लघुकथा
शीर्षक-छठ व्रत
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पूरा बाज़ार छठमय लग रहा था|सूप ,फल ,छठ पूजा के सामान से गुलज़ार था |’
लौकी कैसे दिए बाबू?
मलकिनी ,’अस्सी रूपया ‘पीस|
क्या?तारा जी चौंक गई|
कुछ कम करो ,आदतन तारा जी ने ,कम कराना चाहा |
छोड़ो ले लो ,’यही तो समय है इनका कमाने का ...जीवन जी ,ने पत्नी को घूरते हुए कहा।
तारा जी ,बच्चों के आने से पहले सारी ख़रीददारी कर लेना चाह रही थीं ।जीवन जी ,रोज़ -रोज़ बाज़ार के चक्कर लगा कर परेशान थे ,पर बच्चों का मामला था तो चुपचाप तारा (श्रीमती )का पूरा साथ दे रहे थे|कपड़े भी ब्रैन्डेड ख़रीदे जा रहे थे बच्चों के पसंद का विशेष ख़्याल रखा जा रहा था।
प्रतिवर्ष बेटे और बहू छठ पर्व पर छुट्टी लेकर अवश्य आते |आज नहाय खाए है |छठ पर्व का पहला दिन -कद्दू भात ,इस दिन शुद्धता से बिना लहसुन प्याज़ वाले भोजन बनाया जाता है| ‘सुबह छोटा बेटा और बहू पुणे से आए ।शादी के बाद उनका पहला छठ पर्व है ,इसलिए दोनों विशेष उत्साहित हैं।बड़ा बेटा और बहू और छह साल का पोता दोपहर एक बजे आने वाले थे ,दिल्ली से |सब लोग मिलकर उन्हें लेने एयरपोर्ट गए।
तारा जी ,नहीं गई ।गेट पर इंतज़ार कर रही थी |गाड़ी से उतरते ही बड़ा बेटा जो पुलिस में आई जी है माँ को दण्डवत प्रणाम कर गले से लगा लिया |
इस बार तारा जी की तबीयत ठीक नहीं थी ,फिर भी छठ व्रत करने की और गंगा घाट पर जाने की ज़िद पर अड़ी थी|सारे बच्चे मिलकर बहुत समझाए कि -“व्रत नहीं रखना है |”बड़ी बहू ने कहा ‘मम्मी जी ,आप के बदले मैं छठ व्रत रखूँगी ‘और घर के आँगन में ही पानी की टंकी में गंगाजल डालकर पूजा करूँगी ‘|बहू और बच्चों के आगे तारा जी ने हथियार डाल दिये ।
शाम को दिनकर को अर्घ्य देते समय तारा जी के आँखों से ख़ुशी के दो अश्रु बूँद जल में टपक पड़े और प्रभु से कहा -“मुझे ऐसे संस्कारवान बच्चे छठी मइया के कृपा से ही तो मिले हैं |”पचास साल तक अपने मन से ज़िन्दगी जिया है अब समय है बच्चों की इच्छानुसार जीने की ,”जिसमें सुकून और अपनापन दोनों है।”
सुबह पूजा के लिए; फूल तोड़ते वक्त तारा जी गर्व से अपने सुव्यवस्थित फूलों से भरे बगिया को सींचना न भूली साथ ही मधुर गीत गुनगुना रही थी ‘-“घोड़ा चढ़न के बेटा मांगीला गोड़वा लगन के पतोह हे !छठी माई...सुन ली विनती हमार|”...
सविता गुप्ता-राँची झारखंड
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