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Monday, May 18, 2020

डॉo सत्यवान सौरभ की रचनायें

(1)योद्धा बनें,आज वतन की आस !!


लोग सभी खामोश हैं, दुबके सभी प्रधान !
सरकारी सेवक बनें, सब के दयानिधान !!

कोरोना से लड़ रहे, भूलें आज थकान !
जज्बा इनका देखकर, ईश्वर है हैरान !!

कामचोर जिनको कहा, माना सदा दलाल !
खड़े साथ हैं आपके, देखो वो हर हाल !!

द्वारे-द्वारे हैं खड़े, सिविल सेवादार !
जीत-जीतकर मोर्चे,  सांस रहे वो हार !!

नेता के दौरे नहीं, सड़कें हैं सुनसान !
आकर तुमसे पूछते,अब वो सेवक ध्यान !!

जिनको तुमने फाँसने, करतब किये हज़ार !
बचा रहें हैं आज वो, सपनों का संसार !!

सौरभ हर पल लड़ रहे, विपद काल के शाह !
दिखा रहे तुमको सही, वक्त पड़े की राह !!

नर-नर रोया दुःख में, कोय न बैठा पास !
कोरोना योद्धा बनें,आज वतन की आस !!

कोरोना योद्धा सभी, करें यही अरदास !
सौरभ अब तो मानिये, उनके किये प्रयास !!

✍ #सत्यवान #सौरभ

 

 

(2)  देख हाल मजदूर का,है सौरभ अफ़सोस

बदले सबके रूप है, बदले सबके रंग
मगर रहे मजदूर के, सदा एक से ढंग

देख हाल मजदूर का, है सौरभ अफ़सोस
चलता आये रोज पर,  दूरी उतने कोस

जब-जब बदले कायदे, बदली है सरकार
मजदूरों की पीर में, खूब हुई भरमार

बांध-बांध कर थक गए, आशाओं की डोर
आये दिन ही दुख बढे, मिला न कोई छोर

चूल्हा ठंडा है पड़ा, लगी भूख की आग
सुना रही सरकार है, मजदूरों के राग

रूप विधाता दोस्तों, होता है मजदूर
जग को सदा सुधारता, चाहे हो मजबूर

मजदूरों के हाथ हैं, सपनों की तस्वीर
इनसे सौरभ जुड़ी, हम सबकी तकदीर

 ✍ सत्यवान सौरभ

 

(3)   सोता हूँ माँ चैन से,जब होती हो पास!! 

नारी मूरत प्यार की,ममता का भंडार!
सेवा को सुख मानती,बांटे खूब दुलार!!

 तेरे आँचल में छुपा,कैसा ये अहसास!
 सोता हूँ माँ चैन से,जब होती हो पास!!  

 बिटिया को कब छीन ले,ये हत्यारी रीत !
घूम रही घर में बहू,हिरणी-सी भयभीत !!

 अपना सब कुछ त्याग के,हरती नारी पीर !
फिर क्यों आँखों में भरा,आज उसी के नीर !!

 नवराते मुझको लगे,यारों सभी फिजूल !
नौ दिन कन्या पूजकर,सब जाते है भूल !!

 रोज कहीं पर लुट रही,अस्मत है बेहाल !
खूब मना नारी दिवस,गुजर गया फिर साल !!

 थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार !
तब सौरभ नारी दिवस, लगता है बेकार !!

 जरा सोच कर देखिये, किसकी है ये देन !
अपने ही घर में दिखें, क्यों नारी बेचैन !!

 रोज कराहें घण्टिया, बिलखे रोज अजान !
लुटती नारी द्वार पर, चुप बैठे भगवान !!


 नारी तन को बेचती, ये है कैसा दौर !
मूर्त अब वो प्यार की, दिखती है कुछ और !!

 

(4)   बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव !!

 

नई सुबह से कामना, करिये बारम्बार!
हर बच्चा बेखौफ हो, पाये नारी प्यार !!

 छुपकर बैठे भेड़िये, देख रहे हैं दाँव !
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव !!

 मोमबत्तियां छोड़कर, थामों अब तलवार !
दिखे जहाँ हैवानियत, सिर दो वहीं उतार !!

 जीवन में आनंद का, बेटी मंतर मूल !
इसे गर्भ में मारकर, कर  ना देना भूल !!

 बेटी कम मत आंकिये, गहरे इसके अर्थ !
कहीं लगे बेटी बिना, तुम्हे ये सृष्टि व्यर्थ !!

 बेटी होती प्रेम की, सागर एक अथाह !
मूरत होती मात की, इसको मिले पनाह !!

 छोटी-मोटी बात को, कभी न देती तूल !
हर रिश्ते को मानती, बेटी करें न भूल !!

