हिन्दी के समकालीन ग़ज़लकारों की मूल संवेदना
ग़ज़ल हिंदी की सबसे ज्यादा पढ़ी, समझी और सराही जाने वाली विधा है. यह अरबी से होते हुए फिर उर्दू से हिंदी में आई. अरबी फारसी और उर्दू की ग़ज़ल अपने कथ्य के स्तर पर एक ही सी रही. कहने का अर्थ है ग़ज़ल जिसे प्रेम काव्य की संज्ञा दी गई, इन भाषाओं ने उस स्वभाव का पूरा निर्वाह किया. जिसका असर यह हुआ कि यह ग़ज़ल स्त्री से गुफ्तगू करती रही और उसने अन्य सामाजिक समस्याओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया. इसी समय हिंदी में दुष्यंत नामक शायर उभर कर आए, जिन्होंने गजल के माध्यम से आम लोगों की तकलीफों और रोजमर्रा की जरूरतों पर बात की, जो गजल के लिए बिल्कुल नई बात थी. तब दुष्यंत ने कहा.....
वह कर रहे हैं इश्क पर संजीदा गुफ्तगू
मैं क्या बताऊं मेरा कहीं और ध्यान है
जाहिर है दुष्यंत का ध्यान गरीबी भ्रष्टाचारी बेकसी और आम लोगों की चिंताओं की तरफ था. उनकी रचनाओं के इस तेवर ने ग़ज़ल का एक नया मार्ग प्रशस्त किया, और हिंदी में ग़ज़ल इश्क़ हुस्न से हद तक बच कर सर्वहारा वर्ग की फिक्र की तरफ गामजन हो गई. जिसका आने वाली बाद की पीढ़ी के रचनाकारों ने भी पूरा निर्वाह किया. ऐसा नहीं है कि हिंदी ग़ज़लों में प्रेम की बातें नहीं होती. गजल लिखते हुए प्रेम मोहब्बत की बातें किसी ने किसी शेर में आ जाना स्वाभाविक है, लेकिन हिंदी की गजलें प्रेमालाप की शायरी बनकर नहीं रह गई. समाज का हर दुख दर्द इसके दायरे में आ गया. इसलिए बादशाहों राजमहलों, और रईसों तक सिमटी हुई पुरानी ग़ज़ल हिंदी ग़ज़ल में नए सांचे में आकर ढल गई. तब गजल संवेदनात्मक स्तर पर उस बड़ी आबादी से जुड़ गई जिसके पास पहनने के कपड़े खाने के दाने और रहने की मोहताजी है. गजल ने विरोध का रूप अख्तियार. किया उसके तेवर तल्ख हुए. उसने सत्ता की निरंकुशता के खिलाफ ऐसी आवाज उठाई कि नेहरू को भी मजबूर होकर दुष्यंत को अपने दफ्तर में तलब करना पड़ा. हिंदी कविता की निराला, नागार्जुन और दिनकर वाली मुखर शैली हिंदी ग़ज़ल का स्वभाव बन गई.
हिंदी गजल के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है. इसलिए भी है कि इस समय हिंदी ग़ज़ल के कई शायर ना मात्र अच्छी ग़ज़लें लिख रहे हैं, बल्कि उनकी ग़ज़लें हिंदी साहित्य में स्वीकारी भी जा रही हैं. यह शायर समाज के हर उतार-चढ़ाव पर नजर रखता है. और जहां मनुष्य की संवेदना उसे खेलने की कोशिश की जाती है वह अपना विरोध पूरी ताकत से दर्ज करता है. हिंदी गजल मनुष्य को प्रेम, उल्लास, और सुकून से जीने देने की हिमायत करती है. वह उस हर बंटवारे के खिलाफ है जो मनुष्य को जालिम, कठोर और भीड़ तंत्र का हिस्सा बना देती है. समकालीन हिंदी ग़ज़लकारों में एक महत्वपूर्ण नाम विनय मिश्र का है. लवलेश दत्त मानते हैं कि उनकी ग़ज़लें अपने समय और आबोहवा की महक से लबरेज़ हैं.1
राम अवतार मेघवाल का कथन है कि विनय मिश्र की संवेदनाओं की जमीन जन धर्मी है.2वह आज की उथल - पुथल जिंदगी के बीच बेचैनी के शायर हैं. आज की लुप्त होती मानवीय संवेदना और बाजारवाद का विस्तार न जाने उनके कितने शेरों में है. हर शोषण कुंठा.भय, और निराशा के खिलाफ उनके शेर सबसे पहले मुखर होते हैं. मनुष्य की लुप्त होती संवेदना पर उनकी फिक्र सबसे पहले सामने आती है. लोग मर रहे हैं लेकिन अखबार इस दर्द से अलग अपनी खबर बनाने में लगा हुआ है..
