व्यर्थ बहाता क्यों है मानव
आँसू भी एक मोती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
अवतारी भगवान या मानव
सब हैं इसका ग्रास बने
राजा हो या प्रजा कोई
सब परिस्थिति के दास बने
पहले लंका फ़िर एक वन में
सीता बैठी रोती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
त्रेता, द्वापर या हो कलियुग
कोई ना बच पाया है
सदियों से ये अग्निपरीक्षा
मानव देता आया है
प्रेम सिखाती राधा की
कान्हा से दूरी होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
जीवन है अनमोल तेरा
पर क्षणभंगुण ये काया है
दर्द, ख़ुशी या नफ़रत, चाहत
जीवित देह की माया है
पत्नी होकर यशोधरा भी
दूर बुद्ध से होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
वाणी में गुणवत्ता हो बस
संयम से हर काम करो
कर्म ही केवल ईश्वर पूजा
जीवन उसके नाम करो
सुख, दुःख के अनमोल क्षणों में
आँखें नम भी होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
अमित 'मौन'
महाभारत मैं हो जाऊँ
तो महाभारत मैं हो जाऊँ
पांडव कौरव में भेद नही
मैं किरदारों में ढल जाऊँ
जो मोह त्याग की बात चले
मैं भीष्म पितामह हो जाऊँ
सत्यवती शांतनु करें मिलन
मैं ताउम्र अकेला रह जाऊँ
जो पतिव्रता ही बनना हो
मैं गांधारी बन आ जाऊँ
फिर अँधियारा मेरे हिस्से हो
मैं नेत्रहीन ही कहलाऊँ
जो गुरू दक्षिणा देनी हो
तो एकलव्य मैं हो जाऊँ
बस मान गुरू का रखने को
अँगूठा अपना ले आऊँ
बात हो आज्ञा पालन की
तो द्रोपदी सी हो जाऊँ
मान बड़ा हो माता का
मैं हिस्सों में बाँटी जाऊँ
जब बात चले बलिदानों की
तब पुत्र कर्ण मैं हो जाऊँ
तुम राज करो सिंहासन लो
मैं सूत पुत्र ही कहलाऊँ
प्रतिशोध मुझे जो लेना हो
तो शकुनि बन के आ जाऊँ
मोहपाश का पासा फेंकूँ
और पूरा वंशज खा जाऊँ
जो जिद्दी मैं बनना चाहूँ
क्यों ना दुर्योधन हो जाऊँ
पछतावा ना हो रत्ती भर
मैं खुद मिट्टी में मिल जाऊँ
बात धर्म और सत्य की हो
मैं वही युधिष्ठिर हो जाऊँ
हो यक्ष प्रश्न या अश्वत्थामा
मैं धर्मराज ही कहलाऊँ
आदर्श व्यक्ति की व्याख्या हो
बिन सोचे अर्जुन हो जाऊँ
पति, पिता या पुत्र, सखा
पहचान मैं अर्जुन सी पाऊँ
तुम बात करो रणनीति की
मैं कृष्ण कन्हैया हो जाऊँ
बिन बाण, गदा और चक्र लिये
मैं युद्ध विजय कर दिखलाऊँ
अमित 'मौन'
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