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Friday, February 21, 2020

प्रवासी साहित्यकार रामदेव धुरंधर के उपन्यासों में गिरमिटिया मजदूरों की समस्याएं:-

सर्वविदित हैं कि प्रवासी हिंदी साहित्यकार रामदेव धुरंधर के उपन्यासों में गिरमिटिया मजदूरों की समस्या व्यक्त की गई हैं।जिसे गिरमिटिया मजदूरों को भारत से विदेशों तक पहुँचाया जाता था। क्योंकि यू0पी0 और बिहार से उन गिरमिटिया मजदूरों को ले जाया गया जहाँ बेरोजगारी और अकाल पड़ी हुई थी और बेरोजगारी की स्थिति अपनी चरम सीमा पर थीं। तमाम बड़े बड़े पूंजीपति व मिल मालिकों ने गिरमिटिया मज़दूरों के साथ शारीरिक व मानसिक रूप से शोषण करते थे। यहाँ तक कि उन्हें पैसों का लालच देकर भारतीय एस्टइंडिया  कंपनी के सहयोग से विदेश में भेजा गया। बस उन्हे ये पता था कि विदेश में जाकर खूब पैसा कमाएंगे और घर पर अपनी पत्नी व बच्चों का भरण पोषण कर सकेंगे। इसी मोह माया और लालच में गए। यहाँ तक सभी गिरमिटिया मजदूरों को एक समूह और टोली बनाकर समुंद्री जहाज से भेजा गया। लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि पैसों के लालच में आकर घर द्वार छोड़ना पड़ेगा। ये व्यवस्थाएं उस दौर से लेकर उनसे काम करवाया जा रहा हैं। मॉरीशस के प्रसिद्ध जाने माने लेखक रामदेव धुरंधर गिरमिटिया मजदूरों की पीड़ा व वेदना को समझा हैं। इस लिए उनके उपन्यासों में गिरमिटिया मजदूरों की पीड़ा ही नहीं, बल्कि उनकी भारतीय संस्कृति में मॉरीशस के क्षेत्रो को स्पष्ठ कर दिए हैं। आज 21वी सदी के दौर में आकर उन्हें समझते हैं और उनकी वेदना से रूबरू होते हैं। 18वी और 19 सदी के दौर में उन मजदूरों को पैसों की लालच में काम करवाया गया और उन्हें गिरोह तथा टोली में रखकर पाँच साल तक काम करवाते थे।

यहाँ तक कि उन्हें पुरानी गिरमिटिया के नाम से जानते तो  हैं ही  ,बल्कि पुराने प्रवासी के नाम से ही जानते हैं। इस लिए मॉरीशस के प्रवासी हिंदी साहित्यकार रामदेव धुरंधर को समझना है तो उनका वृहद छः खंडों में पढ़ना होगा। तभी असहाय गिरमिटिया मजदूर को समझ जाएंगे। इस लिए हम सभी को जानना बेहद जरूरी हैं कि वे लोग कैसे जीवन यापन को करते हैं।रामदेव धुरंधर जी कहते हैं मैं उस मजदूर की बात करता हूँ।जो घर परिवार से अकेला है। अगर उस अकेले पन को कोई

लेखक लिखता हैं। तो मॉरीशस के प्रसिद्ध उपन्यासकार रामदेव धुरंधर हैं ।उनके चौथे ,पांचवे और छठवें खंड में गिरमिटिया मजदूरों की जिक्र की गई हैं।यहाँ तक की गिरोह में रखना तो आसान हैं।लेकिन गिरोह से बाहर निकाल देना ठीक नहीं हैं। मैं आप सभी को बताना चाहता हूँ कि वे लेखक व गिरमिटिया मजदूर जो भारत से गए और वहाँ पर रामायण महाभारत ,वेद ,पुराण और श्रीमभगवत गीता को सुबह शाम  ध्यान एकाग्र करते हैं। एक गाँव की कहावत हैं कि 

