बाल कविता - कालू बन्दर
कालू बंदर है बहुत परेशान,
भारी गर्मी से वो होता हैरान।
बादल कभी - कभी है दिखते,
ना जाने फिर क्यों नही टिकते।
प्रभु से फिर करने लगा गुहार,
प्रभु कर दो बारिश की बौछार।
उमड़ - घुमड़ कर बादल आये,
कालू झूम-झूम कर नाचे गाये।
तन - मन कालू के हो गए तृप्त,
बारिश जंगल मे हुई जबरदस्त।
दूर हो गयी जंगल से गर्मी की मार,
कई दिन बरसे बादल बारम्बार।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
No comments:
Post a Comment