गांधी की विचारधारा और महिला सशक्तिकरण
किसी भी समाज के सांस्कृतिक उत्कर्ष का मूल्यांकन उस समाज में स्त्रियों को दिए जाने वाले सम्मान पर ही आधारित रहता है ।इस दृष्टि से स्त्रियों को बहुत अधिक सम्मान दिया जाना भारतीय संस्कृति की समृद्धि को स्पष्ट करता है। जैसा कि मनु ने भी लिखा है जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता वास करते हैं। सभ्यता के आदिम युग से ही नारी का स्थान परिवार में महत्वपूर्ण था। इस काल में अनियंत्रित योन संबंध एक आम प्रचलन था।परिवार असंगठित थे और अपने स्वरूप में सामुदायिक थे। इन परिवारों में नारी की सत्ता को स्वीकार किया गया।
वैदिक युग में स्त्रियों की स्थिति बहुत ऊंची थी। ऐसा कहा जा सकता है कि भारतीयों के सभी आदर्श स्त्री रूप में पाए जाते थे। विद्या का आदर्श सरस्वती में धन का आदर्श लक्ष्मी में शक्ति का दुर्गा में सौंदर्य का रति मेंपवित्रता का गंगा में इतना ही नहीं सर्वव्यापी ईश्वर कोली जगत जननी के नाम से सुशोभित किया गया है। इस युग में चाहे घर हो या परिवार हर जगह नारी की स्थिति बहुत अच्छी थी। 1सूत्रों और स्मृतियों के कार्य में स्त्रियों की दशा दयनीय हो गई पूर्णविराम तथा परिवार में उन्हें सम्मानित स्थान प्राप्त था। बहु विवाह का प्रचलन था। सती प्रथा का प्रचलन नहीं था। विधवा का अपनी पति के संपत्ति पर अधिकार माना गया। विवाह एक पवित्र बंधन माना जाता था। स्त्री स्वतंत्रता के योग्य नहीं है बाल्यकाल मेंपिता इसकी रक्षा करता है यवन में पति रक्षा करता है तथा वृद्धावस्था में पुत्र रक्षा करते हैं इसी बात को मनु ने भी स्वीकार किया है।
ईशा पूर्वदूसरी शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी तक का समय उत्तरी भारत में विदेशी आक्रमणों का काल रहा जिससे समाज में भारी अव्यवस्था फैल गई। इसने स्त्रियों की स्थिति को प्रभावित किया। पुनर्विवाह की प्रथाएं बंद हो गई। स्त्रियों के लिए पुनर्विवाह के स्थान पर सन्यास द्वारा मोक्ष प्राप्त करने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया।समाज में सती प्रथा का प्रचलन हो गया और इसे एक महान धार्मिक यज्ञ बताया गया।इससे स्त्रियों की दशा और खराब हो गई किंतु एक दिशा में स्त्री की दशा में सुधार हुआ।पुनर्विवाह क्या भाव में विधवा एवं पुत्र ही स्त्रियों की संख्या में वृद्धि हुई। अतः उनके पूर्व पोषण एवं विवाह के निमित्तव्यवस्था कारों उनके धन संबंधी अधिकारों को मान्यता देना प्रारंभ किया। क्रम से उनका अधिकार मानने योग्य। 12 वीं सदी तक आते-आते संपूर्ण देश में विधवा के मृत पति का उत्तराधिकारी होने का सिद्धांत व्यावहारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।गया। स्त्री की स्वयं की संपत्ति जिसके ऊपर उसका पूरा अधिकार होना था स्त्री धन कहा गया।। 2इस काल में स्त्री धन का क्षेत्र व्यापक करके उसमें उत्तराधिकार एवं विभाजन की संपत्ति को भी सम्मिलित कर लिया गया। मिताक्षरा तथा बाएं भाग में स्त्री को मृत पति की संपत्ति का पूर्ण अधिकारी घोषित किया गया। उपनयन की समाप्ति एवं बाल विवाह के प्रचलन ने उसे समाज में अत्यंत निम्न स्थिति में ला दिया। उसकी स्थिति शुद्र जैसी हो गई राम विवाह बंद हो गया विवाह के लिए 8 से 10 वर्ष उपयुक्त मानी गई है।सती प्रथा का राजपूतों फूलों में विशेष प्रचलन हो गया तथा कन्याओं का विवाह 14 या 15 वर्ष की आयु में होता था।3कई कन्याओं को संरक्षिका के रूप में शासन भार भी ग्रहण करना पड़ता था अतः उन्हें प्रशासनिक एवं सैनिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी पूर्णविराम इससे उनके विवाह की आयु में कुछ वृद्धि हुई। किंतु आकाश की परिवारों की कन्याओं का विवाह अल्पायु में ही होता था।4
