई थी। फिर दुष्यंत जब ग़ज़ल लिखने लगे तो मानो उनकी कविता,कहानीकार, और  नवगीत का रूप दबकर रह गया। फिर एक समय में तो हिन्दी ग़ज़ल का मतलब ही दुष्यंत समझा जाने लगा।
दुष्यंत की ग़ज़लों में जहां आम आदमी की विवशता, संधर्ष, धुटन, कुंठा, क्रांति तथा बेचैनी का रूप है। वहीं प्रेम और प्रकृति का खुशरंग भी पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है कुछ शेर मुलाहिजा हो-
हो गई है पीर  पर्वत  सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
तेरी सी ग़ज़ल तेरे से काफिए कहां
एक  अधूरा  मतला  गुनगुनाएं हम
रह-रह आंखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे  और बढ़ें  तो शायद दृष्य सुहाने आएंगे13।
चांदनी  छत पे चल  रही  होगी
अब   अकेली  टहल रही  होगी
दुष्यंत के संबंध में डाॅ0 विनीता गुप्ता लिखती है कि दुष्यंत की ग़ज़लों में जहां प्रेम की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। वहां उसका उदात्त भावनात्मक पक्ष उभर कर सामने आता है14।
समकालीन हिन्दी ग़ज़लकारों में प्रेम और प्रकृति का अंकनः- हिन्दी का मौजूदा वक्त ग़ज़ल के लिहाज से अपने स्वणिर्म काल में है। हिन्दी कविता की साहित्यिक विद्या के रूप में ग़ज़ल ने अब पूरी पहचान बना ली है। आज की हिन्दी ग़ज़ल जीवन के विविध पक्षों  का चित्रण करती है। जन-सामान्य के संधर्ष, उसकी पीड़ा, धात-प्रतिधात को हिन्दी ग़ज़ल ने मजबूती के साथ उठाया है।
समकालीन हिन्दी ग़ज़लों में जो प्रेम का रूप है उसमें पूरी नफ़ासत और नज़ाकत है।
वास्तव में प्रेम एक शाश्वत सत्य है, और प्रकृति उसकी सहचरी है, जो उसके हर-दुख सुख में शामिल रहती है। इस संदर्भ में समकालीन हिन्दी ग़जलकारों के कुछ शेर देखे जा सकते हैं-
चांद देखा था  भंवर से उगता हुआ
तेरा चेहरा न था मुझको धोखा हुआ
        - गिरिराजशरण अग्रवाल
पास आकर   हमें दूर जाना पड़ा
प्यार में ये चलन भी निभाना पड़ा
        -उर्मिलेश
दो दिलों के बीच में दीवार  सा अंतर न फेंक
गीत गाती बुलबुलों पर इस तरह पत्थर न फेंक
        - कुँअर बेचैन
क़िस्से नहीं हैं ये किसी रांझे की हीर के
ये  शेर हैं  अंधेरे से  लड़ते  ज़हीर के
        - ज़हीर कुरेश
हम तेरे  प्यार में ऐ यार वहां तक  पहुंचे
जहां ये भूल गए हम कि कहां तक पहुंचे
        - नीरज
आज उसकी मेज पे गुलदान है
ये चमन जिनके  लिए दुकान है
        - शिव ओम अंबर
हथेली पर रखी  है क्यों निगाहों में नहीं आती
ये कैसी ज़िंदगी है जो ख्यालों में नहीं आती15।
        - विनय मिश्र
झुलसती धूप थकते  पांव मीलों तक नहीं पानी
बताओ तो अवहां  धोऊं  की   ये परेशानी16।
        -हरेराम समीप
हो  गया  गुम  मेरी  वफ़ा  लेकर
कल मिला था  कोई अदा लेकर17।
    -वर्षा सिंह
