कोई मिट्टी का टुकड़ा नहीं
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देश मिट्टी का एक टुकडा नहीं,
जीता जागता एक इंज़ान हैं।
देश बसाने का केवल एक जगह नहीं
राजनीति को निभाने का हिस्सा नहीं
देश युद्ध का परिचायक नहीं आपितु
देश एक जीता जागता इंजान हैं
जो खुशी के वक्त पर दिल बहलाते
ग़म की परछाइयों पर आहों से कराहते हैं
हर भावनाओं को दिल से समेटकर
सोचबूझ में चलनेवाले एक राही हैं।
यहाँ रिश्तों का संगीत हैं
प्यार का एहसास है
समर्पण की भावना है
दोस्ती का वास्ता है और यह देश नहीं
आपितु जीता जागता इंज़ान हैं।
कभी यह माँ बनकर प्यार परोसती
कभी यह महबूबा बन दिल को बहलाती
कभी दिल की गहराईयों पे चलते
दोस्ती का कसम मिभाति
और कभी शायर बन जादू की झड़ी सजाती
इन से आप नाता जोडिए रिश्ता निभाइए
देश मिट्टी का टुकड़ा नहीं बल्कि
जीता जागता इंसान हैं।
©
दीपक अनंत राव "अंशुमान"
एम.ए, एम.फिल, बी.एड (हिदी,गणित), पी.जी अनुवाद
कवि एवं अध्यापक
केरला
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