Impact Factor - 7.125

Monday, March 23, 2020

"आधी आबादी और जी एस टी"





"आधी आबादी और जी एस टी"

  हम शक्ति पर्व मनाते आए हैं। शक्ति के आवाहन ,पूजन ,अर्चन ,आराधन से
शक्ति  की मन्नतें मांगते आए हैं। शक्ति स्वरूपा माता से सुख समृद्धि ,ऐश्वर्य  ,धन वैभव का वरदान मांगते रहे हैं, और हमारे घर में ही शोभनीय है शक्ति स्वरूपा नारी मां ,बेटी, पत्नी, दादी,  नानी,  सहकर्मी,  सहयोगी के रुप में  अनगिनत भूमिकाएं निभाती है। जो ज़मी है पुरुष की  उड़ान के आकाश की।  रीढ़ है परिवार की। आज तो तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। ऊंचे ऊंचे पदों पर कार्य कर रही है।  आज वह गूगल माम बन गई है । सुपर माम  बन गई है  घर परिवार की कार्यक्षेत्र की दोहरी   ज़िम्मेदारियां निभाते हुए , उन्हें कुशलता से   अंजाम देते हुए।

शहर की स्मार्ट नारियों की बात करें या गांव की मेहनतकश महिलाओं की बात ! बात वही है, एक मत से सही है और सभी के लिए है।  यह शक्तिस्वरूपा महिलाएं  किस तरह अपने घर परिवार और कार्य क्षेत्र को संभालती हैं ,अपनी ऊर्जा , शक्ति से घर और बाहर की बहुत सारी प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करते हुए । उसी की सेहत, स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति हम लापरवाह हो सकते हैं ,  यह बहुत अन्याय पूर्ण और अनुचित है। जिसके स्वास्थ्य की  देखभाल  की  ज़िम्मेदारी  सदस्यों के साथ ,समाज और सरकार की भी है।

आधी आबादी नारी ,जो सहनशक्ति की मूर्ति है,  सृजन कर्ता   है उसी के स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर हम इतने निश्चिंत हो जाते हैं  कि उसी के  हित में बनाए गए नियमों और  उठाए गए कदमों को उस तक पहुंचने नहीं देते ! या ऐसे नियम बना देते है ,जो उसकी जिंदगी स्वास्थ्य और सुरक्षा को नजरअंदाज कर दे ! बड़ा ज्वलंत सवाल है कि क्यों महिलाओं को ही पीछे रखा जाता है हितग्राही होने से ! क्या  अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा का अधिकार नहीं है उन्हें ! क्या उन्हें आपकी ही तरह , अपनी जिंदगी से प्यार नहीं है !


किस तरह  उनके लिए


सबसे ज्यादा ज़रूरी, उन पांच दिनों की स्वास्थ्य सुरक्षा और हाइजिन को नजरअंदाज करते हुए 'सैनिटरी नैपकिन 'पर,  बारह   प्रतिशत जीएसटी लगाकर और महंगा कर दिया गया है , उसे साधारण वस्तुओं की तरह मापते हुए और उसे मेडिकल डिवाइस न मानते हुए , जबकि सभी विकसित देशों में इससे हेल्थ प्रोडक्ट माना गया है और  बहुत स्वाभाविक है,  क्योंकि यह महिलाओं के माहवारी के उन पांच   दिनों की  स्वास्थ्य सुरक्षा और हाइजिन से जुड़ा हुआ है ।एक अहम और अति गंभीर मुद्दा है , तो कैसे भारत सरकार इसे हल्के में ले कर महिलाओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही है !!


होना तो यह चाहिए कि इतनी आवश्यक वस्तु को मुफ़्त में प्रदान करने की योजना बनाई जानी चाहिए या फिर बहुत कम दर पर शहरों में और गांव में उपलब्ध कराया जाना चाहिए और सरकार तो बिल्कुल उल्टा कर रही है !! पहले ही एक बड़े प्रतिशत की पहुंच से दूर थे  सैनिटरी नैपकिन और अब जो खरीद पाते हैं  , उनका खरीदना भी असंभव कर रही है !


कुछ राज्यों ने सेनेटरी पैड कम दर पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई,  लेकिन वह दलालों की वजह से महंगे ही पहुंचे और कहीं तो वितरित ही नहीं हुए, साथ ही खराब क्वालिटी की  शिकायतें भी सामने आई। आंकड़ों की बात करें तो अभी भी तेईस प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां माहवारी शुरू होने के साथ ही स्कूल जाना छोड़ देती है पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण,  स्वास्थ्य कारणों से और सरकार इतनी आवश्यक वस्तुओं पर टैक्स लगाकर महिलाओं के स्वास्थ्य शरीर सुरक्षा को ताक पर रखकर दोयम दर्जे का और लापरवाह रवैया दिखा रही है , इतने तमाम विरोध होने के बावजूद भी !


कहीं-कहीं महिलाओं के मध्य सैनिटरी नैपकिन को लेकर जागरूकता ना होने की वजह से और कुछ  इतने महंगे होने की वजह से ग्रामीण अंचलों में रहने वाली महिलाएं , कम पढ़ी लिखी  , दूर-सुदूर  रहने  वाली महिलाओं द्वारा ,कपड़ों के अलावा भी कुछ ऐसे व्यर्थ, अस्वास्थ्यकर पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है जो माहवारी के दौरान  उन्हें संक्रमित करते हैं ,गर्भाशय से जुड़े हुए  रोग उत्पन्न करते हैं।


माहवारी, जो एक आवश्यक प्रक्रिया है सृजन की,  उसी के प्रति उपेक्षा, लापरवाही पूर्ण और गैर जिम्मेदाराना रवैया दुखद है।    कैसे सरकार ने अपनी नासमझी का परिचय देते हुए परिचय देते हुए महिलाओं से जुड़ी अन्य वस्तुएं चूड़ियां , सिंदूर ,  कुमकुम को जीएसटी से पूर्णतः मुक्त रखा है ,  महिलाओं के लिए इतने आवश्यक हेल्थ प्रोडक्ट सैनिटरी नैपकिन को मुफ्त में या बहुत कम दर पर देने की बजाय उसे महंगा कर उनकी पहुंच से और दूर कर दिया है ,  यही कारण है कि अभी भी महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और समाधान , परिवार और सरकार की चिंता का विषय नहीं है और गर्भाशय कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या  भारत विश्व में नंबर वन है, जो बहुत अफसोस की बात है। हम बुलेट ट्रेन की बात करते हैं ,भारत की आधी आबादी की स्वास्थ्य सुरक्षा को दरकिनार कर के हम किस विकास के परचम लहराना चाहते हैं ! किस खोखली  धरातल पर बुलंदी छूना चाहते हैं !
सही मायनों में शक्ति पूजन तभी है जब हमारे घर परिवार में उपस्थित जीवंत शक्ति प्रतिमाओं , सृजन की अधिष्ठात्री  देवियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को सुनिश्चित करके  स्वयं सशक्त बने और देश को मजबूत बनाएं।


@ अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री'
Mob- 8879750292


 

 



 



No comments:

Post a Comment

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal, January - 2025 Issue