आदमी का मतलब ही आज़ादी
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आदमी ज़माने में आज़ादी चाहता है
बिना आज़ादी के उसका रहना मुश्किल की बात है
आज़ादी आदमी के आत्मबोध का तत्व है
आज़ादी जीवन्त रहने की उसकी गवाह है
जीना जीके दिखाना आज़ादी है
मरना मरकर शहीद बनना आज़ादी है
महान बनने का परिचायक भी आज़ादी
पीढ़ी पीढ़ी की नीयत आज़ादी है
एक शायरी लहराती है तो भी आज़ादी
कवि की कटपुतली बेटी भी आज़ादी
ज़माने को तीखी नज़रों से बचाना आज़ादी
कुच्छ कर समाज में नामोनिशान भी आजादी
बिना इसके यहाँ कोई आदमी नहीं
बिना इसके यहाँ कोई संकल्प नहीं
उन्नीस सौ सैतालीस भी इसी से पनपे
भगवद् गीता को सीने पे लगा के बापूजी भी चले गये
गुलामी का जंजीर हर किसी को रेगिस्तान
बल्कि आज़ादी तो बसंत
वीर जवानी का सिंगार भी आज़ादी
भारत माँ की सिंदूर भी आज़ादी
करो या मरो है आज़ादी
देश के लिए सूली पर चढना आज़ादी
इसलिए देश तो देश है
समाज तो समाज है
आदमी का पहचान आज़ादी
आज़ाद रहना ही आज़ादी
बिना इनके इंसान न होगी पूरी၊၊
दीपक अनंत राव "अंशुमान"
एम.ए, एम.फिल,बी.एड (हिंदी,गणित), पी.जी अनुवाद
कवि, गज़ल शायर एवं अध्यापक
सर्कारी हाई स्कूल
केरला
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