18वीं शताब्दी में स्त्रियों की हालत इतनी खराब थी उनमें 19 में सभी में कुछ सुधार आया। आरती का गम भरी गगरी का परंपरागत सामाजिक संस्कार सभी ने मिलाकर अंधकार का ऐसा परिवेश भारतीय जीवन के चारों तरफ निर्मित कर दिया था कि उसे तोड़ सकना संभव नहीं था।इस बर्बर युग के प्रति प्रतिक्रिया स्वरुप राजा राममोहन राय खुलकर सामने आए जो नारी जाति की वकालत लगातार करते रहे। नारी पर होने वाले अनेकों सामाजिक अत्याचारों को उन्होंने खत्म किया और स्त्री शिक्षा का प्रबंध किया लेकिन यह शिक्षा पाश्चात्य प्रणाली पर आधारित थी। वास्तव में संकटकालीन कट्टरता के फलस्वरूप जीवन की गति समाप्त हो गई थी पूर्णविराम इसके विपरीत स्त्री रूप में नित नवीन परिवर्तन होने लगे। परिवर्तन की प्रक्रिया में नारी आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
नारी सशक्तिकरण में गांधीजी का योगदान_महिलाओं की उन्नति और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का विशेष योगदान रहा विषय में उनका दृष्टिकोण बड़ा उदार एवं व्यापक था। उन्होंने स्त्रियों के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए रचनात्मक सामाजिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए पूर्णविराम समकालीन भारत में नारी की दयनीय दशा के लिए गांधीजी हिंदू संस्कृति के प्रभाव को जिम्मेदार मानते हैं जिनमें जो अधिनस्थ का दर्जा प्रदान किया गया है। उन्होंने पुरुषों के समान स्त्रियों को विभिन्न सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए आमंत्रित किया भारत की सामाजिक स्थिति के लिए जिम्मेदार मानते हैं उन्होंने कहा कि देश की प्रगति के लिए सामाजिक और आर्थिक आंदोलन सफल नहीं होंगे जब तक की उम्र में स्त्रियों का सहयोग नहीं होगा परिणाम स्वरूप स्त्रियां असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। स्त्रियों ने धरना दिया विदेशी वस्तुओं एवं वस्तुओं का बहिष्कार किया तथा जेलों में गई। उनके आश्रम में स्त्रियों को पुरुषों के समान सम्मान मिला। स्त्री शिक्षा और समानता के लिए गांधीजी ने निरंतर प्रयास किया। भारतीय नारी के पतन के लिए गांधीजी शिक्षा को ही जिम्मेदार मानते हैं। उनकी मान्यता है कि शिक्षा के अभाव में नारी को स्वयं की चेतना नहीं आ पाए। यदि आएगी तो केवल 15% स्त्रियों में जो नगरों में रहती थी।
स्त्री और पुरुष समाज के महत्वपूर्णघटक है। स्त्रियां अर्धांगिनी होने के साथ ही समाज का आधा अंग है। गांधीजी ने स्त्रियों के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया खासकर नारी के अधिकारों के प्रति विशेष बल देते हैं। गांधीजी पुरुष द्वारा नारी का दुरुपयोग किए जाने के संदर्भ में विशेष दुखी थे। उन्हीं के शब्दों में आदमी जितनी बुराइयों के लिए जिम्मेदार है उसमें सबसे विभक्त और पासवर्ड बुराई है मानवता के अर्धांग नारी जाति का दुरुपयोग है। 5गांधीजी का प्रयास था कि स्त्रियां शारीरिक दृष्टि से पुरुषों से निर्मल होते हुए भी बौद्धिक क्षमता का विकास करके सबका बन सकें पूर्णविराम उन्होंने बाल विवाह का तीव्र विरोध तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। किंतु व्यस्त विधवाओं के जिनके बाल बच्चे थे पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं थे किंतु वक्त विधुर भी पुनर्विवाह ना करें।