 

'भारत भले ही छूट जाए लेकिन प्राचीन ग्रंथों को कैसे भूल सकते हैं।" 

शायद इस लिए अपनी संस्कृति व सभ्यता को कभी भूलें ही  नहीं, अगर भूले भी  हैं तो गोरे चेहरों वाले अंग्रेजो का बहुत ही व्यापक प्रभाव हैं और यह प्रभाव शोषक और शोषण का एक मात्र उद्देश्य था। यहाँ तक कि गिरमिटिया मजदूरों को काले चहरों और कपड़ो से पहचाने जाते हैं। और पथरीली जमीन पर काम करवाते थे। ये स्थिति विदेशो की धरती पर गिरटिया मजदूरो के साथ होता था मॉरीशस के लेखक होने कारण गिरमिया मजदूरों की 

पीड़ा को समझा हैं।

इस लिए 26 और 27 साल की उम्र में हिंदी लेखन के क्षेत्र में निरंतर जुड़े  रहे और आज उन्हें भारत से लेकर विदेशों तक जानते हैं।इस लिए  गिरमिटिया मजदूरों के लिए यह उपन्यास लिखना पड़ा।उनसे सहा नही गया।और अंत मे आकर गिरमिटिया मजदूरों को भारत से लेकर विदेश की धरती पर जाने वाले को हिंदी साहित्य के विधाओं में जोड़ दिए हैं। यही कारण हैं कि गिरमिटिया मजदूरों की समस्याए कई भागों में विभाजित की गई हैं और हम सभी को आकलन करना बेहद जरूरी हैं कि 

आखिर में गिरमिटिया मजदूरों को लेकर प्रश्न बार- बार उठता हैं। गिरमिटिया मजदूर कौन हैं? उन्हें गिरमिटिया मजदूर बनाने की बनने की क्या जरूरत हैं?  ऐसे प्रश्नों से मॉरीशस के कई लेखकों को सामना करना होता हैं।

और हा आप सभी को बताना चाहता हूँ कि उस काल और दौर में बेरोजगारी ,अकाल और अशिक्षा  आदि का प्रभाव रहा हैं।जो निम्नवत हैं-

1-वतन से दूर होने की पीड़ा 

2-भारतीय मजदूरों की पीड़ा

3-सामाजिक समस्याएं

4-स्त्रियो की समस्याएं

5-वृद्धयो की समस्याएं

6-बच्चों की समस्याएं

7-रोजगार की समस्याएं

8-राजनीतिक समस्याएं

 

      अर्थात ये सभी समस्याएं अपनी ही उपन्यासों में पिरोय दिए हैं। हर परिस्थितियों के दायरे में समाज के सामने लाकर रख दिए हैं। इस लिए हमें कहीं न कहीं उस देश काल की पृष्ठभूमि को समझना होगा।इस प्रकार मैं कह सकता हूँ।रामदेव धुरंधर गिरमिटिया मजदूरों की पीड़ा अपने उपन्यासो में उतारते हैं। इन सभी समस्याओं का सामना करते हुए अपनी 'पथरीली सोना' को पथरीली जमीन के हवाले कर देते हैं। अंततः गिरमिटिया मजदूरों के लिए एक नई छाप अपनी पुस्तक में व्यवस्थित कर चुके हैं।

 

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

1-पथरीला सोना, ( चतुर्थ खंड)रामदेव धुरंधर  प्रथम संकरण 2012 हिंदी बुक सेंटर नई दिल्ली।

2-पथरीला सोना ,( पंचम खंड ), वहीं

3-पथरीला सोना , (छठवा खंड), वहीं

 


               शोध छात्र 

        अमित कुमार गुप्ता

      हिंदी विभाग ,महाराजा

सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा

                                (गुजरात) dearamitkumargupta@gmail.com

संपर्क सूत्र :-7786028105

                 9140889509


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