भीतर-भीतर जंग !
उबल रहे रिश्ते सभी, भरी मनों में भांप !
ईंटें जीवन की हिली, सांस रही हैं कांप !!
बँटवारे को देखकर, बापू बैठा मौन !
दौलत सारी बांट दी, रखे उसे अब कौन !!
नए दौर में देखिये, नयी चली ये छाप !
बेटा करता फैसले, चुप बैठा है बाप !!
पानी सबका मर गया, रही शर्म ना साथ !
बहू राज घर- घर करें, सास मले बस हाथ !!
कुत्ते बिस्कुट खा रहे, बिल्ली सोती पास !
मात-पिता दोनों कहीं ,करें आश्रम वास !!
चढ़े उम्र की सीढियाँ, हारे बूढ़े पाँव !
आज बुढ़ापे में कहीं, ठौर मिली ना छाँव !!
कैसा युग है आ खड़ा, हुए देख हैरान !
बेटा माँ की लाश को, नहीं रहा पहचान !!
कोख किराये की हुई, नहीं पिता का नाम !
प्यार बिका बाजार में, बिल्कुल सस्ते दाम !!
भाई-भाई से करें, भीतर-भीतर जंग !
अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग !!
रिश्तों नातों का भला, रहा कहाँ अब ख्याल !
मात-पिता को भी दिया, बँटवारे में डाल !!
कैसे सच्चे यार वो, जान सके ना पीर !
वक्त पड़े पर छोड़ते, चलवाते हैं तीर !!
✍ --- डॉo सत्यवान सौरभ,
(Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma IMPACT FACTOR - 8.0
Saturday, September 5, 2020
भीतर-भीतर जंग !
Aksharwarta's PDF
-
मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या | मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई भूमिका : लोक ...
-
सारांश - भारत मेे हजारों वर्षो से जंगलो और पहाड़ी इलाको रहने वाले आदिवासियों की अपनी संस्कृति रीति-रिवाज रहन-सहन के कारण अपनी अलग ही पहचान ...
-
हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत : भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र “निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल” अर्थात अपनी भाषा की प्रगति ही हर...
No comments:
Post a Comment