Impact Factor - 7.125

Thursday, June 4, 2020

शीर्षक : फ़ासला रखो

शीर्षक : फ़ासला रखो *


ओ ! मेरे अज़ीज़ो-अकरबा
ओ ! मेरे हमनफ़स, मेरे हमदम
यक़ीनन अभी ग़मगीं है ज़िन्दगी
दिल ख़ौफ़ज़द है और आँखें नम

वबा के दहाने में सारा जहां क़ैद है
लिबास-ए-ख़ुदा का रंग सुफ़ैद है
मगर नज़दीकियां, हाय! दुश्वारी है
क़फ़स में ज़िन्दगी मौत पे भारी है

मेरे हमदम अभी ज़माने की नब्ज़ नासाज़ है
हर कूचे से उठती बस सिसकी की आवाज़ है
अभी हमें तल्ख़ी-ए-तन्हाई का घूँट पीना है
दरिया-ए-वक़्त को कतरा कतरा जीना है

मेरे साथी, मेरे हमसफ़र
सादिक़ जज़्बे से अपनों की फ़िक्र करो तुम
फ़ासलों से ही जीत है इसका ज़िक्र करो तुम
फ़ासला न रक्खा, देखो शिकंजा कस गया
घुटकर जीने का ख़ौफ़ नस-नस में बस गया

फ़ासला रखो कि स्याह अंधी रात पसर रही है
फ़ासला रखो कि मुल्क़ पे क्या-क्या गुज़र रही है
फ़ासला रखो कि मज़दूर के पैरों में छाले फूट रहे हैं
फ़ासला रखो कि यहाँ बेटों की मौत पे बाप टूट रहे हैं
फ़ासला रखो कि नयी दुल्हन तक हिज्र में तड़प रही है
फ़ासला रखो कि बेवा पति की लाश को बिलख रही है
फ़ासला रखो कि लाखों पेट को रोटी नसीब नहीं है
फ़ासला रखो कि गिरजा में अब बची सलीब नहीं है
फ़ासला रखो कि अपनी माँ को अभी तीरथ कराना है
फ़ासला रखो कि उस पुराने दोस्त को गले लगाना है
फ़ासला रखो कि आँखों में नींद लौट आएगी
फ़ासला रखो कि ज़िन्दगी फिर से मुस्कुरायेगी
फ़ासला रखो कि महबूब के लबों पे शबनम ढलेगी
फ़ासला रखो कि वो हँसी फ़िज़ा में फिर से घुलेगी

मेरे दोस्त, तुम दिल में हौसला रखो
बस दिल-ओ-ज़हन से क़रीब आओ
मगर इक दूजे से अभी फ़ासला रखो
तुम फ़ासला रखो !
तुम फ़ासला रखो !

----------------------------------------------


 


प्रशान्त 'बेबार'



No comments:

Post a Comment

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal February - 2025 Issue