तीसरा व्याख्यान : गाँधीवाद और हिन्दी साहित्य - राजीव रंजन गिरि
चौथा व्याख्यान : मार्क्सवाद और हिन्दी साहित्य - वैभव सिंह
वाणी डिजिटल : शिक्षा शृंखला और प्रभाकर सिंह, बीएचयू वाराणसी की ओर से आयोजित हिन्दी साहित्य का इतिहास : अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श का दूसरा पड़ाव में चौथे व्याख्यान का आरम्भ हुआ।
हिन्दी साहित्य का इतिहास : अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श व्याख्यानमाला के तीसरे व्याख्यान में "गाँधीवाद और हिन्दी साहित्य" विषय पर युवा आलोचक और गाँधीवादी समीक्षक राजीव रंजन गिरि ने कई प्रमुख बातें कीं। गाँधीवाद पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि गाँधीजी ख़ुद गाँधीवाद जैसी चीज़ को स्वीकार नहीं करते थे। गाँधीजी के अनुसार वाद एक निकम्मी चीज़ है। ‘हरिजन’ पत्रिका में गाँधी जी ने अपने लेखों के माध्यम से यह बताया कि सत्य के लिए विचारों का ग्रहण और त्याग ज़रूरी है। वह अपने विचारों को समय के साथ बदलने और अग्रसर होने के हिमायती थे। गाँधी के विचारों का इन्द्रधनुषी रूप अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य ,शरीर, श्रम, भय वर्जन आदि से मिलकर बनता है। हिन्दी साहित्य में दूसरे और तीसरे दशक में गाँधी जी पर ख़ूब लिखा गया। विश्व साहित्य में फ्रांसीसी लेखक रोमा रोला और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाँधी जी के ऊपर लिखा। बीसवीं सदी के गाँधी उन विरल लोगों में से हैं जिनके ऊपर ख़ूब लिखा गया। कविता में माखनलाल चतुर्वेदी, सोहनलाल द्विवेदी, पन्त, दिनकर, नागार्जुन, भवानी प्रसाद मिश्र, हरिवंश राय बच्चन से होते हुए समकालीन कवि अरुण कमल और लीलाधर मंडलोई ने उन पर बेहतरीन कविताएँ लिखी। प्रेमचंद तो गाँधी जी से अपना रिश्ता जोड़ते हुए कहते हैं मैं तो गाँधी का कुदरती चेला हूँ। 'रंगभूमि' का सूरदास गाँधीवादी चेतना से युक्त नायक है। महादेवी वर्मा के गद्य में भी गांधीवाद का प्रभाव है। फणीश्वर नाथ रेणु के ‘मैला आंचल’ और गिरिराज किशोर के ‘पहला गिरमिटिया’ में गाँधी के विचारों का प्रभाव है। आज़ादी के बाद भारत के आंतरिक उपनिवेशन की प्रक्रिया पर कई विचारकों और समाजशास्त्रियों ने गांधी को प्रासंगिक माना। नई सदी में गांधी का विचार नये रूप में विकसित हो रहा है। गाँधी अपने दुख में सब का दुख देखते थे और सत्य के उस रूप की हिमायत करते थे जो समय के अनुकूल हो और सर्वजन हिताय हो।
चौथा व्याख्यान : मार्क्सवाद और हिन्दी साहित्य - वैभव सिंह
वाणी डिजिटल मंच की ओर से आयोजित हिन्दी साहित्य का इतिहास : अध्ययन की नई दृष्टि विचारधारा और विमर्श व्याख्यानमाला का चौथा व्याख्यान चर्चित युवा आलोचक वैभव सिंह ने दिया। "मार्क्सवाद और हिन्दी साहित्य" विषय पर बोलते हुए वैभव जी ने मार्क्सवाद की व्याप्ति के बारे में बताया कि हिन्दी में बीसवीं सदी के दूसरे-तीसरे दशक में मार्क्सवाद का आगमन होता है। मार्क्सवाद ने साहित्य पर दो रूपों में असर डाला। एक ओर साहित्यिक संगठन में इसका स्वरूप दिखाई देता है, दूसरे रचनाकारों और रचनाओं में यह सृजनात्मक रूप से दर्ज होता है। दूसरा रूप ज़्यादा महत्वपूर्ण है। यों मार्क्सवाद को जिन साहित्यकारों ने जीवन संदर्भों के साथ जोड़कर और विकसित दृष्टि के साथ ग्रहण किया उनकी रचनाओं में मार्क्सवाद का सार्थक रूप दिखाई देता है। हिन्दी साहित्य में मार्क्सवाद की उपस्थिति कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना सभी जगह दिखाई देती है । हिन्दी में जिन रचनाकारों के ऊपर मार्क्सवाद का असर सबसे अधिक है उनमें प्रेमचंद, रांगेय राघव, राहुल सांकृत्यायन, यशपाल, मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा का नाम लिया जा सकता है। यों प्रगतिशील कविता और साहित्य में तो मार्क्सवाद है ही लेकिन मार्क्सवाद अपनी जन पक्षधर छवि के साथ प्रयोगवाद, नई कविता और समकालीन कविता में भी दिखाई देता है । यहां तक कि अस्मितामूलक विमर्श में जो जनपक्ष की आवाज है उसका मार्क्सवाद से गहरा रिश्ता है। साहित्य में मार्क्सवाद एक विचारधारा की तरह विकसित हुआ है । समय के साथ परिवर्तित यथार्थ की छवियों के साथ मार्क्सवाद की छवि में भी परिवर्तन आया है। हिन्दी में बहुत से साहित्यकारों ने अपने स्थानीय परिवेश के साथ मार्क्सवाद से अपना रिश्ता कायम किया। यहाँ तक कि उत्तर आधुनिकता जैसे वैचारिक मूल्य में भी मार्क्सवाद की उपस्थिति को देखा जा सकता है। मार्क्सवाद एक साथ स्थानीय और सार्वभौमिक अथवा वैश्विक दोनों के महत्त्व को विकसित करने की बात करता है । साहित्य में उत्तर आधुनिकता को लेकर जो बौद्धिक घोटाला चल रहा है उसके समानान्तर मार्क्सवाद के साहित्यिक टूल्स हमारे साहित्य और समाज को अधिक प्रासंगिक और जन पक्षधर बनाते हैं। मार्क्सवाद के साहित्यालोचन को टेरी ईगल्टन, लुकास और फ्रेडरिक जेमसन जैसे विचारकों ने अधिक ज़मीनी रूप में विकसित किया है यों साहित्य में मार्क्सवाद की अति से भी हमें बचना चाहिए। वह साहित्यकार जो जीवन की गहरी संवेदना के साथ जुड़कर मार्क्सवाद से रिश्ता कायम करता है वह मार्क्सवाद को बेहतर साहित्यिक रूप में रूपांतरित कर पाता है।
वाणी प्रकाशन के बारे में...
वाणी प्रकाशन, ग्रुप 57 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।
वाणी प्रकाशन, ग्रुप भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 25 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो, पोलिश लिटरेरी के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव सम्मान प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउन्सिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।
लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।
3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ में कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।
वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया। व वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया ।
‘किताबों की दुनिया’ में बदलती हुई पाठक वर्ग की भूमिका और दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपनी 51वी वर्षगाँठ पर गैर-लाभकारी उपक्रम वाणी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की। फ़ाउण्डेशन की स्थापना के मूल प्रेरणास्त्रोत सुहृदय साहित्यानुरागी और अध्यापक स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ हैं। स्व. डॉ. प्रेमचन्द्र ‘महेश’ ने वर्ष 1960 में वाणी प्रकाशन की स्थापना की। वाणी फ़ाउण्डेशन का लोगो विख्यात चित्रकार सैयद हैदर रज़ा द्वारा बनाया गया है। मशहूर शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार वाणी फ़ाउण्डेशन के प्रेरणास्रोत हैं।
वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय और विदेशी भाषा साहित्य के बीच व्यावहारिक आदान-प्रदान के लिए एक अभिनव मंच के रूप में सेवा करता है। साथ ही वाणी फ़ाउण्डेशन भारतीय कला, साहित्य तथा बाल-साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोधवृत्तियाँ प्रदान करता है। वाणी फ़ाउण्डेशन का एक प्रमुख दायित्व है दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी बड़ी भाषा हिन्दी को यूनेस्को भाषा सूची में शामिल कराने के लिए विश्व स्तरीय प्रयास करना।
वाणी फ़ाउण्डेशन की ओर से विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार भारतवर्ष के उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम से कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। इस पुरस्कार की आवश्यकता इसलिए विशेष रूप से महसूस की जा रही थी क्योंकि वर्तमान स्थिति में दो भाषाओं के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले की स्थिति बहुत हाशिए पर है। इसका उद्देश्य एक ओर अनुवादकों को भारत के इतिहास के मध्य भाषिक और साहित्यिक सम्बन्धों के आदान-प्रदान की पहचान के लिए प्रेरित करना है, दूसरी ओर, भारत की सशक्त परम्परा को वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ने के लिए प्रेरित करना है।
वाणी फ़ाउण्डेशन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है भारतीय भाषाओं से हिन्दी व अंग्रेजी में श्रेष्ठ अनुवाद का कार्यक्रम। इसके साथ ही इस न्यास के द्वारा प्रतिवर्ष डिस्टिंगविश्ड ट्रांसलेटर अवार्ड भी प्रदान किया जाता है जिसमें मानद पत्र और एक लाख रुपये की राशि अर्पित की जाती हैं। वर्ष 2018 के लिए यह सम्मान प्रतिष्ठित अनुवादक, लेखक, पर्यावरण संरक्षक तेजी ग्रोवर को दिया गया है।
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