आम तौर पर अपने दैनंदिन जीवन की यादों को सहेजने के लिए लोग डायरी लिखते हैण् इस अच्छी आदत का लाभ तब सामने आता है जब पकी उम्र में याददाश्त कमजोर पड़ने से इंसान को अतीत में झाँकने में कठिनाई होने लगती हैण् फ़्लैश बैक में अपनी ही तस्वीर धुंधली नज़र आने पर दशकों पूर्व लिखे डायरी के पन्ने समय की गर्द साफ़ करने का काम करते हैंण् लेकिन डायरी के पन्नों में लिखी विगत को जस का तस छाप देने भर से प्रकाशित पुस्तक आत्मकथा की श्रेणी में नहीं आ जातीण् इन्दौर की श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के साहित्य मंत्री हरेराम वाजपेयी ष्आशष् की सद्य प्रकाशित आत्मकथा ष्पांच से पचहत्तर तकष् को पढ़ते हुए इसी विडम्बना की अनुभूति होती हैण्
चूँकि वे समिति की प्रतिष्ठित पत्रिका ष्वीणाष् के प्रबंध संपादक भी हैंण् ऐसे में एक वरिष्ठ साहित्यकार की आत्मकथा के पुस्तक रूप में प्रकाशित होने पर जिस सुगढ़ भाषा शैलीए लेखकीय प्रवाह और संपादन कौशल की सहज अपेक्षा पाठकों को होती हैए उसका यहाँ घोर अभाव हैण् ख़ास तौर पर जब यह आत्म कथा समूचे मालवांचल की शीर्ष साहित्य संस्था श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य संस्था के पदाधिकारी और जीवन भर हिन्दी के लिए तनए मन धन से समर्पित बिरले हिन्दी सेवी की आत्मकथा के रूप में आपके हाथों में पहुंची होण् पुस्तक पढ़ते समय रोचक प्रसंगों का तारतम्य बार बार टूटता हैण् बीच बीच में अतिरिक्त पृष्ठों पर दिए गए तीस.चालीस रंगीन छायाचित्र लेखक के शब्द चित्रों का रसभंग कर पुस्तक को आत्मकथा के बजाय स्मारिकाध् अभिनन्दन ग्रन्थ का रूप देते नज़र आते हैंण्
करीब दो सौ पृष्ठों की इस राम कहानी में बहुतेरी घटनाएँ ऐसी हैं जो समय सापेक्ष होने से प्रायः उस ज़माने के हर व्यक्ति के जीवन संघर्ष में घटी हैंण् वाजपेयीजी की बुलंद आवाजए जुझारू प्रवृत्ति और दबंग स्वभाव से उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति अच्छी तरह परिचित हैण् इसकी मिसाल उनके बचपन की उस घटना में मिलती है जिसका उल्लेख ष्आत्मकथाष् में हुआ है. श्स्कूल के शहरी लड़कों ने जब शहर में उठना बैठना सीख रहे अपने नए गंवई सहपाठी को ष्हरे रामण्ण् हरे रामष् कहकर चिढाना शुरू किया तो दबंगई प्रकट होना ही थीण् एक दिन इसी बात से खफा हरेराम ने एक नामाकूल की जमीन पर पटक कर वो धुनाई कीए कि मजमा ख़त्म होते ही बाकी लड़कों ने उन्हें क्लास का मॉनीटर चुन लियाण् पर स्कूल प्रबंधन को दादागिरी की यह हरकत नागवार गुजरीण् परिणाम स्वरुप नूतन का विज्ञान संकाय छोड़कर पास ही के महाराजा शिवाजी राव हायर सेकेंडरी स्कूल में भूगोल विषय लेना पड़ाण्श्
अपनी आत्मकथा में वाजपेयीजी ने रचनाए सम्मानए पुरस्कारए यात्रा वृत्तान्तए विदेश यात्राएंए हवाई यात्राएंए पर्यटनए तीर्थाटन आदि से लेकर हर उस शख्स का नामोल्लेख किया है जिनसे वे जीवन में एकाधिक बार मिले अथवा जिनका सान्निध्यध् सहयोग उन्हें मिलाण् यहाँ तक कि जिन दिवंगत लोगों की अंतिम यात्रा में वे व्यथित ह्रदय से सम्मिलित हुएए डायरी में लिखा वह ब्यौरा भी उन्होंने पुस्तक में साझा किया हैण् आत्मकथा में उन्होंने गाँधी हॉल से अकस्मात स्कूटर चोरी जाने का वाकयाण्ण् बेटे की शादी के रिसेप्शन में आज की मशहूर गायिका और तब की बेबी पलक मुछाल द्वारा गीत गाने तक का जिक्र किया हैण् पुस्तक में उनके अखिल भारतीय बैंक अधिकारी महासंघ के अध्यक्ष पद तक पहुँचने का रोचक वर्णन हैण् इसके अलावा यूको बैंक के मंडल कार्यालय में हिन्दी अधिकारी के बतौर हासिल उपलब्धियों का जिक्र भी है और मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति से जुड़कर संस्था में साहित्य मंत्री के पद तक पहुँचने की दास्तान भीण्
हिन्दी में पिछले पांच दशकों से गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में निरंतर लेखन कर रहे वाजपेयीजी की रचनाएँ नईदुनियाए दैनिक भास्करए पत्रिकाए स्वदेशए हितवाद के अलावा वीणाए समावर्तनए समीराए मालविकाए गन्धर्वए मरू गुलशनए गोलकुंडा दर्पणए अर्पण समर्पणए मानस संगमए राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना आदि में छपती रही हैंण् पिछले बाईस सालों में उनके तीन काव्य संग्रह. ष्बिना किसी फर्क केष् ;1998) ष्ताना बानाष् ;2012) और ष्कोपल वाणीष् ;2014द्ध प्रकाशित हुए हैंण् हिन्दी के शलाका पुरुषए शब्द शिरोमणिए देव भारतीए जन काव्य भारतीए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सहित मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का जहूरबख्श सम्मान भी उन्हें राज्यपाल के हाथों मिल चुका हैण् देवआनंद की तरह पचहत्तर साल से ऊपर के इस ष्चिर युवाष् हिन्दी सेवी की फिटनेस का अंदाजा उनसे मिलने वालों को हर मुलाकात मेंसहज ही हो जाता है ;लेखक वरिष्ठ पत्रकारए समीक्षक और स्तंभकार हैं
लेखकर: हरेराम वाजपेयी (ष्आशष)
प्रकाशकरू हिन्दी परिवार' इन्दौर
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