सुंदरता की मूरत तू
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श्रीफल जैसा शीश बनाया,
कली कमल सी कोमल तू ।
नैन बनाए हैं मृग जैसे,
बिजली जैसी चंचल तू ।।
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होठ संतरे की पांखें हैं,
दंतपंक्ति ड़ाढम जैसी ।
चन्दन जैसी गंध नशीली,
कर देती पागल कैसी ।।
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नाक तेरी है तोते जैसी,
कोयल सी वाणी मनहर ।
केले जैसी कमर बनी है,
कैसी प्यारी ऐ दिलबर ।।
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महुआ फूलों से कपोल हैं ,
भंवरों सी भौहैं प्यारी ।
कुंतल तेरे बादल काले ,
प्यारी आँखें कजरारी ।।
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गर्दन तेरी सुराही जैसी,
संगमरमरी तन तेरा ।
चाल चपल हिरणी सी पाई ,
सुरभित गुल है मन तेरा।।
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कर्ण सुनें जो नहीं कहा है,
नजर भेदती अंदर तक ।
त्वचा तेरी स्पर्श समझती,
सोच पहुँचती अंबर तक ।।
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नहीं समझना आसां तुझको,
सुंदरता की मूरत है ।
पढ़ा न जाए लिखा हुआ तू ,
परमपिता का वो खत है।।
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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच
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