अब तक गज़ल प्रेमी यही गा गा कर काम चला रहे थे कि ‘मंहगी हुई शराब थोड़ी थोड़ी पिया करो।’ अब सुर बदलने पड़ रहे हैं और वे चुपके चुपके गुनगुना रहें हैं - मंहगा हुआ प्याज ..... थोड़ा थोड़ा खाया करो। तबलची तबला खड़का खड़का कर विज्ञापन दे रहे हैं - वाह! प्याज बोलिये जनाब! घरेलू डायलॉग बदल गए हैं। पति अपनी अर्धांगनियों से कह रहे हैं- तुम क्या जानो एक प्याज की कीमत जानू ?
जी डी पी का लिहाज रखते हुए कई भाई लोगों ने नवरात्रों के दौरान भी चिकन और बैंगन का भरता, बिना प्याज के खाया सिर्फ इस आस में कि जैसे श्राद्धों में सोना नीचे आ जाता है उसी तरह प्याज न खाने से उसका रेट भी किसी शेयर की तरह धड़ाम हो जाएगा। परंतु यह हिन्दुस्तान है जनाब जहां के चुनावों के बारे ,बड़े बड़े तिकड़म बाज और चैनल पर चिल्लाने वाले यह नहीं बता सकते कि कौन जीतेगा , कौन हारेगा और महान अर्थशास्त्री यह नहीं बता पाते कि नवरात्र और प्याज के मध्य क्या गठ बंधन है।
कोरोना ने पहले ही आधी जनता को कंगला बना डाला और प्याज ने लाइफ कर दी झींगा लाला। कंगाली में आटा गीला हो जाए तो आटे में और पानी डाल के उस घोल से चिल्ले बनाए जा सकते हैं पर प्याज बिन सब सून। आलू बगैर आप कददू, भिंडी
घिया, तोरी, पनीर वनीर बना सकते है पर प्याज के गठबंधन बिना किसी सब्जी की सरकार नहीं बन सकती।
प्याज आगामी चुनावों में एक आई कैचर स्लोगन बन सकता है। वैक्सीन जब आएगी तब आएगी । नेता यह तो कह ही सकता है - तुम मुझे वोट दो - मैं तुम्हें प्याज दूंगा। अब सेब सस्ता है प्याज उससे कई कदम आगे है। हमारे मित्र बाबू राम लाल टहलते टहलते किसानों के साथ हमदर्दी दिखाने निकल पड़े बस इस आस में कि जब किसान गुस्से में होता है तो अपने उत्पादन क सही रेट पाने और इंसाफ के लिए लड़ने कभी कभी सड़कों पर दूध की नदियां बहा देता है तो कभी टमाटरों से सड़कों के गाल लाल कर देता है। एक बार बाबू राम लाल थैले भर भर भर के टमाटर उठा लाए थे और साल भर टोमोटो सास बेचते रहे । इस बार किसान सड़कांे ओर रेलवे लाइनों पर बिछे तो थे पर प्याज रहित थे। सड़कों को प्याजी रंग से नहीं रंगा। सो बाबू राम लाल ने कृषि बिल पर उनका समर्थन नहीं किया। चुनावी दंगलों में नेता तम्हारी माला पहन सकते हैं।तुम्हारे नाम पर चुनाव जीत या हार सकते हेैं। तुम ही भाग्य विधाता हो। हम विशुद्ध भारतीय हैं। पेट्र्ोल मंहगा होने पर हम गाड़ी चलाना छोड़ थोड़े ही देते हैं। तुम्हारा साथ न छोडंेगे हम!
हे प्याज महाराज ! तुम्ही सब्जियों के अधीश्वर हो। गंध भी तुम - सुगंध भी तुम। तुम्ही आयात हो, तुम्ही निर्यात हो । किचन की आन ,बान शान हो। सारी सब्जियों के अधिनायक हो। सरकार के खेवनहार हो। जब प्याज एक रुपये किलो भी नहीं बिकेगा तो किसान कृषि मंत्री की मंुडी पकडेंगे। जब इसका सेंसेक्स 100 पार कर जाएगा तो जनता तुम्हें दबोचेगी। किसान तुम्हंे जीने नहीं देगा और जनता तुम्हें मरने नहीं देगी।
धन तेरस पर लोग तुम्हें ही सोना समझ कर खरीदेंगे । दीवाली पर ड्र्ाई फू्रट की जगह तुम्हारा ही आदान प्रदान होगा । तुम भी कोरोना की तरह समाज में आमूल चूल परिवर्तन और क्रांति लाने मं पूर्ण सक्षम हो ।
- - मदन गुप्ता सपाटू
(Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma IMPACT FACTOR - 8.0
Sunday, October 25, 2020
मंहगा हुआ प्याज ..... थोड़ा थोड़ा खाया करो। (हास्य व्यंग्य)
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