 बेटी माँ का रूप है, मन ज्यों कोमल फूल !
कोख पली को मारकर, चुनों न खुद ही शूल !!

 बेटी घर की लाज है, आँगन शीतल छाँव !
चलकर आती द्वार पर, लक्ष्मी इसके पाँव !!

 बेटी चढ़े पहाड़ पर, गूंजे नभ में नाम !
करती हैं जो बेटियाँ, बड़े -बड़े सब काम !!

 बेटी से परिवार में, पैदा हो सम-भाव !
पहले कलियाँ ही बचें, अगर फूल का चाव !!

 बिन बेटी तू था कहाँ, इतना तो ले सोच !
यही वंश की बेल है, इसको तो मत नोच !!

 हर घर बेटी राखिये, बिन बेटी सब सून !
बिन बेटी सुधरे नहीं, घर, रिश्ते, कानून !!

 सास ससुर सेवा करे, बहुएं करतीं राज ।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज ।।

 आये दिन ही टूटती, अब रिश्तों की डोर !
बेटी औरत बाप की, कैसा कलयुग घोर !!

 (5)   लड़कियां,

 

कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप !
सौरभ जीती लड़कियां, जाने कितने रूप !!

 जीती है सब लड़कियां, कुछ ऐसे अनुबंध !
दर्दों में निभते जहां, प्यार भरे संबंध !!

 रही बढाती मायके, बाबुल का सम्मान !
रखती हरदम लड़कियां, लाज शर्म का ध्यान !!

 दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ !
बनती दुल्हन लड़कियां, पहने कंगन हाथ !!

 छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार !
बनती है माँ लड़कियां, देती प्यार दुलार !!

 माँ ,बेटी, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज !
गिरकर सम्हले  लड़कियां, सौरभ आये रोज !

 नींद गवाएँ रात की, दिन का खोये चैन !
नजर झुकाये लड़कियां, रहती क्यों बेचैन !!

 कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार !
मांग रही क्यों लड़कियां, आज दया उपहार !!

 बेटी से चिड़िया कहे, मत फैलाना पाँख!
आँगन-आँगन घूरती, अब बाजों की आँख !!

 लुटे रोज अब बेटियां, नाच रहे हैवान !
कली-कली में खौफ है, माली है हैरान !!

 आज बढ़े-कैसे बचे, बेटी का सम्मान !
घात लगाए ढूंढते, हरदम जो शैतान !!

 दुष्कर्मी बख्सों नहीं, करे हिन्द ये मांग !
करनी जैसी वो भरे, दो फांसी पर टांग !!

 बेटी मेरे देश की, लिखती रोज विधान !
नाम कमाकर देश में, रचें नई पहचान !!

 बेटे को सब कुछ दिया, खुलकर बरसे फूल !
लेकिन बेटी को दिए, बस नियमों के शूल !!

 सुरसा जैसी हो गई, बस बेटे की चाह !
बिन खंजर के मारती, बेटी को अब आह !!

 झूठे नारो से भरा, झूठा सकल समाज!
बेटी मन से मांगता, कौन यहाँ पर आज!!

 बेटी मन से मांगिये, जुड़ जाये जज्बात !
हर आँगन में देखना, सुधरेगा अनुपात !!

 झूठे योजन है सभी, झूठे है अभियान !
दिल में जब तक ना जगे, बेटी का अरमान !!

 अब तो सहना छोड़ दो, परम्परा का दंश!
बेटी से भी मानिये, चलता कुल का वंश!

 बेटी कोमल फूल- सी, है जाड़े की धूप!
तेरे आँगन में खिले, बदल-बदलकर रूप !!

 सुबह-शाम के जाप में, जब आये भगवान !
बेटी घर में मांगकर, रखना उनका मान !!

 शिखर चढ़े हैं बेटियां, नाप रही आकाश !
फिर ये माँ की कोख में, बनती हैं क्यों लाश !!

 

(5)

 

माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान !
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान !!

 माँ कविता के बोल-सी,कहानी की जुबान !
दोहो के रस में घुली, लगे छंद की जान !!

 माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार !
माँ ही लय, माँ ताल है,जीवन की झंकार !!

 माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत !
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत !

 माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप !
मुझमे तुझमे बस रहा, माँ का ही तो रूप !!
 
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम !
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम !!

 ✍सत्यवान सौरभ, 

 

(6)  मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए !!



 


 



कर दे जो मन को तृप्त  
ऐसा एक उपहार चाहिए !
बुझ जाये इस मन की प्यास ,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए !!

चाहता अब मन नहीं , झरने सा व्याकुल बहना !
चुभन काँटों की लिए , डूबा यादों में रहना !!

