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Thursday, April 9, 2020

*देशभक्ति लोकगीत*

*देशभक्ति लोकगीत*

 

अमर सपूतन के कुर्बानी,

               अस गुमनाम ना होई।

दुश्मन भीतर घात करै अस,

                नीचा काम ना होई।।

 

माता खुश होय सर सहलावै,

               राखी बहना दिखावै।।

जा सीमा पर दुश्मन कइहाँ,

                नाम निशान मिटावै।।

मातृभूमि के हित फिर से, 

           मिलना यह चाम ना होई।

 

दुश्मन भीतर घात करै अस....

 

गवा देशहित लड़ा देशहित,

                  भारत मान बढ़ावा।

दस दस शत्रु लड़े एक वीर पे,

        फिर भी कोउ पार न पावा।।

कफन तिरंगा, पावा,

                 अस ईनाम ना होई।।

 

दुश्मन भीतरघात करै......

 

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू,

                    लक्ष्मी, पुतलीबाई।

मंगल पांडेय, से वीरों ने,

                  आज़ादी है दिलाई।।

 करज दार हैं हम जीवन भर,

                इनसे उद्धार ना होई।।

 

दुश्मन भीतरघात करै.............

 

माता रोवै, पिता समझावै,

                गरव से सीना फुलावै।

सिंह - सिंहनी सुता सा होई,

                 शीश देश पे कटावै।।

"पी.के." अस पुण्यप्रताप का,

                 दूसर काम ना होई।।

 

           

दुश्मन भीतर घात करै,........

 

          प्रशान्त कुमार"पी.के."

     साहित्यवीर, सहयोग साहित्य

            सम्मानों से अलंकृत

                  आशुकवि

           पाली - हरदोई (उ.प्र.)

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