आदमी अक्सर जिं़दगी में कई तरह के झटके खाता है। कभी बिजली के तो कभी बिजली के बिल के, कभी दिल के तो कभी डॉक्टर के बिल के। अब भूकंप के झटके तो आम हो गए हैं। दिल्ली वालों के लिए तो कोरोना के झटके हों या भूकंप के ....... हुण की फरक पैंदा है जी ? जैसा मजदूर से लेकर मंत्री तक का एटीच्यूड हो गया है।
खर्चों में कटौती करने का बहाना बना कर , सरकार ने हमें 60 की बजाय 58 में ही नौकरी से टपका दिया जैसे आंधी में अधपके आम । सेवा मुक्त किया , पेंशन युक्त किया और एक खूंटी मंेे टांग दिया।
साल भर पहली पेंशन के इंतजार के बाद , मुंह पर मॉस्क लगाए , हाथों पर ग्लॅव्ज़ चढ़ाए , हम बैंक के गेट पर जैसे ही पहुंचे, वहां के सिक्योरिटी गार्ड ने हमारा स्वागत वैसे ही किया जैसे हमारे जमाने में बारातियों का स्वागत उन पर गुलाब जल या केवड़ा छिड़क कर किया जाता था। श्राद्ध जीमने आए पंडितों की तरह वह हर आने जाने वाले के हाथ - पैर सेनेटाइजर सें धुलवा रहा था। सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से अछूतों की तरह हमें दूर खड़ा किया गया। घ्ंाटे भर बाद नंबर आया तो पता ही नहीं चला कि किस बाबू के मत्थे लगना है। हर बाबू पिंगपांग की तरह हमें , एक काउंटर से दूसरे कांउंटर तक उछालने में लगा हुआ था। पता चला पेंशन बाबू आज कोरोना पाजिटिव हो गए हैं और उनका काम काउंटर नंबर 30 पर एक मोटे चश्में और भरी भरकम डील डौल वाली प्रौढ़ महिला एडीशनली कर रही हैं। हिम्मत कर के उनके सम्मुख उपस्थित हुए जहां एक रस्सी की सहायता से तीन फुट की दूरी बना कर रखी गयी थी। उनके चेहरे के भाव देखकर ऐसा लग रहा था मानों कह रही हों - तुझे भी आज ही मरना था ?
उसने ऐनक के निचले हिस्से से झांक कर हमारी श्री मती जी की तरह तुनक के पूछा ,‘ क्या है?‘
खैर ! हमने अपनी फरियाद रखी कि हमारी पहली पेंशन आ गई होगी !
वह गुर्राई ,‘ नाम ?’
हमने कहा -मास्टर राम लाल ।
कंप्यूटर में चेक कर के बोली,‘ आप मास्टर होकर धोखाधड़ी कर रहे हो ? तीन साल पहले मास्टर रामलाल की डेथ हो चुकी है , आप उसकी पंेशन क्लेम कर रहे हो ?’
हम चौंके और रिक्वेस्ट की ,‘ मैम ! आपको गलती लग रही है। मैं तो आज पहली पेंशन लेने आया हूं।आप इस एकांउट में चेक करिए। ‘आर‘ से चेक करिए । उसने नाक भौं सिकोड़ते हुए माउस इधर उधर घुमाया और पूछा ,‘ नाम?‘
- राम लाल।
बाप का नाम - शाम लाल ?
- जी ! यही है।
आप स्कूल में मास्टर होंगे । रिकार्ड में केवल राम लाल हैं।
- जी पासबुक में पेंशन नहीं आई।
- आएगी कैसे ? जिंदा होंगे तो आएगी न ?
