कविता....
(1)घर-2......
""""""""""""""""'"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
खांसते-खांसतें
आज जब सांसें
फूलने लगी तो मैं
भी उठकर चला गया
वेशिन पर
थूकने अपना बलगम !!
तभी, बहुत सालों
के बाद पिता याद आए!
वही पिता जिनको
ठंढ से बड़ी
तकलीफ होती!
सर्दियों के दिनों
में उनकी तकलीफ
और,बढ जाती !
वो भी खांसते
खांसते अचानक
से उठकर
वेशिन के पास
आकर खड़े हो
जाते!
और,
थूकते उसमें ढेर
सारा बलगम!
किसी एक सर्दियों
के सालों
में ही पिता ने बताई
थी मुझे एक बात
कि मेरे मरने के बाद
भी तुम दोनों भाई कभी
अलग मत
होना घर से!
कि घर को बनाने में
कुछ महीने या साल
लगते हैं!
लेकिन, घर को बसाए
रखना बहुत मुश्किल है!
उस समय मैं, बहुत
छोटा था,
उनकी बात समझ
नहीं पाया था!
सालों की सर्दियां बीतीं
ये समझने में कि घर
बनाने और बसाने
में क्या अंतर है !
इस, बीच पिता
नहीं रहे ! और, बड़े
भाई अलग -थलग
रहने लगे!
(2)कविता...
हादसे का धर्म....
""""""'"""""""""""""""""""""""""""""""'""""""""""'""""""""""""""""""""""""""'"
एक छोटे से बच्चे
के मुंह से सुनकर
मैं अवाक रह गया!
जब उसने कहा
कि क्या हुआ
जो किसी विमान
हादसे में
100 लोग मारे गये!
ये हादसा हमारे देश
में तो नहीं हुआ ना !
वैसे भी वो मुस्लिम
देश है!
मैं सोच रहा था
कि मरने के बाद लोगों का
धर्म क्या होता होगा!!??
जरुरी नहीं कि मरने वाले
सारे लोग मुसलमान ही
रहें हो , उसमें कुछ हिंदू
सिख ,पारसी, जैनी भी रहें
होंगे ,
या कुछ यहुदी, ईसाई,
या बौद्धिष्ट भी रहें होंगे!
कि क्या मरने वाले लोगों
के परिजनों की भावनाएं
भी अलग- अलग रही
होंगीं??
कि क्या उनकी
आंसूओं का खारा पन
भी अलग -अलग रहा
होगा..!!??
पता नहीं कौन इन
बच्चों में इतना
जहर भर रहा है !
कुछ भी हो हमें
बचाना होगा बच्चों
को इस जहर से !!
नहीं तो आने वाली
नस्लें बर्बाद हो जाएंगे!!
(3)कविता....
दंगें में जली दुकानें !
""""""""""""""""""""""""""""""""""“'"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
दंगें की खबरें
जिन इलाकों में सुनाई पडतीं है
वो इलाका कर्फ्यू के हवाले
हो जाता है!
और बंद हो जाती है
दुकानें!
इसमें मारे जाते हैं
निरीह लोग..
जलाई जाती हैं
दुकानें!
कत्ल कर दिए जाते हैं
बेतहाशा लोग,
बच्चे, बूढ़े, और जवान!
दंगाई जलाते समय
नहीं सोचते कि
कितनी कुर्बानियों
के बाद एक दुकान
खडी़ की जाती है!
कभी- कभी
दुकान खडी़ करने में
बिक जाते हैं
आडे वक्त में काम
आने वाले गहने!
कि तैयार करने में
किसी दुकान को
अपनी कई-कई
जरूरतों
को आज की जगह
कल पर टाला जाता है!
कि पेट काट - काटकर
थोडे़ थोडे़ पैसे से
खडी़ की जाती है दुकान!
दुकानें आसरा होतीं हैं
रोटी की जुगाड़ के लिए!
जिसके, पीछे पलते हैं
परिवार!!
महेश कुमार केशरी
C/O-मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड
पिन -(829144)
No comments:
Post a Comment