दर्द का जो स्वाद बदल दे
मुझे वो अहसास चाहिए !
बुझ जाये मन की प्यास ,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए !!

जब- जब तुझपे गीत लिखा ,  नाम तेरे मेरे मीत लिखा !
 कैसे भूले तुझको साथी , हार को  मैंने जीत लिखा !!

पास बैठकर बात करो तुम,
मुझे न अब इंतज़ार चाहिए !
बुझ जाये इस मन की प्यास ,
मुझे  तुम्हारा प्यार चाहिए !!

 उजड़ा-उजड़ा जीवन ये , घूँट पीड़ा के पी रहा !
 आकर देखो साथियाँ, कैसे हूँ मैं जी रहा !!

चहक उठे मेरा घर-आँगन ,
तेरे दुपट्टे की बहार चाहिए !!
बुझ जाये इस मन की प्यास ,
मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए !!

 

  ✍सत्यवान सौरभ,   

 

(7) दोहा गीत

*********************


समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !


छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार !!



सुबह हँसी, दुपहर तपी, लगती साँझ उदास !


आते-आते रात तक, टूट चली हर श्वास !!


पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक !


जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक !!



होनी तो होकर रहे, बैठ न हिम्मत हार !


समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!



पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव !


कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव !!


रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष !


नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष !!



तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार !


समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!



दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात !


सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात !!


चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार !


चलने से कटता सफ़र,चलना जीवन सार !!



काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार !


समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!


छोटी- सी ये ज़िंदगी, तिनके सी लाचार !!



•••••••••••••••••••✍ #सत्यवानसौरभ


स्वरचित/मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित


  

 

(8)पहले जैसा प्यार !!

मतलबी रिश्ते-मित्रता, होते नहीं खुद्दार !
दो पल सुलगे कोयले, बनते कब अंगार !!


आखिर किस पे अब यहाँ, करे स्व: ऐतबार!!
करते हो जब खास ही, छुपकर हम पे वार !!


घर में पड़ी दरार पर, करो मुकम्मल गौर !
वरना कोई झाँक कर, भर देगा कुछ और !!


रिश्तों में जब भी कभी, एक बने अंगार !
दूजा बादल रूप में, तुरंत बने जलधार !!


सुख की गहरी छाँव में, रिश्ते रहते मौन !
वक्त करे है फैसला, कब किसका है कौन !!


मित्र मिलें हर राह पर, मिला नहीं बस प्यार !
फेंक चलें सब बाँचकर, समझ मुझे अखबार !!


अब ऐसे होने लगा, रिश्तों का विस्तार !
जिससे जितना फायदा, उससे उतना प्यार !!


फ्रैंड लिस्ट में हैं जुड़े, सबके दोस्त हज़ार !
मगर पड़ोसी से नहीं, पहले जैसा प्यार !!


भैया खूब अजीब है, रिश्तों का संसार !
अपने ही लटका रहें, गर्दन पर तलवार !!


अब तो आये रोज ही, टूट रहें परिवार !
फूट-कलह ने खींच दी, आँगन बीच दीवार !!


कब तक महकेगी यहाँ, ऐसे सदा बहार !
माली ही जब लूटते, कलियों का संसार !!


✍ सत्यवान सौरभ


 

 

 

(9)   बापू बैठा मौन

 

बल रहे रिश्ते सभी, भरी मनों में भांप !

ईंटें जीवन की हिली, सांस रही हैं कांप !!


बँटवारे को देखकर, बापू बैठा मौन !
दौलत सारी बांट दी, रखे उसे अब कौन !!


नए दौर में देखिये, नयी चली ये छाप !
बेटा करता फैसले, चुप बैठा है बाप !!


पानी सबका मर गया, रही शर्म ना साथ !
बहू राज हर घर करें, सास मले बस हाथ !!


कुत्ते बिस्कुट खा रहे, बिल्ली सोती पास !
मात-पिता दोनों करें, बाहर आश्रम वास !!


चढ़े उम्र की सीढियाँ, हारे बूढ़े पाँव !
आपस में बातें करें, ठौर मिली ना छाँव !!


कैसा युग है आ खड़ा, हुए देख हैरान !
बेटा माँ की लाश को, नहीं रहा पहचान !!


कोख किराये की हुई, नहीं पिता का नाम !
प्यार बिका बाजार में, बिल्कुल सस्ते दाम !!


भाई-भाई से करें, भीतर-भीतर जंग !
अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग !!


रिश्तों नातों का भला, रहा कहाँ अब ख्याल !
मात-पिता को भी दिया, बँटवारे में डाल !!


कैसे सच्चे यार वो, जान सके ना पीर !
वक्त पड़े पर छोड़ते, चलवाते हैं तीर !!




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