- अरे मैम ! मैं जीता जागता आपके सामने खड़ा हूं । हाथ पकड़ कर देख लीजिए।’
बस इस बात पर वह और भड़क गई । हम सहमे कि कहीं दफा 376 ही न लगवा दे। पंेशन भूल कर उससे क्षमा मांगी।
एक गिलास पानी पीकर बोली,‘ रिकार्ड में जिन्दा होना जरुरी है।अपना लाइफ सर्टिफिकेट का एफिडेविट लाइये कि आप वर्ष 2019 से लेकर आज की तारीख तक जिन्दा हैं।’
खुद के माथे पर हाथ फेरा। पसीना भी असली लगा और खुद भी। पंेशन तो नहीं मिली पर ,टेंशन पूरी मिल गई ।
इस दुर्घटना जिक्र जब हमने अभिन्न मित्र से किया तो वे बोले,‘ मास्टर रामलाल ! आज जमाना बदल गया है। जमाना लाइव दिखने का है। आप अलाइव हैं या नहीं पर फेस बुक , व्हॉट्स एप, ट्वीटर , इंस्टा वगैरा वगैरा पर लाइव दिखना जरुरी है । लाइव होना इतना इर्म्पोंटंेट नहीं है जितना दिखना ।’
हमने कहा,‘ भाई जी! हम तो हमेशा लाइवली और पाजिटिव ही रहते हैं।’
वे बोले ,‘ खबरदार जो आगे से ऐसे लफजों का इस्तेमाल किया । बड़ी मुसीबत में पड़ जाओगे। किसी को गलती से भी खुद को पाजिटिव न बता देना। वक्त बदल गया है । हर चीज के मायने बदल गए हैं।परिभाषाएं बदल गई हैं। लोग मोबाइल तक ब्लॉक कर देंगे तुम्हारा कि कहीं तुम्हारे अंदर छिपा कोरोना निकल कर उनके कान में न घुस जाए। जमाना कहीं का कहीं जा पहुंचा है। सब कुछ मोबाइल में हैं और सब लाइव है।‘
लॉक डाउन के पहले चरण में जो डेड हो गए थे , वे दूसरे चरण में लाइव हो गए। कोई किचन में कोई क्लास में। जिसकी रोटी कभी गोल नहीं बनी, वह कुकरी क्लासें लाइव ले रहा है। जिन्हें ज्योतिष का क ख ग नहीं पता ,वे एस्ट्र्ालॉजी के लाइव कोर्स चला कर जम कर पैसा कूट रहे हैं। महिलाएं पार्ट टाईम लाइव होकर टेरो कार्ड सिखा रही हैं । जिनकी दूकान पर मक्खी तक नहीं घुसती थी वे ऑनलाइन सड़ा माल बेच रहे हैं। बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं। मैडमें बच्चों के मोबाइल, लैपटॉप पर जीती जागती पूरे मेकप में हाजिर है। बुजुर्ग लाइव लूडो खेल रहे हैं या तंबोला में वक्त काट रहे हैं। कोई ऑनलााइन खाना बना रहा है तो गाना गा रहा है। कोई खा रहा है तो कोई बेच रहा है ।
जिन्हें चुटकला तक समझ नहीं आता था, वो वेबीनार पर लाइव होकर कविता पाठ कर रहे हैं, साहित्यिक चर्चा कर रहे हैं। ज्निहें यह नही मालूम कि भारत में कितने राज्य , कितने केंद्र शासित प्रदेश हैं , वे गलवान मुददे पर इंडो - चाइना रिलेशन, भारत की विदेश नीति क्या हो ...जैसे मुदद्ों पर बतिया रहे हैं छुटभइये चैनलों पर लाइव होकर एक दूसरे को गरिया रहे हैं।
जो आजकल किसी के मोबाइल पर लाइव नहीं दिखता तो लोग शक करने लगते हैं कि भाई कहीं पाजिटिव होकर चुपचाप निकल तो नहीं लिया ? दिल्ली जैसी जगह तो घर वालों को ही नहीं पता चलता कि आखिर हुआ क्या हैं
सो भइये ! आज लाइवली और पाजिटिव रहने की बजाय लाइव दिखना लाइव होने से ज्यादा इम्पोर्टेंट है।
सो बेशक लाइव हो , पर लाइव दिखो ।
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- मदन गुप्ता सपाटू,
458, सैक्टर 1, पंचकूला.-134109 , हरियाणा।
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