दिल्ली। गांधी को लेकर, युवाओं के मन में दो तरह की बातें हैं ;एक तो गांधी को लेकर युवाओं के मन में बेचैनी है और दूसरा कई सवाल हैं। साथ ही युवाओं के बीच गांधी को लेकर बहुत ज्यादा सामग्री है, जो इस नए तरह के मीडिया द्वारा रोज परोसी जाती है, और इस तरह से गांधी की अच्छी - बुरी,कमतर या हीन छवि यह मीडिया निर्मित करता है। सुपरिचित अध्येता रमाशंकर सिंह ने उक्त विचार हिन्दू कालेज के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किये। डॉ सिंह ने 'युवाओं के लिए गांधी' विषय पर कहा कि किसी भी देश का क्या स्वरूप होगा यह उस देश के नौजवान की सोच के ऊपर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि किसी देश केराजनीतिक मानस का बहुत ही तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रकटीकरण वहां के युवा मस्तिष्क में होता है इसलिए युवा को हर नई चीज के बारे में बताना चाहिए। किसी भी देश का समाज, संस्कृति और राजनीति का निर्माण युवा करता है। उन्होंने कहा कि यह बात महात्मा गांधी बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि जब भी देश आजाद होगा ,यही युवा लोग देश को आजाद करवाएंगे। इसी संदर्भ में रमाशंकर जी ने गांधीजी के 1916 के बी एच यू के भाषण का उल्लेख करते हुए बताया कि गांधी युवाओं को संबोधित करने से पहले खुद के अंदर के युवा को संबोधित करते हैं । उन्होंने युवावस्था के संकट, द्वंद्व, प्रश्न, भय, रोमांच, सच और झूठ की धुंधली रेखा ;इन सब बातों को बहुत गहरे तरीके से देखा और फिर अपनी आत्मकथा में लिखा। सूत्र रूप में कहें तो गांधी ने भारतीय समाज के सामने आत्मा को अनावृत करने की एक शैली खड़ी की। जब गांधी उन्होंने कहा कि गांधी को को जानने के लिए उनकी आत्मकथा पढ़ना बहुत जरूरी है। इससे भी ज्यादा उनकी आत्मकथा इसलिए पढ़ी जानी चाहिए क्योंकि यह उस समय की युवा मस्तिष्क की सोच समझ को जानने का एक साधन है।यह बताती है कि उपनिवेश के समय भारतीय युवा किस तरह से लड़ रहा था। डॉ रमाशंकर सिंह ने गांधी की युवावस्था के कई प्रसंगों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि गांधी पढ़ाई -लिखाई में बहुत ही औसत विद्यार्थी थे ,इसके सहारे उन्होंने कहा कि जीवन आपकी अंक सूची या रैंकिंग से नहीं बनता बल्कि मूल्यों से बनता है और गांधी का जीवन इन्हीं मूल्यों से बना है। गांधी के यहां भी युवावस्था के विचलन हैं ,परंतु गांधी में एक जनतांत्रिकता है,वो एक उदार मन के साथ दूसरों को सुनने की कोशिश करते हैं । इन्हीं अर्थों में गांधी से युवाओं को सीख लेनी चाहिए। रमाशंकर जी ने आज की शब्दावली में गांधी को एक कूल युवा कहा। गांधी के विदेश में पढ़ने के अनुभवों को साझा करते हुए डॉ सिंह ने बताया कि 1907 में गांधी ने इंडियन ओपिनियन में एक लेख लिखा -अंग्रेजी उदारतावाद; इसमें गांधी ने युवाओं से अहिंसा को मूल्य के रूप में अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि गांधी की यही विशेषता है कि आप उनसे सहमत- असहमत हो सकते हैं, पर आप उन्हें नकार नहीं सकते। डॉ सिंह ने एक नौजवान को उद्धरित करते हुए बताया कि गांधी ने देश के लोगों को अमानुष होने से बचा लिया।
प्रश्नोत्तर सत्र में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि गांधी एक आधुनिक मनुष्य हैं, जैसे आधुनिक मनुष्य में आत्म का बोध होना चाहिए, मनुष्य की स्वतंत्र सत्ता की स्वीकार्यता होनी चाहिए। गांधी के यहां आत्मबोध है ,आत्म निर्णय करने की प्रवृत्ति है ,दूसरों की आवाज को भी गांधी उतना ही महत्त्व देते हैं, जितना खुद की आवाज को।नेहरू और गांधी के विवाद संबंधित प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि नेहरू और गांधी के बीच मतभेद हैं, असहमति या सहमति है, परंतु विरोध नहीं है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने युवाओं के लिए, गांधी को समझने हेतु पुस्तकों की एक लंबी सूची भी बताई। इस सत्र का संयोजन श्रेयस श्रीवास्तव ने किया। इससे पहले प्रारम्भ में विभाग के डॉ नौशाद अली ने लेखक परिचय दिया। आयोजन में विभाग के अध्यापक, विद्यार्थी और शोधार्थियों के साथ अन्य महाविद्यालयों के अध्यापकों ने भी भागरीदारी की। कार्यक्रम के अंत में हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष राहुल कसौधन ने सभी का आभार व्यक्त किया।
प्रखर दीक्षित
महासचिव
हिंदी साहित्य सभा
हिन्दू कालेज, दिल्ली
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