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Sunday, October 25, 2020

पहचान (कहानी)

उस रोज़ भी मैं बाकी दिनों की तरह वहाँ से गुज़र रहा था।पर आज वहाँ कुछ भीड़ लगी थी।मैंने एक दफा चलते-चलते ही झाँक के देखा पर रुका नहीं। आगे बढ़ा तो कानों में किसी की आवाज़ आयी, “बेचारा जवानी में ही बेमौत मारा गया।लगता है कोई अपनानहीं है इस बेचारे का। अब तक कोई लेने भी नहीं आया।दो घंटे से यहाँ लाश पड़ी है। अब पुलिस आएगी तो लेकर जाएगी”।


एक दफा मन हुआ कि देखूं कौन है पर देर हो रही थी सो अपने रास्ते निकल गया। दफ़्तर पहुँच के काम में लग गया। दिन भर काम करके बुरी तरह थक गया था। सीधे घर के लिए निकल गया। घर पहुंचा तो बच्चे शोर मचा रहे थे। मुझे देखते ही पास आये और गले लग गए। थोड़ी देर में हाथ मुंह धो कर तैयार हुआ। तब तक पत्नी शाम की चाय और बिसकिट्स लेकर आ गयी। मैं चाय बिसकिट्स खाते हुए टीवी देखने लगा।


हिंदुस्तान में एक आम हिंदुस्तानी की यही दिनचर्या है। सुबह उठो तैयार हो कर नाश्ता करो फिर दफ़्तर के लिए निकल जाओ। शाम तक वापस आओ। इतवार को छुट्टी मिली तो बीवी बच्चों के साथ बाहर घूम आओ।बस यहीं रोज़ की कहानी है। पर मैं अपनी नौकरी और अपने छोटे से परिवार में बहुत खुश हूं। अच्छी सी एक नौकरी है। मेरा और घर गृहस्थी संभालने वाली एक सुशील पत्नी है, एक पाँच वर्ष की बेटी और दो वर्ष का बेटा। एक हँसता-खेलता परिवार।


चैनल बदलते हुए टीवी देख रहा था। कुछ खास प्रोग्राम आ नहीं रह था। तो न्यूज़ लगा लिया। न्यूज़ आ रही थी –“फेमस फ़िल्म लेखक समीर की घर के पास सड़क दुर्घटना में मौत”......न्यूज़ देखते ही चक्कर आने लगा। हाथ से रिमोट छूट के ज़मीन पर गिर पड़ा। और मैं वही बेहोश हो कर गिर गया। थोड़ी देर में होश आया तो देखा आपने कमरे में पलंग पर लेटा हूं। बीवी सिर की मालिश कर रही है और दोनों बच्चे सहमे से पास में खड़े थे। न्यूज़ की याद आयी तो आंख भर आयी। तुरंत उठ बैठा और अपनी पत्नी से रोते हुए बोला, “अंजना, समीर….अपना समीर……..”बात भी पूरी नहीं कर पाया। रोते-रोते हिचकिया बंधने लगी। समीर कई महीनों के बाद घर आने वाला था। वो चुपचाप आ कर हमें चौकना चाहता था पर रास्ते में एक्सीडेंट होने के कारण वो हमें सदा के लिए छोड़ कर चला गया। और मैं मूर्ख पास से गुजर कर भी उसे दिन भर अस्पताल में छोड़ कर आनंद से दिन व्यतीत कर रहा था। हाँ सही समझाआपने, वो लाश समीर की ही थी जिसके बारे में लोग सुबह को बात कर रहे थे।


अंजना, “ (रोते हुए) मुझे पता है। हम अभी समीर को हॉस्पिटल से लेने जाएंगे”।


दोनों बच्चों को परोसी के यहाँ छोड़ कर हम दोनों कार से अस्पताल की ओर निकल पड़े। रास्ते में मुझे सारी बातें याद आने लगी और मैं यादों की गहराई में खोने लगा।


पाँच साल पहले………


समीर, “ भईया मैं मुम्बई जाना चाहता हूं। मुझे अपनी एक पहचान बनानी है। इसके लिए मुझे इस छोटे से शहर से बाहर निकलना ही पड़ेगा। मैं अपनी लिखी कहानी पर फ़िल्म बनते हुए देखना चाहता हूं। जब भी बाहर निकलूं लोग कहेंगे कि ये देखो ये तो प्रसिद्ध फ़िल्म लेखक समीर है। और मुझसे ऑटोग्राफ लेने के लिए भीड़ लग जायेगी”।


