*आजादी के दीवानों का,*
*नाम सुनहरा हो गया।*
*त्याग,बलिदान की मूरत,*
*का रंग गहरा हो गया।*
*जब जब दुश्मन आंख दिखाएं*
*खून खौलने लगता है।*
*भूल के सबकुछ,इन्कलाब फिर,*
*सर बोलने लगता है।*
*मिला है जब से रंग बसंती*
*रंग लहू का गहरा हो गया ।*
*आन वतन की,शान वतन की,*
*हमें जान से प्यारी हैं।*
*जो काम न आए इस वतन के,*
*तो जीना भी गद्दारी है।*
*इंकलाब की शमां से रोशन*
*दिल सहरा-सहरा हो गया ।*
*सरफ़रोशी चिंगारी को ,*
*शोला बनाएं रखना है*
*दुश्मन है गद्दार बहुत,*
*खुदको जगाए रखना है*
*गुज़रे क्षण में मिलें धोखों*
*से,जख्म गहरा हो गया हैं।*
*आजादी की राहों में ,*
*तन मन धन की बारी है।*
*तेरा तुझको अर्पण हैं ,*
*अपनानी समझदारी है।*
*जो सुनके दिलकी,अंजान*
*बने,सच में बहरा हो गया।*
*अनवर हुसैन*
सरवाड़ अजमेर
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