समाचारों में रौनक लौट आई
गड़े मुर्दे उखाड़ने जा रहे हैं3
पर कवि इस बदलते हुए माहौल से खौफज़दा नहीं है...
अकेला दिख रहा हूं हूं नहीं मैं
मैं हारा दिख रहा हूं हूं नहीं मैं 4
उसे उम्मीद है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब जरूरतमंद अपनी जरूरतों के लिए नहीं भटकेंगे. शायर का यह आत्मविश्वास है जो सिर चढ़कर बोलता है...
आंधियों की ज़िद से लड़कर और गहराई जड़े
कोई बरगद एक ताकत की तरह मुझ में रहा
दुष्यंत के बाद के शायरों में जिसे एक और शहर का प्रमुखता से जिक्र होता है, वह जहीर कुरैशी हैं. उनका हर शेर दंगे, हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ एक आवाज है. जहीर बेहद संवेदनशील शायर हैं जैसा के डॉ साईमा बानो ने भी माना है' जहीर की ग़ज़लें इस मशीनी युग में मनुष्य की संवेदनशीलता को टटोलती है 5उनके हर शेर वास्तविकता के निकट हैं. जहीर ने सरकार, संसद, प्रजातंत्र, सब पर प्रहार किया है. लेकिन उनकी मूल संवेदना उन हाशिए के लोगों के साथ हैं जो जिंदगी की मुश्किलों से गुजर रहे हैं. उनके कुछ शेर देखे जा सकते हैं....
किस्से नहीं हैं ये किसी विरहन के पीर के
ये शेर हैं अंधेरों में लड़ते ज़हीर के6
क्या पता था कि किस्सा बदल जाएगा
घर के लोगों से रिश्ता बदल जाएगा 7
एक औरत अकेली मिली जिस जगह
मर्द होने लगे जंगली जानवर8
डॉ. उर्मिलेश हिंदी गजल में भरोसे के शायर हैं. समाज और देश की हर घटने वाली छोटी-बड़ी घटनाओं पर उनकी नजर है. उनकी ग़ज़लें लोगों की संवेदना के स्तर पर व्यापक जन समूह से जुड़ जाती हैं. हिंदी गजल को मंच पर स्थापित करके उन्होंने अपना बड़ा पाठक वर्ग तैयार किया है. उनके कई शेर मनुष्य को हर स्थिति में संवेदनशील होने के फरमान देते हैं. जैसे यह शेर....
बादलों को जरा सा हटने दो
सब के आंगन में धूप निकलेगी9
हिंदी ग़ज़ल को ग़ज़ल और आलोचनात्मक स्तर पर विकसित करने वालों में हरेराम समीप बेहद परिश्रमी लेखक हैं.' समकालीन हिंदी गजल का एक अध्ययन 'उनकी महत्वपूर्ण आलोचनात्मक और 'इस समय हम 'ग़ज़ल की बेहद लोकप्रिय किताब है....
सच कहेगा तो जान जाएगी
बोल क्या चीज तुझको प्यारी है
कहने वाले हरेराम समीप बकौल रामकुमार कृषक सकारात्मक सोच के शायर हैं. उनकी ग़ज़ल की विशेषता यह है कि ये अपने आप से बातें करते हैं, और इन्हीं बातों में इनकी जनधर्मिता भी छुपी होती है.
संवेदना के स्तर पर इनके शेर सीधे मनुष्य के मर्म को स्पर्श करते हैं. कुछ शेर मुलाहिजा हो....
दोष किस से दूँ बर्बादी का
मैं ही इसका कारण हूं10
दोस्तों की राय है कि शायरी मैं छोड़ दूं
जंग में यह आखिरी हथियार कैसे डाल दूं11
मुहावरों की तरह मैं पुरानी चीज सही
अभी भी देखिए मुझ में वही नयापन है
ग़ज़ल में बहर की बात आते ही हमारा ध्यान विज्ञान व्रत की तरफ जाता है. हिंदी ग़ज़ल में छोटी बहरों की बंदिश के लिए वह जाने जाते हैं. बिल्कुल कम से कम शब्दों में अपनी बातें रखना उनकी ग़ज़लों की विशेषता है. मनुष्य हो या समाज संवेदनात्मक स्तर पर वह सब को जगाने का काम करते हैं. उनकी एक ग़ज़ल के कुछ शेर देखे जा सकते हैं...
