विषय- मज़दूर
विशेष- *गुरन बसर* नाम अरुणाचल प्रदेश के अनुसार दिया गया है
विधा-लघुकथा
शीर्षक- तमाशा
कोरोना काल की इस संकट घड़ी में यदि भूख से कोई अधीर हो रहा है तो वो है मज़दूर। पहाड़ो को तोड़कर, जमीन की काटकर रास्ता बनाने वाला, कल-कारखानों में पसीना बहा पैसा कमाने वाला।
सोसल मीडिया के इस दौर में कुछ एक लोगों ने इन मजदूरों की भूख पर चिंता व्यक्त की ।
फिर क्या था समाज के कुछ एक धनिक वर्ग, सामाजिक कार्यकर्ताओं व विभिन्न दलों से जुड़े नेताओ में इनकी बेबसी का तमाशा बनाने की होड़-सी मच गई। तब शुरु हुआ इनकी मदद करने का दिखावटी सिलसिला।
इसी क्रम में ईटानगर के प्रतिष्ठित साहूकार गुरन बसर की कोठी में समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगो की बैठक रखी गई जिसमे गरीब , बेघर मजदूरों की सहायता कैसे की जाए पर चर्चा की जा रही है। पास ही एक टेबल पर मजदूरों को बांटने के लिए राशन के समान रखे हुए हैं।
कोठी के बाहर ही चौखट के किनारे पालती मार गुरन बसर के यहाँ काम करने वाला एक माली जिसे इस संकट की घड़ी में काम में आने से मना कर दिया गया है, बैठे हुए ईश्वर तुल्य मालिक से मिलने के लिए अधीर है। शायद कुछ मदद की आस से आया हो।उसके पिचके गाल, करुणा से भरी आंखे ही उसका सारा हाल कह रही हैं।
बैठक समाप्त हुई , मालिक की नज़र माली पर पड़ी तो डांटते हुए तीखे लहज़े में कहा कि क्या तुम मुझे मरवाओगे, घर पर आराम करो, मालूम है न कोरोना वायरस फैला है,मुझे बहुत काम है मालिक की डांट सुन कर वह मूक हो कहीं और काम की तलाश में निकल जाता है।
अगली सुबह शहर में चर्चा थी……. गुरन बसर ने एक हज़ार गरीब मजदूरों को अन्न, राशन बांटा। संकट की घड़ी में भगवान बन असहायों की सहायता की।
लेकिन माली को इन खबरों से क्या ?
रचनाकार- शिवेंद्र यादव
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