गिरिराजशरण अग्रवाल हिन्दी के समृद्व ग़ज़लकार है। सन्नाटे में गूंज उनकी ग़ज़ल की चर्चित कृति है। प्रेम और प्रकृति का रंग उनकी ग़ज़लों में भी है। उनके एक-दो शेर मुलाहिजा हों-
इस  वसंती रूत जरूरी है हर इक पतझड़ के बाद
फूल क्यों खिलते हैं फसलों पर धटा छाती है क्यांे-
        - गिरिराजशरण अग्रवाल
हर नया मौसम  नई संभावना  ले आएगा
जो भी झोंका आएगा ताज़ा हवा ले आएगा
     -गिरिराजशरण अग्रवाल
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज की हिन्दी ग़ज़ल वास्तविक जीवन से संबंधित है। इसलिए उसमें प्रेम और प्रकृति भी इसी लोक की भूमि है। यहां जो स्त्री है वो कोई परी  नहीं है वो धर-बार देखतेी है। काम-काज करती है। जीवन के लिए संधर्ष करती है,और उसी हल्दी वाले हाथों से प्रेम की खुशबू भी महसूस करती है। प्रेम की इसी संरचना,कथ्य और रूप के बारे में अनिरूद्व सिन्हा कहते हैं- परिस्थितियों से विक्षुब्ध रहने के बाद भी गजल अपनी मनोहारिणी वृ़ित्तयों और नवरस मादकता से लबालब है18।
कहना न होगा कि ग़ज़ल तमाम विषयों को अपने अंदर समेटते हुए भी अपने प्रणय भावना से खुद को विमुक्त नहीं करती।
संदर्भ ग्रंथ
1. आरोह-गजल अंक - पृष्ठ-28
2. नवोदित स्वर अंक-02,वर्ष 1985
3. ग़जल और ग़ज़ल की तकनीक- रामप्रसाद शर्मा महिर्ष पृष्ठ, 27 जवाहर पब्लिशर्स,वर्ष - 2009 
4. हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ ग़ज़लें-गिरिराजशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर पृष्ठ 07,वर्ष‘1982
5. हिन्दी ग़जल दशा और दिशा- डाॅ0 नरेश,पृष्ठ, वाणी प्रकाशन दिल्ली प्रथम संस्करण वर्ष 2004
6. हिन्दी ग़जल की विकास यात्रा ज्ञान प्रकाश विवेक पृष्ठ-46 हरियाणा साहित्य अकादमी वर्ष-2006 प्रथम संस्करण
7. हिन्दी ग़जल शिल्प एवं कला डाॅ0 इन्द्रनारायण सिंह पृष्ठ-67, रोहतास हिन्दी साहित्य सम्मेलन सासाराम,प्रथम संस्करण वर्ष  2007 
8. हिन्दी की छायावादी ग़ज़ल सरदार मुजावर पृष्ठ-15, वाणी प्रकाशन प्रथम संस्करण पृष्ठ-2007
9. बेला निराला पृष्ठ-36
10. वही- पृष्ठ- 75
11. कानन कुसुम प्रसाद- पृष्ठ-84,85
12. आजकल शमशेर अंक,पृष्ठ-5 सितंम्बर 1993
13. साये में धूप दृष्यंत कुमार पृष्ठ-35
14. हिन्दी ग़ज़ल की विकास यात्रा- विनीता गुप्ता मनीषा प्रकाशन गाज़ियाबाद पृष्ठ-151
15. सच और है- विनय मिश्र,मेधा बुक्स पृष्ठ-110 
16. अलाव ग़जल अंक मई अगस्त 2015 पृष्ठ-455
17. ग़ज़ल दुष्यंत के बाद दीक्षित दनकौरी बानी प्रकाशन वर्ष 2006
18. हिन्दी ग़ज़ल का सौदर्यात्मक विश्लेषण -अनिरूद्व सिन्हा जवाहर पब्लिशेसर्स नयी दिल्ली मार्च 2009
           
           -डाॅ0 ज़ियाउर रहमान जाफरी 
        उच्च विद्यालय माफी़2 वाया- आस्थावां
       जिला-नालन्दा,बिहार,803107
         मो0 नं0- 9934847941


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Aksharwarta International Research Journal, January - 2025 Issue