मैं निशाना था कभी
एक खजाना था कभी
वो जमाना अब कहां
वो जमाना था कभी
आपका किरदार हूं
तो बचाना था कभी......विज्ञान व्रत
ठीक इसी प्रकार कुंवर बेचैन भी संवेदनहीन होती दुनिया का जिक्र अपनी एक ग़ज़ल में करते हैं...
फूल को हार बनाने में तुली है दुनिया
दिल को बीमार बनाने में तुली है दुनिया
हमने लोहे को गला कर जो खिलौने ढाले
उनको हथियार बनाने पर तुली है दुनिया
सरदार मुजावर मानते हैं कि उनकी गजलों में आदमी की असलियत पर रोशनी डाली गई है12
सूर्यभानु गुप्त भी हिंदी के चर्चित गजलगो माने जाते हैं. आज की जिंदगी की भागदौड़ और छीजते मानवीय मूल्य उनकी गजलों के पोशाक बने हैं उनके प्रतीक नये हैं और मौजूदा विसंगतियों पर प्रहार करने का तौर तरीका भी नया है.
हर लम्हा जिंदगी के पसीने से तंग हूं
मैं भी किसी कमीज के कालर का रंग हूं....सूर्यभानु गुप्त
नूर मोहम्मद नूर को इस बात की फिक्र है कि आज की दुनिया कितनी बेनूर हो गई है....
जब मुझे राह दिखाने कई काने आए
तब कहीं जाकर मेरे होश ठिकाने आए
हिंदी ग़ज़ल में गोपाल बाबू शर्मा की अधिकतर गज़लें देश और समाज की हालत पर करारा व्यंग्य करती हैं. मनुष्य ने किस प्रकार अपनी संवेदना को बेच दिया है इसकी बानगी यहां देखी जा सकती है...
आचरण खो रहा आदमी
निर्वासन हो रहा आदमी
पाप तो और मैले हुए
पुण्य को धो रहा आदमी
रामकुमार कृषक हिंदी गजल के खास चेहरे हैं. उनकी फिक्र है कि मौजूदा व्यवस्था कब तक रहेगी. कब तक दमन शोषण और उत्पीड़न का दौर चलता रहेगा. शिवशंकर मिश्र के मुताबिक उनकी ग़ज़लों में आकर्षण एक आवश्यक स्पेस है.13उनका यह शेर बड़ा मकबूल है कि....
आप गाने की बात करते हैं
किस जमाने की बात करते हैं
यही बात हिंदी गजल के एक महत्वपूर्ण शायर और आलोचक ज्ञान प्रकाश विवेक भी कहते हैं
न पूछ किस तरह खुद को बचा के आया हूं
मैं हादसों से बहुत लड़ा कर आया हूं
नचिकेता ने लिखा है कि ज्ञान प्रकाश विवेक की गजलें बोलती बहुत ज्यादा नहीं है बल्कि अपने पाठकों की संवेदना से अधिक जुड़ी होती हैं.14 हिंदी ग़ज़ल में पौराणिक प्रतीकों के इस्तेमाल के लिए फजलुर रहमान हाशमी जाने जाते हैं. मैथिली में जहां उनकी हरवहाक बेटी, और निर्मोही चर्चित कविता संग्रह है तो वहीं हिंदी में मेरी नींद तुम्हारी सपने ग़ज़ल संकलन चर्चा में है. हिंदी कविता के बेहद संवेदनशील शायर का हर शेर मानवीय प्रेम से ओतप्रोत है. कुछ शेर गौरतलब है...
जो आप समझ बैठे हैं वैसा नहीं होता
तालाब उमड़ जाए तो दरिया नहीं होता
आज रोटी के साथ है सब्जी
घर में मेरे बहार आई है
वो भले राम और खुदा लेकिन
नर स्वयं भाग्य का विधाता है..फजलुर रहमान हाशमी
मानव की संवेदना को आहत करने में संप्रदाय वाद का बड़ा हाथ है.'सम्प्रदाय से एक बड़ा तबका भरे प्रभावित होता है विद्वेष की ऐसी मानसिकता चंद असामाजिक तत्वों में ही होती है.16हिंदी गजल के कई शेर इस खौफनाक मंजर से रूबरू कराते हैं...
