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घर में नफरत की कैसे दीवार उठाओगे ।
सदियों के भाई चारे को तोड़ न पाओगे।।
कैसे आग लगाओगे
कैसे आग लगाओगे
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खून शिराओं में जिनके है शुद्ध विचारों का।
महिमा मंडन कभी नहीं करते हत्यारों का ।।
धर्म कोई हो सबसे ऊपर मानवता रहती ।
मानव के खातिर है मजहब दुनिया ये कहती।।
मंदिर मस्जिद जला कोई क्या पूण्य कमाओगे।
सदियों के भाईचारे को तोड़ न पाओगे ।।
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सुख में दुख में साथ निभाया रहे मित्र बनकर।
एक दूजे के घर में बच्चे, बड़े हुए पल कर।।
मिलकर खाया पिया कभी भी भेद नहीं माना।
रहा कभी कोई दादा बन कभी रहा नाना ।।
कैसे इन रिश्तों में कड़वाहट पनपाओगे ।
सदियों के भाईचारे को तोड़ न पाओगे ।।
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भारत माता सबकी माता हिंदुस्तान वतन है।
खेलेकूदे साथ साथ हम सबमें अपनापन है।।
अगर जलाया देश गया ये अपनी नादानी है।
तेरी मेरी नहीं क्षति ये सबकी नुकसानी है।।
नुक्सानी पर क्या"अनन्त"तुम जश्न मनाओगे।
सदियों के भाई चारे को तोड़ न पाओगे ।।
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अख्तर अली शाह"अनन्त" नीमच
ISSN : 2349-7521, IMPACT FACTOR - 8.0, DOI 10.5281/zenodo.14599030 (Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma
Friday, April 10, 2020
सदियों के भाईचारे को (गीत )
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