वे पर्दा प्रथा के विरोधी थे। चाहे स्त्रियां हिंदू हों अथवा मुसलमान स्त्री स्वतंत्रता उतना ही आवश्यक था जितना कि पुरुष स्वतंत्रता। वह दहेज प्रथा के आलोचक थे।उन्होंने विवाह की रस्मों को सरल बनाने तथा जाति भूत पर होने वाले अपव्यय को रोकने का आग्रह किया। वे कई मामलों में स्त्रियों को पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ समझते थे। स्त्रियों में विशेषता सत्याग्रह आंदोलन के दौरान धैर्य सहिष्णुता एवं कष्ट सहने के प्रशंसक थे। माता के रूप में संतान उत्पत्ति तथा इसके बाद के बच्चों को लालन-पालन के योगदान को अतुलनीय मानते थे। उन्होंने स्त्रियों को बहुमूल्य आभूषण तड़क-भड़क दार वस्त्र श्रृंगार एवं
प्रसाधन से दूर रहने की सलाह दी ताकि स्त्रियां पुरुषों के हाथ का खिलौना अथवा मनोरंजन का साधन मात्र ना बनी रहे।6गांधीजी नारी और पुरुष के पूर्णता समान अधिकारों में विश्वास करते हैं। इस दृष्टि से स्त्री और पुरुष एक दूसरे से पृथक ना होकर परस्पर पूरक है। वे एक दूसरे के सक्रिय सहयोग के बिना नहीं रह सकते।7गांधी प्रवृत्ति मार्गी होने के कारण नारी की पद मर्यादाओं में वृद्धि करना चाहते थे वह स्त्रियों को पुरुषों के समकक्ष लाने के पक्षधर थे प्रत्येक नर के अर्धनारीश्वर प्रत्येक नारी को अर्धनरेश्वरी बनाना चाहते थे।8गांधीजी का पुरुषों को यह सुझाव था कि वह स्त्री को सिर्फ उपभोग की वस्तु ना समझे उन्हीं के शब्दों में भौतिक वस्तुओं की भांति स्त्री को उसने अपने संपत्ति मान लिया है जिसका वह अपने सुख के लिए इच्छा अनुसार उपभोग कर सकते हैं। पुरुष के स्वार्थ पूर्ण दृष्टिकोण को स्वीकार कर लेने के कारण स्वयं स्त्री में भी आत्महीनता की भावना उत्पन्न हो गई है और वह अपने आपको इसकी अपेक्षा ही समझने लगी है। 9स्त्री पुरुष की सभा गिनी है और वह इस क्षमताओं से उत्पन्न है।उसे मनुष्य के सभी कार्य व्यापार में भाग लेने का अधिकार है। वह स्वतंत्रता के अधिकार हनी है जो पुरुष को प्राप्त है स्त्री पुरुष सभ्यता को स्पष्ट करते हुए वह कहते हैं कि स्त्री पुरुष समानता का अर्थ यह नहीं है कि काम धंधे भी समान हो यह सही है कि स्त्री के आखेट करने अथवा भाला लेकर चलने का कोई कानूनी बंदिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन जो काम पुरुष का है उसे करने में वह स्वभाव दया झिझक थी।प्रकृति नहीं स्त्री और पुरुष को एक दूसरे का पूरक बनाया है।10
गांधी जी ने नारी को चरित्र की दृष्टि से उच्च माना कथा नारी को तपस्या श्रद्धा और ज्ञान की प्रतिमा कहा। उन्होंने कहा कि स्त्री क्याहै? साक्षात न्यायमूर्ति है जब कोई स्त्री जी जान से काम लग जाती है तो वह पहाड़ को भी हिला देती है।11गांधीजी ने कहा कि नारी अहिंसा का अवतार है अहिंसा का अर्थ है असीम प्रेम और असीम प्रेम का अर्थ है कष्ट सहने की शक्ति स्त्री जो पुरुष की माता है कि अतिरिक्त अधिकतम मात्रा में यह महान शक्ति किसमें है उसे या प्रेम संपूर्ण मानवजाति को प्रदान करना चाहिए उसे यह भूल जाना चाहिए कि वह कभी पुरुष की वासना कृति की वस्तु की अथवा हो सकती है। तभी वह पुरुष की माता और उसके भाग्य का निर्माण तथा उसका नेतृत्व करने वाली शक्ति के रूप में उसके समक्ष अपना गौरव स्थान प्राप्त कर सकती है। वही युद्ध और संगठन शक्ति की कला सिखा सकती है।12गांधीजी का मत था कि स्त्री को अबला कहना उसका अपमान करना है। उसे अबला कहकर पुरुष उसके साथ अन्याय करता है। अगर ताकत से मतलब पास हुई ताकत से है तो निसंदेह पुरुष की अपेक्षा स्त्री में कम पर सोता है पर अगर इसका मतलब नैतिक शक्ति से हैं तो अवश्य ही पुरुष की अपेक्षा स्त्री कहीं अधिक शक्तिशाली है।