चाहे छाये हर और सूनापन,मिलना हो जाये एक दूजे से कम।
कितना भी मन घबराए,चाहे कितनी भी दहशत बढ़ती जाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
व्यवसाय कैसे चल पाएंगे और अब कैसे बच्चे पढ़ पाएंगे।
चाहे कितनी भी विपदाएं आये,घर मे मन कितना भी घबराए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
देश की लड़ाई लड़ते जाए,किसी तरह कोरोना को मार भगाए।
अंधकार से लड़ते जाए,नए उजाले की और बस बढ़ते जाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
जब अकेले कुछ ना हो पाए,एक दूजे से क्यों ना मिल जाए।
एक दूजे हम समझाए,कोई भी बस घर से बाहर जाने ना पाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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