रोक पाएगी मोहब्बत को यह सरहद कब तक
जंग रह जाएगी दो मुल्कों का मकसद कब तक
रमेश सिद्धार्थ
रोज धर्मों के नाम पर दंगे
चल रहा सिलसिला किताबों में17
गजल महबूब से होते हुए किस प्रकार बेटी और मां तक पहुंचती है. इस की नुमाइंदगी हिंदी के अकेले शायर ए आर आजाद करते हैं. मां एक ग़ज़ल और बेटी ग़ज़ल इन के महत्वपूर्ण गजल ग्रंथ हैं. बेटी एक ग़ज़ल में एक ही काफिया पर पांच सो तीस शेर कहे गए हैं जो हिंदी ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं में भी नहीं मिलता. शायर की पूरी संवेदना बेटी के साथ है. यहां वह बेटी है जो कमजोर नहीं है और न श्रृंगार करने वाली है. बल्कि वह नई दुनिया के लिए ताकत बनकर उभरी है. शायर का एक शेर भी है..
नजरिया पढ़कर देखो उसका
कि रहीम रसखान है बेटी
ए. आर आज़ाद
इस प्रकार हिंदी गजल के अनेक शायर हैं जो समय के प्रति और समाज के प्रति संवेदनशील हैं. वह मुल्क और मनुष्य के हर बंटवारे के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करते हैं. जहां क्लेश का कोई स्थान नहीं है. यह शायद उस फिरके हैं जहां मानवता सबसे ऊपर है. देश के हालात, देश के श्रमिक वर्ग, देश के करोड़ों बीमार और मजबूर को देखकर इनकी सहानुभूति शीघ्र उम्र पड़ती है, और यह बेहद इमोशनल हो जाते हैं. हिंदी गजल के कुछ नुमाइंदा शायरों के शेर इस संदर्भ में देखे जा सकते हैं..
तुमने जिसे मज़हब की किताबों में पढ़ा है
हमने उसे बच्चों की निगाहों में पढ़ा है
देवेन्द्र आर्य
मेरे बेटे जहां तक हो सभी रिश्ते निभाते हैं
परिंदे भी तो देखो शाम तक घर लौट आते हैं
जियाउर रहमान जाफरी
लग जाने दो अब मुझे यारों
तनहा तनहा मेरा मां का होगा
विकास
आसमाँ से मौत कैसे आएगी सोचा था बस
एक परिंदा झील से मछली पकड़ कर ले गया
गजेंद्र सोलंकी
एक धागे का साथ देने को
मोम का रोम-रोम जलता है
बालस्वरूप राही
किसी भी शख्स में इंसानियत का
नजर आती नहीं अब तो निशां तक
राजेश रेड्डी
चल दिए वह सभी राब्ता तोड़कर
हमने चाहा जिन्हें फैसला तोड़कर
अनिरुद्ध सिन्हा
इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदी गजल किस प्रकार पुराने प्रेम रूपी चोले को छोड़कर रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ जाती है. ग़ज़ल का हर शेर असर पैदा करता ही है इसे पढ़ते हुए दर्शकों को लगने लगता है यह तो उनके दिल की ही बात है. मनुष्य की संवेदना को झकझोरने वाली यह विधा गजल हिंदी कविता में बेहद लोकप्रिय हैं. हिंदी साहित्य केअद्यतन इतिहास में इसने अपना स्थान बना लिया है.
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1. समकालीन ग़ज़ल और विनय मिश्र संपादक लवलेश दत्त, पृष्ठ 12
2.वही, पृष्ठ 39
3सच और है विनय मिश्र, पृष्ठ 50
4 वही, पृष्ठ 83
5. जहीर कुरैशी महत्त्व और मूल्यांकन, विनय मिश्र, पृष्ठ 229
6. चांदनी का दुख, जहीर कुरैशी, पृष्ठ 15
7 पेड़ तनकर नहीं टूटा, जहीर कुरैशी, पृष्ठ 83
8. चांदनी का दुख,ज़हीर कुरैशी, पृष्ठ 73,
9. धूप निकलेगी, उर्मिलेश, पृष्ठ 104
10. इस समय हम, हरेराम समीप, पृष्ठ 64
11. वही, पृष्ठ 65
12. हिंदी गजल का वर्तमान दशक, सरदार मुजावर, पृष्ठ 23
13.दसखत, पृष्ठ 57
14.अष्टछाप, संपादक नचिकेता, पृष्ठ 19
15. मेरी नींद तुम्हारे सपने, फजलुर रहमान हाशमी पृष्ठ, 19
16.ग़ज़ल लेखन परंपरा और हिंदी गजल का विकास, डॉ जियाउर रहमान जाफरी, पृष्ठ 83
17. हिंदी की श्रेष्ठ गजलें, संपादक गिरिराज शरण अग्रवाल,पृष्ठ 86
18. बेटी एक ग़ज़ल, ए आर आजाद, पृष्ठ 93
----डा जियाउर रहमान जाफरी
हाई स्कूल माफ़ी +2
वाया -अस्थावां
ज़िला -नालंदा
803107,बिहार
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