सदियों से नारी शोषित दमित रही है और हमनें मांन लिया कि दर्द ही औरत की नियति है और कविताओं में कहानियों में भी उसके दर्द को महिमा मंडित करके प्रस्तुत करते रहे
लेकिन आज की नारी वह नारी नहीं है जिसका चीर हरण भारी सभा में हुआ था ना ही वह नारी है जिसको उसका अपराध बताये बिना त्याग कर बाल्मीकि जी के आश्रम में छोड़ दिया गया था बल्कि आज की नारी का रूप रणचंडी का है जो अपनें अपमान का बदला वह स्वंय लेती है और जुल्म का प्रतिकार करती है
आज की नारी वैज्ञानिक है डॉक्टर है इंजीनियर है एस पी है कलेक्टर है न्यायाधीश है प्रगति के इस युग में वह हर छेत्र में अग्रिणि है पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है ऐसे में हम साहित्यकारों कवियों का कर्तव्य है कि हम उसके इन रूपों को भी अपनी कविताओं कहानियों में उजागर कर पूर्व में किए गये उसके साथ अन्याय का प्रायश्चित करें ना कि उसके दर्द को उसकी पीड़ा को महिमामंडित एवं डेकोरेटेड कर के उसे यह याद दिलाते रहें कि वह अबला है असहाय है पुरुषों पर आश्रित है हमें ऐसे समय में उसका साथ देंना चाहिए ताकि वह अपनें पैरों पर स्वंय खड़ी हो सके
आज की नारी को स्वंय भी समझना चाहिए कि यह समय उसकी पारीक्षा का है और उसे स्वंय भी इस परीक्षI को अच्छे नंबरों से उतीर्ण होँना है ना कि फ़ैशन की अंधी दौड़ में अपने शरीर का भौंडा प्रदर्शन कर के नारी के देवी रूप को लजाना हैं तभी हम गर्व से कह सकेंगे यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
डॉ रमेश कटारिया पारस 30, गंगा विहार महल गाँव ग्वालियर म .प्र .
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