मेरी आवाज़ सुनो
उजाले की सुनसान गलियाँ
शाम की गुलज़ार रतियॉ
घुँघरुओं और ढोलक की बतिया
बंद कपाटों कि सिसकीयॉ
रोज़ रोज़ परोसी जाती हूँ
हँसते हँसते पेश आती हूँ
खनकते सिक्कों मे तोली जाती हूँ
अंधेरी रातों के खोटे प्यार मे जलती हूँ
उजाले मे अपनी पहचान ढुंढती हूँ
श्रापित जीवन भोग रही हूँ
पल पल हर पल मर रही हूँ
आत्मा की चित्कार किसे सुनाऊँ
है कोई फ़रिश्ता जो मेरी आवाज़ सुने
रसहीन ज़िन्दगी मे स्वाद भरे
चारदीवारी से टकराती मेरी आवाज सुने
ख़ता क्या थी मेरी इस दर्दे दिल की पुकार सुने
घुटती साँसों मे ज़रा सी सुकून भर दे
ज़िन्दगी के इस दलदल को नरम दूब कर दे
क्या मजबुरी थी ए जननी तुझे
आ जाओ एक बार मेरी पहचान दे दो
कोई तो इक पता बता दो
सीने से लगा कर मेरी आवाज़ सुन लो।
सविता गुप्ता
राँची (झारखंड)
ISSN : 2349-7521, IMPACT FACTOR - 8.0, DOI 10.5281/zenodo.14599030 (Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma
Saturday, February 15, 2020
मेरी आवाज़ सुनो
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