अस्पताल में जिधर दृष्टि जाती उदास मुरझाए चेहरे ही नज़र आ रहे थे। कन्हैया को आज आभास हो रहा था संसार में कितना दुख है। वरना मां उसे आभास ही कहाँ होने देती की उसकी स्थिति कितनी दयनीय है। 16 वर्षीय कन्हैया अपनी माँ सीता का लाडला था। खेतों में मजदूरी कर वह जो कुछ भी पाती उसे बड़े जतन से पका कर उसके सामने रख देती। उसे भी अपनी माँ से कम स्नेह नहीं था वह भी पहला कौर उन्हें खिला कर ही खुद खाता। कभी कभी उसे बहुत दुख होता कि माँ को कितना दुख उठाना पड़ता है। वह भी मजदूरी करना चाहता मगर माँ हमेशा मना कर देती। कहती, तू अभी बच्चा है । थोड़ी पढ़ाई लिखाई कर ले फिर खूब कमाना। वह उसे ज़बरदस्ती स्कूल भेजती। माँ को बड़ी इक्छा थी कि वह पढ़े लिखे। जो कमाती उसी की देखभाल और कॉपी किताब में समाप्त। सुनती सरकारी स्कूल में पैसे मिलते हैं किताबों के लिए। मगर सरकारी पैसा कभी समय पर मिला है क्या। सो जो कमाती सब इसी में समाप्त। घर में एक ढेला भी ना बचा रखी थी। ऐसे में यह आफत टूट पड़ी। छह महीने पहले ही सरकारी अस्पताल के किसी डॉक्टर ने बताया था कि किडनी में सूजन हो गया है अच्छे से इलाज न करवाया तो किडनी खराब भी हो सकती है। मगर सीता ने यह बात सुनी अनसुनी कर दी। मगर इस आफ़त की घड़ी में आँख मूंदे पड़ी थी। बगल में उसका एकलौता बेटा बैठा सुबक रहा था। साथ में उसका एक मात्र मित्र रवि था जिसकी ऑटो में माँ को लेकर आया था। रवि उसे ढाढस बंधा रहा था मगर अस्पताल की हालत देख कर मन तो उसका भी विचलित हो रहा था । हर तरफ एक चीख़ पुकार मची थी। रोते बिलखते परेशान लोग। कहराते मरीज़ बेड के अलावा फ़र्श पर भी पड़े थे। सीता को भी बेड कहाँ मिल पाया था। दोनों बच्चे उसे लिए एक कोने में बैठे थे। कुछ समय बाद डॉक्टर आए चेक किया और साथ खड़ी नर्स को कुछ समझा कर जाने लगे तो कन्हैया हाथ जोड़ कर सामने खड़ा हो गया।
डॉक्टर साहब हमारी माँ को बचा लें।
मैंने नर्स को समझा दिया है। बेड अरेंज होने के बाद इनका इलाज़ शुरू हो जाएगा। अभी जो ज़रूरी है नर्स कर देगी।। कहते हुए डॉक्टर साहब अगले मरीज़ की तरफ बढ़ गए।
नर्स ने वहीं मरीज़ को लिटाने को कहा और पानी का एक बोतल लगा दिया। बोतल लगाने का स्टैंड भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा था इसलिए कन्हैया को हाथ में ही बोतल ले कर खड़ा होना पड़ा।
दोपहर से शाम हो गई। उसके हाथ सुन्न हो जाने के कारण
अब रवि बोतल पकड़े खड़ा था। फर्श पर बैठा कभी को अपनी माँ की ओर देखता तो कभी दूसरे मरीज़ों की ओर। उसका मन फूट फूट कर रोने का हो रहा था मगर वो सिसकियों में खुद को संभालने का प्रयत्न कर रहा था।
इतना बड़ा अस्पताल और मरीज़ों को रखने की जगह नही। उसने दुख से कहा
अरे सरकार भी क्या करे देखते नही कितने मरीज़ हैं। जितनी भी व्यवस्था कर ले कम ही पड़ जाती है।
हूँ... कन्हैया ने हुंकारी भरी।
