समाज के रीति- रिवाज सब के लिए एक जैसे नहीं होते । मुंह देखकर तिलक करते हैं या कालिख लगाते हैं। एक गरीब ने अपनी पंचायत में सभी पंचों व बड़े बुजुर्गों को बतलाया कि उसकी इकलौती सुंदर बेटी को एक करोडपति उद्योगपति का इकलौता लड़का खूब चाहता है । वह उससे शादी करना चाहता है पर वह अपनी जात का नहीं पर अच्छी जात का है । उसके माता पिता भी सहमत हैं। मै भी सहमत हॅू ।आपको सम्मान देता हॅू । इस लिये पंचायत की इजाजत चाहता हॅू सभी ने ध्वनिमत से उसका विरोध किया। बेटी की शादी जात के बाहर करने पर हुक्का पानी बंद करने के साथ ही जात बाहर, गाॅव बाहर करने का फरमान भी जारी कर दिया जावेेेगा।उसने बेटी के भविष्य को नहीं वरन् समाज के रीति- रिवाज व समाज की इज्जत को देखते हुए अमीर के इकलौते बेटे से शादी नहीं की वरन् दूसरे गाॅव के एक गरीब स्वजातीय निकम्मे से शादी कर दी । वह खूद भी बेटी के यहाॅ रहने चला गया। अब बेटी की मजदूरी से ही दोनों परिवार पल रहे हैं। एक दिन गाॅव में आने पर उसने देखा समाज के अध्यक्ष की लड़की विदेश पढ़ने गई थी। वहीं उसने चर्च में शादी कर ली । सचिव के लड़के ने जाति की बेेेटी को बहू बनाया पर उसको साल भर रखने के बाद पसंद न आने से वापस मायकेे भेज दी। अब उसके बेेटेे ने एक बेगम रख ली है। जिसके रहने से उसके परिवार व समाज में कोई गम नहीं है। सचिव व अध्यक्ष आज भी समाज के पदों को सुशोभित कर रहे हैं। पंचायत के सरपंच व पंच होने से पंचायत के फण्ड का ईमानदारी से उपयोग स्वहित में कर रहे हैं । देश में कई बदलाव आये पर वहाॅ की पंचायत के नियम गरीबों के लिए आज भी पूर्ववत् ही है । जिसका पालन गरीबों को करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी होता है। समरथ को दोष नही गोसाईं । अंग्रेेजी में भी एक वाक्य "रुल्स फार फूल्स" भी इसी तरह प्रचलित है।.
हेेमंत उपाध्याय
व्यंग्यकार एवं लघु कथाकार
साहित्य कुटीर .पं. श्री रामनारायण उपाध्याय वार्ड क्र. 43 खण्डवा -450001
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