13गांधीजी की मान्यता है कि स्त्री जाति की जो समाज में स्थिति है उसका उत्तरदायित्व पुरुष वर्ग का ही है क्योंकि समाज रखना मैं उसे गण स्थान दिया गया है और उसकी कठिनाइयों को भी पुरुष ने ना तो समझने की चेष्टा की और ना हल करने की कोशिश की। वह कहते हैं कि जिस रुई और कानून के बनाने में स्त्री का कोई हाथ नहीं था और जिसके लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार है उस कानून और रुणिचे जुल्मों ने स्त्री को लगातार पुतला है अहिंसा की न्यू पर रचे गए जीवन की योजना में जितना और जैसा अधिकार पुरुष को अपने भविष्य की रचना का है उतना और वैसा ही अधिकारी स्त्री को भी अपना भविष्य तय करने का अधिकार है।
गांधीजी स्त्रियों को आर्थिक अधिकार दिए जाने की भी वकालत करते हैं गांधीजी के सम्मुख स्त्री को आर्थिक स्वतंत्रता दिए जाने का विरोध इस आधार पर किया जाता कि उससे स्त्रियों में दुराचार फैल जाएगा और घरेलू जीवन बिखर जाएगा। किंतु गांधी जी को ऐसे तर्क अच्छे नहीं लगे पूर्णविराम वह उन्हें संपत्ति संबंधी अधिकार दिए जाने की मांग का समर्थन नैतिक और सामाजिक दोनों ही आधारों पर करते हैं। संपत्ति अधिकार को दिए जाने से यह कल्पना करना उपयुक्त अनुभव नहीं होता कि इससे उसमें दूर आचरण आएगा। वास्तव में ऐसी कल्पना भी नहीं स्वार्थ वाले ही करते हैं। गांधीजी स्त्री को रोटी की चिंता से मुक्त देखना चाहते हैं कि उन्होंने फिर भी स्त्री को सेवा बनाने के लिए कभी नहीं या। करोड़ों स्त्रियों को घर छोड़कर रोजी कमाने पड़ी तो बुरी बात क्या है।
सामाजिक जागरूकता आग स्त्रियों के जीवन में देखने को मिलता है कोलेबिरा आज स्त्रियां परिवारों में भी खुली हवा में सांस ले रही है कोलेबिरा आज वह अपने रूढ़ियों के प्रति उदासीन हैं और अब उनके जीवन का आदर्श नहीं रहा। स्त्रियां आज के उनके प्रगतिशील संघों का निर्माण कर रही हैं और ऐसे संगठनों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। परंतु यह सभी परिवर्तन प्रमुख रूप से नगर की स्त्रियों में ही संबंधित है। ग्रामीण स्त्रियों के जीवन में कुछ सुधार आवश्यक हुआ है परंतु अभी उनमें शिक्षा का अभाव होने के कारण वे परंपरागत रूढ़ियों को तोड़ने में अधिक सफल नहीं हो सकती हैं। परंतु नगरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि होने से उनके विचारों में भी परिवर्तन होना प्रारंभ हो गया है। वर्तमान समय में स्त्रियों द्वारा हिंदू जीवन के सिद्धांतों का पुनरीक्षण हिंदू समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है पूरा समाज में बढ़ती अवश्य कथाओं के प्रति उनकी जागरूकता धर्म की आड़ में उन्हें समस्त अधिकारों से वंचित कर देने वाले संतोषजनक आदर्शों के प्रति शिक्षा उसे होने वाली मात्राएं राष्ट्रीय संघर्ष के समय विकसित होने वाले अनुभव में उन्हें ह्यूमन के आदर्शों का पूजन करने की प्रेरणा दी है । भारत में स्वतंत्रता के पश्चात स्त्रियों की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। स्त्रियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में जो परिवर्तन हुआ उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है विराम श्रीनिवासने पश्चिमीकरण लौकी की करण और जाति गतिशीलता को इन परिवर्तनों का प्रमुख कारण माना है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार होने पर औद्योगिकरण