मैं, “ ठीक है भाई, जाओ जहां भी जाना है। अपनी पहचान बनाओ, एक नाम बनाओ। हम तो ठहरे आम आदमी कमसे कम तुम अपने सपने को ज़रूर हासिल करो। मैं कल ही टिकट का इंतज़ाम करता हूँ”।


समीर, “थैंक यू भैया”, बोल कर गले लग गया।


समीर मेरा छोटा भाई, बचपन से ही लिखने का शौक है इसको। कई प्रतियोगिता जीती और अब फ़िल्म लेखक बनना चाहता है। मैं समीर को बहुत प्यार करता हूं और उसकी हर एक इच्छा पूरी करना चाहता हूं।अगले सप्ताह मैं खुद उसे मुम्बई छोड़ आया। उसके रहने खाने की सारी व्यवस्था कर दी थी। अब उसकी अपनी पहचान उसे खुद बनानी थी। समय बीतता गया। दो वर्षों में ही वह प्रसिद्ध फ़िल्म लेखक समीर बन गया। लोग हमारे घर आते जब भी समीर मुम्बई से आता। भीड़ उमड़ पड़ती समीर को देखने को। किसी अभिनेता से कम प्रसिद्ध नहीं था वह। पिछले पाँच वर्षों में वह अपनी एक पहचान बना चुका है और करीब 20 फ़िल्मों को लिख चुका है जो कि पर्दे पर बहुत सफल भी रही।


“पिप्प……पी..पिप्प……..”हॉर्न की आवाज़ से मैं वर्तमान में लौट आया। देखा हम अस्पताल पहुंचने वाले थे।अस्पताल के बाहर बहुत भीड़ जमा थी। सब समीर से आखिरी बार मिलने आये थे। वहाँ मेन गेट पे ही दो पुलिस वाले मिले। वो हमें सीधा अंदर ले गए जहां एक बेड पर समीर की बेजान लाश पड़ी थी। सारी औपचारिकता पूरी करके हम समीर को ले कर घर आ गए। रात हो चुकी थी सो दाह संस्कार कल किया जाना था। उस रात आंखों में नींद नहीं थी। समीर की लाश के पास ही बैठे रात कट गयी।


गया के उस छोटे से शमशान घाट पर उस दिन सैकड़ों लोग आए थे उसकी विदाई के लिए। बड़े-बड़े अभिनेता, अभिनेत्री, फिल्मनिर्देशक और शहर के बच्चे से लेकर बूढ़े तक। सभी की आंखें भरी हुई थी। मैंने समीर के शव को अग्नि दी। शाम को लौटते समय सोच रहा था समीर ने पाँच वर्षों में अपनी छाप छोड़ दी। हर कोई उसे पहचानता है और उसकी वजह से हमें भी।


आज समीर की मौत को 3 महीने हो गए हैं। हम मुम्बई आये हुए हैं। समीर को “श्रेष्ठ लेखक” का पुरस्कार मिल रहा है। उसे लेने के लिए हमें बुलाया गया है।पुरस्कार देते समय मुझसे अनुरोध किया गया कि मैं समीर के बारे में कुछ बताऊं। मैंने माइक लिया और बोलना शुरू किया, “ समीर..मेरा छोटा भाई, अपने नाम की तरह ही शांत और हवा की तरह ही दृढ़ संकल्प का व्यक्ति था। उसे अपनी पहचान बनानी थी और उसने बनाई भी। कहते हैं जो अच्छे लोग होते हैं उन्हें भगवान जल्दी ही अपने पास बुला लेते हैं। उसी तरह समीर को भी जल्दी ही जाना पड़ा। समीर की लिखी कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगाजो समीर ने दसवीं कक्षा में लिखा था –


“मैं,तुम्हारी पहचान,तुम्हें अपनों से, इस दुनिया से जोड़े रखूंगा।


 भले ही तुम चले जाओ,  मैं तुम्हारी याद को बनाये रखूंगा।


 जीवन-मरण तो प्रकृति के नियम है,इसे कौन रोक पाया है?


 पर इस नश्वर संसार में,मैं तुम्हें अमर बनाये रखूंगा”…………..”।


बहुत देर तक तालियाँ बजती रही जब मैंने बोलना बंद किया। जब पुरस्कार ले कर लौट रहा था तो ऐसा लगा, भीड़ में समीर खड़ा मुस्करा रहा है। उसे देख आँखें भर आयी और मैं भी मुस्करा दिया।


 


 


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