क्या किसी ने ईश्वर को देखा है
सच तो यह है कि ईश्वर वही है जहां माँ है
ईश्वर वही है जहां वह रसोई में पसीने से भीगी मेेरे लिए भोजन पकाती है
और वहां भी जब बुखार में रात भर मेरी पट्टियां बदलती है
मेरे चोट में मरहम लगाते हुए आंसू बहाते फूँक मारती है
और वहां जब देर होने पर बाहर की चाबी अपने पास छुपाती है
मां तू कैसे समझ जाती है मेरे मन के भीतर की उदासी तू कैसे याद रख लेती है मेरी पसंद और नापसंद
तू कैसे जान लेती है हर चीज छुपाने की जगह
मां तू कैसे नहीं भूलती मुझे रोज दवा खिलाना
मेरे थक कर घर आते ही जल्दी से पानी पिलाना
इस प्रगति और विकास ने मुझे तुझसे बहुत दूर कर दिया है
मुझे अकेले रहने पर मजबूर कर दिया है
अब मैं तेरे बिना थपकी के आंख मूँदता हूं
होटल के खाने में वह सुखी रोटी का स्वाद ढूंढता हूं स्कूल जाते समय मेरा सामान मुझे बहुत आसानी से मिल जाते थे माँ
आज दफ्तर की जल्दबाजी में भी एक रुमाल खोजता हूं
जब तू पास थी तो मैं दूर भागता
अब तेरी याद में कई-कई रात जागता हूं
मैंने जब चलना सीखा तूने ऊँगली थाम
मुझे सहारा दिया
आज देख ले कैसा बेटा हूं तेरे लड़खड़ाने के वक्त में तुझे लाठी थमा तुझसे दूर भागता हूं
मैं जानता हूं तू आज भी दुआ मेरे लिए माँगती है
मेरे सुख में हंसती दुख में आंसू बहाती है
तेरा कर्ज चुकाने के लिए यह दिन कुछ कम पड़ेंगे
तुझे पाने के लिए और एक जनम मांगता हूं
श्रीमती रामेश्वरी दास
पता- हरिओम सदन, विकास विहार कॉलोनी, महादेव घाट रोड ,निर्मल हॉस्पिटल के पास, रायपुरा, रायपुर(छत्तीसगढ़)
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