ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञानता नहीं बल्कि ज्ञान का भ्रम है
ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक, प्राकृतिक और मानवीय तत्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनदिन तथा वैज्ञानिक होता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। ज्ञान शब्दों का भण्डार होता है। ज्ञान दो तरह का होता है। एक ज्ञान वह जो पुस्तकों को पढ़कर ग्रहण करते है, और दूसरा व्यवहारिक ज्ञान होता है। पुस्तक का ज्ञान होने के साथ दुनियादारी का ज्ञान भी होना जरूरी है।
ज्ञान को ही मनुष्य वास्तविक शक्ति मानता है। वास्तविक वस्तु वह है जो सदैव हमारे साथ रहती है। धन नष्ट हो जाता है, तन जर्जर हो जाता है, और सहयोगी या साथी भी छूट जाते है। लेकिन ज्ञान ही एक ऐसा तत्व है जो, कभी भी किसी स्थिति या अवस्था में साथ नहीं छोड़ता है। और हम ज्ञान के बल पर ही लोगों या समाज में सहयोगी को अपना बना सकते है।
ज्ञान किसी पुस्तक में छिपी एक तत्व नहीं है। संसार में हर कहीं ज्ञान है। हर जगह पर हम ज्ञान प्राप्त कर सकते है। पहला ज्ञान हमे माता से और फिर गुरु से मिलता है। पूरा ज्ञान जब आत्मा-परमात्मा पर विलीन होते है, तभी पूर्ण होता है। जन बल को अपने पक्ष में करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है।
ज्ञान के अभाव में शक्ति का न होना बराबर होता है। उदाहरण के लिए मान लिया जाये की उत्तराधिकार में धन मिले या संयोगवंश अकस्मात धन पा लिया। तो क्या माना जाता है कि, धन में शक्ति होती है। लेकिन धन में शक्ति नहीं होती है, वह शक्ति तभी बन सकती है जब उसके साथ उसके प्रयोग या उपयोग में ज्ञान को समावेश किया जायेगा। ज्ञान के बिना मनुष्य नहीं जान सकता कि, किस तरह से उस धन का कौनसा व्यवसाय करे, किस जन-हितैषी को दान दे, समाज के लाभ के लिए कौनसा स्थापना करे। वह धन द्वारा किस प्रकार दीन-दुखियों की सहायता करे या आवश्यकता लोगों की सहायता करे। हमे सब विषयों में ज्ञान होना जरूरी है। लेकिन ज्ञान का भ्रम नहीं करना चाहिए।
ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञानता नहीं बल्कि ज्ञान का भ्रम है। हमे कभी ज्ञान का भ्रम नहीं करना चाहिए। अगर हमे किसी विषय के बारे में पता नहीं तो, हमे किसी से पुछ लेना चाहिए। हमे यह जताना नहीं चाहिए की सब कुछ पता है, ऐसा करेंगे तो ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते है। हमे कभी भ्रम में नहीं जीना चाहिए। विद्धवान पंडित कितनी ही बड़ी बड़ी पुस्तके पढ़कर मुत्यु के द्रार पहुँचता है, लेकिन विद्धवान नहीं हो सके|सच्चा ज्ञानी वह होता है जो केवल एक अक्षर प्रेम का अर्थात प्रेम का वास्तविक पहचान ले वही ज्ञानी होता है| सच्चा ज्ञानी वह भी होता है जो मानव मात्र से प्रेम करता है। थोड़े पंडित ऐसे भी होते है जो, अपने आपको बड़े विद्धवान समझते है, ऐसा समझते है की वह आसमान को भी छु सकते है। असल में वह भ्रम में जी रहे होते हो। दरअसल उसे कुछ भी पता नहीं होता है।
बहुत से लोग धार्मिक और ग्रंथ में दी हुई जानकारी को ज्ञान मान लेते है| और बहुत से लोग महात्माओं के वाक्यों को रट लेना भर ही ज्ञान समझ बैठते है| यह सब ज्ञान नहीं है| यह सब ज्ञान प्राप्ति के लिए साधन एक मात्र है। पुस्तक पढ़ लेने अथवा किसी महात्मा का कथन सुन लेने भर ज्ञान की उपल्बधि नहीं हो सकती है। सच्चा ज्ञान, अनुभूति से द्वारा ही संभव या प्राप्त कर सकते है। ज्ञान ही जीवन का सार और आत्मप्रकाश है।
