(1)कविता...
उस स्याह काली रात की दास्तान आखिर
कौन लिखेगा...???
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जब हम मरने लगे और
आंकड़ों में सिमटने लगे
ये उस समय की बात है
जब मजदूर बहुत ही
आडे वक्त से गुजर रहा था
जिसने इस देश को बनाया,
रचाया, सजाया था !!
जब, तुम सोते थे तब हम
जगते थें. तुम अपनी मुकम्मल
नींद पूरी करो इसके लिए हम
जगते रहे!!
सोचा, कभी तुम भी हमारे लिए
जगोगे, लेकिन, नहीं, तुम अपनी
नींद सोते रहे और सुनहरे ख्वाब
देखते रहे तुम्हारे सपनों के लिए
भी हमें जगना था!!
इसलिए भी हम जगते रहे!!
फिर, एक स्याह- काली रात
में हम पटरियों पर थककर
सो गये तो सोचा तुम हमें
जगाओगे!!
बहुत दिनों से जगते आ रहे थें
इसलिए गहरी नींद आ गयी
और, हम गहरी नींद सो गए!!
सुबह , हम सोकर नहीं उठे
क्योंकि, तुमने हमें जगाया
ही नहीं!!
मरने के बाद हम
आंकड़े बन गए, लोग- बाग
दुखी होकर कहते कि कल
रात सोलह मजदूर ट्रेन से
कटकर मर, गये, कि उसके
अगले दिन 24 मजदूर कंटेनर
दुर्घटना में मर गये. तो कहीं
हृदय गति रुक
जाने से कोई मजदूर मर गया!!
हम सारे देश को पालते रहे
लेकिन, देश ने दो महीनों में
अपनी औकात दिखा दी .
हम भूखे थे, हम पैदल चले, हमारे
बच्चे भूख से बिलबिलाते रहे !!
कभी ट्रेन से कटकर ,कभी पैदल,
चलते हुए, तुम्हें स्वाभिमानी बनाने
के लिए हम ने अपना सबकुछ
दांव पर लगा दिया!!
इस देश का जी. डी. पी.
बढाने के लिए हमने आपना
खून -पसीना जला दिया!!
आखिर, वो कौन सा हाकिम था
जिसे हमने बीसियों बार फोन
किया लेकिन उसने हमारी कोई
खबर ना ली
और ना ही हमें, सकुशल
अपने घर भिजवा पाया!!
हाकिम भी मालिक की तरह सोता
रहा, अपने एयर कंडीशन कमरे
में, क्योंकि हाकिम की जगह हम
जगते रहे, देश को गढने के लिए!!
लेकिन, इन सोलह मौतों की गवाह
वो स्याह काली रात है, वो पटरियां हैं
वो रोटियां हैं , वो
पटरियों पर फैले खून
के धब्बे हैं!!
क्या हमारी मौत का मुकदमा भी
किसी अदालत में चलेगा..??
जिस हाकिम को बीसियों बार हमने
फोन किए, उस हाकिम के खिलाफ
कौन फैसला सुनाएगा .!!???
एक हाकिम दूसरे हाकिम
के खिलाफ कैसे फैसला देगा !!??
इन सोलह मौतों के गवाह हैं वो
स्याह काली रात, वो चांद, वो
रोटियां, वो पटरियों पर पडे
खून के घब्बे , !!
क्या इनकी गवाही काफी होगी
हाकिम को कटघरे में खडा करने
के लिए??
आखिर, उस स्याह
काली रात की दास्तान
कौन लिखेगा...???
(2)कविता...
इन सबकी एक भाषा होती है...!!
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दुख, में जब हम होते हैं
तो उसकी कोई
अलग भाषा नहीं होती!!
भूख की तकलीफ भी
लगभग एक जैसी
होती हैं!!
मजबूर लोगों
की बेकसी भी लगभग
एक जैसी होती है !!
प्रेम के स्वरुप भी
लगभग एक जैसा होता है
लोगों के दिलों में !!
चीखते वक्त भी हम
एक ही तरह चीखते हैं!
इस तरह से देखा जाए तो
उदासी के लम्हें भी
एक से होते हैं !!
इंतजार का समय भी
लगभग एक जैसा होता है !!
इबादत में अपने इष्ट
को हम एक तरह से याद करतें
हैं!!
दुख, भूख, मजबूरी, प्रेम,
चीखें, उदासी, इबादत और इंतजार,
ये ऐसी चीजें हैं जिनको पहचाने के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं होती !!
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(3)कविता..
जैसपर रीड
और मुकेश तुम्हें अनेकों साधुवाद...
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तुम आए
थे सात समुन्दर
पार से करने को
व्यापार, लेकिन थे
तो तुम भी इंसान !!
ऐसे मुश्किल वक्त में
जब राजनीतिक लोग
राजनीतिक रोटियां
सेंकने में लगे थें!!
लोग बस - बस
खेल रहे थें!
और मजदूर
उनके लिए
बन गये थे सिरर्दर्द!!
सचमुच, उस समय
भूख
भूख और भूख ही था
मजदूरों के दिमाग में!!
मजदूर मानसिक
रूप से भी पीड़ित थें
और शारीरिक रूप से ,
भी !!
तुमने हरियाणा रोडवेज
को दस बसें भी दीं
ताकि, मजदूर अपने
घरों तक जा सकें!!
कैसे शुक्रिया अदा करूँ
तुम्हारा मेरे पास शब्द
नहीं हैं, तुम्हारे लिए!!
तुम्हें और मुकेश के दिल
में चोटिल मजदूरों के प्रति
जो दया की भावना थी
और जो कुछ तुमने उन
बेघर लोगों को लिए किया.
वो सचमुच तुम्हारे लिए
हम भारतीय के दिलों में
तुम्हारे प्रति श्रद्धा के भाव
पैदा करता है !!
लाकडाउन के पहले
हफ्ते से तुमने 30
लोगों को खाना खिलाना
शुरू किया, सांतवे -आठवें
सप्ताह तक छह हजार लोगों
को खाना खिलाने लगे.
दो - सौ लोगों को रोज
कच्चा राशन किट
मुहैया करवाते रहे !!
तुम अकेले नहीं थें
इस मुहिम में उन
अज्ञात
इक्कीस देशों को भी
शुक्रिया!!
जिन्होनें
दो करोड़ रुपये देकर
हमारी मदद की थी
उनके लिए भी हम भारतीय
सदैव तुम्हारे ऋणी रहेंगें!!
मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं हैं
जैसपर , और मुकेश!!
तुम हमेशा मेरी कविता
और हम भारतीयों के दिलों
में रहोगे!!
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