ग़ज़ल
ख़ुदा पर ठीकरें क्यों फोड़ता है
तेरी ही ख़्वाहिशों से दुःख बढ़ा है
ग़रीबी भुखमरी इसका सबब है
कोई अपनी ख़ुशी से कब मरा है
अगर दिल में फ़क़त उसके मोहब्बत
हवस से किसकी जानिब ताकता है
मुझे साया जो देता था शजर जो
मेरी हसरत के बाइस गिर गया है
तसव्वर से निकल आए हक़ीक़त
कहाँ अक्सर ये साहिब हो सका है
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