अलौकिक जीवन में खासकर अध्यात्मिक रूप में रहने पर साधु-संन्यासियों का ज्ञान, ईश्वर के समान हो माने जाते है। लेकिन लौकिक जीवन बितानेवाला व्यक्ति स्वार्थीपरक जिंदगी के बारे में ही सोचते रहते हैं। यह स्वार्थीपरक मन स्थिति मनुष्य को इस भ्रम में जलते है कि, मुझमें सब कुछ है। लेकिन यह ज्ञानता नहीं माना जाता है। दरअसल यह ज्ञानी होने का भ्रम है| एक व्यक्ति का ज्ञान तभी पूर्ण हो सकता है, जब वह परमात्मा में विलीन हो जाते है| साधारण मनुष्य के मन में जितनी भी आजकल के जिंदगी के प्रति लालसा है, सब कुछ पाने की अदम्य इच्छा है, वह ज्ञान नहीं अज्ञान है|
एक उदाहरण के तौर पर ले सकते है कि, एक शिक्षक को लगता है की वह कितना ज्ञानी है और उसे अधिक ज्ञानी कोई नहीं है| वास्तविक में यह उसका भ्रम होता है| ज्ञान का भ्रम है| कभी-कभी शिक्षक से अधिक उसका छात्र भी ज्ञानी हो सकता है| क्योंकि ज्ञान कभी भेदभाव नहीं करता| ज्ञान कभी छोटा या बड़ा नहीं देखता सबको समान रूप में देखता है|
असल में ज्ञान का मतलब केवल मोटी-मोटी पुस्तकों का अध्ययन करने से नहीं बल्कि ज्ञान वह गुण है, जिसके द्वरा मनुष्य अपने सुख-दुख ,काम-क्रोध लोभ-मोह इन सबका समन्वय अपने दैनिक जीवन में करता है|ज्ञानी मनुष्य को किसिका भय नहीं होता है, वह मुसीबतों का सामना कर सकता है| ज्ञान का उपयोग कर जीवन को सुलभ और सरल बना लेता है| अज्ञानता का होना कोई बुरी बात नहीं, यह किसी मनुष्य को जीवन जीने में बाध्य नहीं करता, अज्ञानता से मनुष्य अपने जीवन शैली में परिवर्तन नहीं ला सकता, बेहतर रोजगार प्राप्त नहीं कर सकता है| अज्ञानी पुरुष भी ज्ञानी बन सकता है लेकिन उसमे ज्ञान को अर्जित करने की जिज्ञासा होनी चाहिए| अत: ज्ञान का शत्रु अज्ञानता नहीं है|
थोड़े ज्ञान वाले व्यक्ति को ज्ञान होने का भ्रम होता है| उनका मन केवल दूसरों को निचा दिखाना, ईर्ष्या करना, आदि का कार्य करता है| उनमे सिखने की जिज्ञासा नहीं होती| अत: यह कहना उचित है कि, ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञानता नहीं बल्कि ज्ञान होने का भ्रम है|
बेशक ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु ज्ञान का भ्रम है| दूसरे शब्दों मै यह आपको सत्य जाने से रोकता है| आपको लगता है की आपके पास सच्चाई का ज्ञान है, लेकिन आप भ्रम में जी रहे होते हो| और आप उस सच्चाई को तलाशना बंद कर देते हो|
इस बदलते युगमें हर एक इंसान को अपने ज्ञानी होने का अभिमानी होता है|वह सोचते है की ज्ञान का इस्तमाल करके इस दुनिया मै कुछ भी कर सकते है| सब इस ज्ञान के भ्रम मै जीते है| ज्ञान का उपयोग दो तरह से किया जा सकता है किसी अच्छे काम के लिए और दूसरा बुरे काम के लिए किया जाता है| ज़्यादातर आज के युग में लोग ज्ञान का उपयोग बुरे काम के लिए करते है, जैसे लोगों को ठगना, बेवकूफ बनाना आदि| और यह समझते है की वह ज्ञानी इंसान है| दरअसल इसका यह भ्रम होता है|
किस चीज का ज्ञान नहीं होना ये कोई कमजोरी नहीं है, कमजोरी यह की ना जानते हुए भी दावा करे की सब कुछ जानते है| ज्ञान का भ्रम पैदा कर लेते है| और इसी वजह से ज़िंदगी मै पीछे रह जाते है| एक अज्ञानी व्यक्ति अपने जीवन की कितनी उपल्बधियों से वंचित रह जाते है| इसलिए यह भी कहते है कि, ज्ञान से बड़ा कोई साथी नहीं और अज्ञानता से बड़ा कोई शत्रु नहीं| ज्ञान हमेशा हमारा साथ देता है कभी अकेला नहीं छोड़ता है|
पूजा सचिन धारगलकर
इ.डब्ल्यू.एस 247, हनुमान मंदिर के पास, हाउसिंग बोर्ड रुंडमोल दवर्लिम सालसेत (गोवा) -403707
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