याद नही है स्कूल में मैडम जी ने क्या पढ़ाया था सारी समस्या की जड़ ये जनसंख्या है। रवि ने फिर कहा
हाँ ठीक ही कहते हो। सरकार भी कितनी व्यवस्था करे। कन्हैया ने सहमति जताई।
वह पूरी रात यूँही बीत गई। बेड की कोई व्यवस्था नही हो पाई। हाँ नर्स ने पानी का बोतल लगाने के लिए एक स्टैंड ज़रूर ला दिया था। 10 बज गए थे डॉक्टर का अभी कुछ बता नहीं था नर्स ने ही बताया कि डॉक्टर साहब 12 बजे आएंगे। कन्हैया का मुख काला पड़ गया क्योंकि सुबह से उसने दो व्यक्ति को इंसान से लाश बनते देखा था।
मौत बड़ी सस्ती हो गई है ना रवि और जीवन बड़ी क़ीमती। कितनी आसानी से मर रहे हैं लोग। कन्हैया ने डूबते स्वर में कहा।
हिम्मत ना हार... हमें लगता है माँ का इलाज़ यहाँ ठीक से नही हो पायेगा। इन्हें प्राइवेट अस्पताल में ले जाना चाहिए। यहाँ तो डॉक्टर भी ना आया अभी तक। और आए भी जाने कब तक देखें मरीज़ो की संख्या देख। रवि ने चिंता भरे स्वर में कहा।
हाँ सो तो ठीक है। लेकिन वहाँ तो बहुत पैसे लगते हैं।
हाँ पर क्या यहाँ बैठे बैठे इंतज़ार करेगा। कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा। माँ की हालत तो देख।
दोनों ने विचार किया और निकल गये। बगल में ही बड़ा सा निजी अस्पताल था। माँ को लेकर वहाँ पहुंचे। मगर वहाँ जा कर पता चला इलाज के लिए 2 लाख रुपए लगेंगे।सुनकर दोनों का सर चकरा गया। 200कमाती है उसकी माँ रोज़। यह 2 लाख कहाँ से लाये। रवि ने उसे गाँव जा कर कोई व्यवस्था करने को कहा वरना माँ को बचा ना पाएगा।
रवि की बात मान वो गाँव जाने को निकला। गाँव जा कर कोई उपाय हो जाय शायद। मगर कर्ज़ भी ले तो चुकता कैसे करेगा?? फिर इतने पैसे देगा कौन?? यही सोचते हुए वो सड़क पर बढ़ा जा रहा था कि तभी सामने से एक ट्रक आता दिखा । वो हड़बड़ा कर एक ओर भागना चाहा मगर अचनाक दिमाग मे कुछ कौंधा और वो अपनी जगह पर ही ठहर गया। "माँ सस्ती मौत नहीं मरेगी।" उसने आँखे मूंद ली। तब तक ट्रक उसे टक्कर मरते आगे बढ़ गया।
हर तरफ एक शोर मच गया। लोग दौड़ पड़े। कन्हैया के सर से खून की धारा बह निकली। शरीर खून से लहूलुहान था और ज़ुबान ख़ामोश...
अरे ट्रक तो घेरो, अरे एम्बुलेंस बुलाओ, सड़क जाम करो।
हर तरफ हंगामा मच गया। लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई। भीड़ को चीरते हुए रवि कन्हैया के पास आ खड़ा हुआ। दिमाग़ में एक से घंटी बजी। तू तो बड़ा कीमती मौत मरा रे... उसकी आँखों से आँसू के दो कतरे कन्हैया के मुख पर गिर पड़ा.... जो मुस्कुरा कर कह रहा था " देख कर दिया न पैसे का इंतजाम"।
चाँदनी समर
मुज़फ़्फ़रपुर बिहार
ISSN : 2349-7521, IMPACT FACTOR - 8.0, DOI 10.5281/zenodo.14599030 (Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma
Monday, April 13, 2020
कीमती मौत
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