के फल स्वरुप भी उन्हें आर्थिक जीवन में प्रवेश करने के अवसर प्राप्त हुए हैं। स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता कम होने लगी और स्वतंत्र रूप से अपने व्यक्तित्व विकास करने के अवसर मिले। संचार के साधनों समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का विकास होने से स्त्रियों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करना आरंभ किया। सामाजिक अधिनियम के प्रभाव इसके अतिरिक्त स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार होने पर औद्योगिकरण के फल स्वरुप भी उन्हें आर्थिक जीवन में प्रवेश करने के अवसर प्राप्त हुए हैं। स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता कम होने लगी और स्वतंत्र रूप से अपने व्यक्तित्व विकास करने के अवसर मिले। संचार के साधनों समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का विकास होने से स्त्रियों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करना आरंभ किया। सामाजिक अधिनियम के प्रभाव में से कैसे सामाजिक वातावरण का निर्माण हुआ जिससे बाल विवाह दहेज प्रथा औरअंतर जाति विवाह की समस्याओं से निदान पाना सुलभ हो गया।13स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रगति हुई 1971 ईस्वी की जनगणना के समय तक शिक्षित स्त्रियों की संख्या बढ़कर चार करोड़ 9300000 से भी अधिक हो गई जबकि 18 से 82 ईसवी में भारत में ऐसी केवल कुछ स्त्रियां थी जो कुछ लिख पढ़ सकती थी पूर्णविराम आज लड़कियों के लिए कला और विज्ञान के अतिथि गृह विज्ञान हस्तशिल्प कला और संगीत की शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएं हैं। मेडिकल कॉलेज में लड़कियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है आर्थिक जीवन के क्षेत्र में स्वतंत्रता और स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता निरंतर कम होती जा रही है। स्वतंत्रता के पश्चात एक बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग की शिक्षा प्राप्त कर क्षेत्र में बढ़ रही हैं। 8 शिक्षा स्वास्थ्य चिकित्सा समाज कल्याण मनोरंजन उद्योग और कार्यालयों में स्त्री कर्मचारियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है इस आर्थिक स्वतंत्रता मिलने से उनके आत्मविश्वास कार्य क्षमता और मानसिक स्तर में विशेष प्रगति हुई है। पारिवारिक अधिकारों में भी वृद्धि हुई है। आज की स्त्री पुरुष की दासी नहीं बल्कि उसकी सहयोगी और मित्र है। परिवार उसकी स्थिति एक याचिका की ना होकर बल्कि प्रबंधक की है। आज व परिवार में अपने अधिकारों को पूर्ण उपयोग करने को तैयार है। बच्चों की शिक्षा पर वृक्ष के उपयोग संस्कारों का प्रबंधन और पारिवारिक योजनाओं के रूप का निर्माण करने में स्त्री की इच्छा का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है।
संदर्भ ग्रंथ सूची____
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- सिलेक्शन फ्रॉम गांधी पृष्ठ 271 निर्मल कुमार बोस
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- बॉस निर्मल कुमार पृष्ठ 272 273 यंग इंडिया 22 अक्टूबर 1929
- हरिजन सेवक 24 फरवरी 1940
श्रीमती आशा रानी पटनायक
शोधार्थी
बस्तर विश्वविद्यालय जगदलपुरजिला बस्तर
छत्तीसगढ़ 494001
पता
श्रीमती आशा रानी पटनायक
स्टेट बैंक कॉलोनी क्वार्टर नंबर 13
लाल बाग आमागुड़ा जगदलपुर
जिला बस्तर छत्तीसगढ़494001
मोबाइल नंबर 7000392649;9406238107
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