हे जननी तू बड़ी सुखदायिनी जीवनदायिनी।
जीवन के सफर गाऊं तेरे उपकार की रागिनी।।
जादू की छड़ी है बिन बोले तूने मेरी हरेक बात जानी।
बीमारी ठीक होने के लिए तूने परमेश्वर से लडाई की ठानी।।
खोली संस्कारी पाठशाला तुझ सा नहीं कोई सानी।
खुद मुसीबत थी तूने अपने लला की मुसीबत जानी।।
कुकृत्य से रोकती तूने हर रग रग लला की पहचानी।
ऋणी हूं ऋणी रहूंगा उऋण हूंगा तब तक बात ठानी।।
सुकृत्य करुं तेरी परवरिश झलके कर्मों हो यही निशानी।
परमेश्वर का रूप ही तेरा बात में मैंने मन ली यही ठानी।।
हीरा सिंह कौशल गांव व डा महादेव सुंदरनगर मंडी
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