हास्य व्यंग्य-
-कोरोना है कि मानता नहीं- मदन गुप्ता सपाटू
- बुरा हो जी इस कलमुहे कोरोना का। दो साल से होली नहीं खेलने दे रहा। होली पर दूरियां मिटाई जाती हैं इसने उल्टा बढ़वा दी। इसकी मेहरबानी से मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी । हाय ! हाय !ये मजबूरी! इस बार होली पर दो गज की दूरी से ,हमने बलम पिचकारी जो उनको मारी.....पंगा पै गया। जब हम अपनी ‘ उनको’ जल्द बाजी में रंग लगा आए तो बाद में पता चला कि जिस मास्कधारिका को रंग आए ‘वो’ , वो नहीं , उसकी मम्मी थी। हमें तो इस कोरोना के मार्च 20 टू मार्च 21 के इनडायरेक्ट इफैक्ट का अब पता चला कि कोरोना में बाबे के काढ़े ने कैसे काया कल्प करके 50 की मम्मी को 25 की टम्मी बना दिया।
कभी कभी हमारे दिल में भी ये ख़्याल आता है कि यह कोराना ही है या किसी दिलजले का दिल जो आज भी मानता ही नहीं । हर रोज किसी न किसी, नए रंग में रंग जाता है। कभी मन की लहर बन कर दूसरी तीसरी लहर की तरह लहराने लगता है। बड़ा बहरुपिया है। कुछ दिनों बाद अपना सर नेम ही बदल लेता है। हर हफ्ते टीवी पर इसका नया नाम सुनाई देता है जो अगले हफ्ते, पिछला वाला भूल जाता है। जनता का मूड देखकर वायरस अपना वेरियंट बदल लेता है।कभी दूसरी लहर बन जाता है तो कभी तीसरी । और चौथी बनकर चौथा करवाने पर तुल गया है। वैसे हमारे बहुत से पंजाबी और बंगाली भाईयों का तो आज भी यही मानना है कि कोरोना हुंदा ही नहीं । ये तो सरकारी स्टंट है। चुनाव जीतने का । अगर होता तो दिल्ली बार्डर पर क्यों नहीं दिखा ? नन्दीग्राम क्यों नहीं गया ?
जै हो कोराना बाबा। तुसीं ग्रेट नहीं, ग्रेटेस्ट हो, इतिहास में बिल्कुल लेटेस्ट हो।
तुम 16 कला संपूर्ण हो । कितने रंग बदलते हो ? 2019 में कुछ थे । इसीलिए तुम्हारे अभिभावकों ने तुम्हारा प्याला सा नाम कोविड- 19 रख दिया। जैसे बीमारी न हो कार का मॉडल हो। मैच की तरह तुम टवेंटी - टवेंटी कहलाने लगे। बड़े नटखट हो। 2021 में नया रुप धारण कर लिया। तारक मेहता का उल्टा चश्मा बन गए। बस चले जा रहे हो ...चले ही जा रहे हो । हर हफ्ते एपीसोड में नया टविस्ट आ जाता है। बड़ी पालिटिक्स खेल रहे हो। पंजाबी में बोले तो - साडडे् नाल वडड्ा वितकरा कर रहे हो। जहां तुम्हारी पसंद की सरकार नहीं , वहां तबाही मचा रहे हो। सरकारें कन्फयूज्ड हैं कि लॉक डाउन का पंगा दोबारा लिया जाए या नहीं। या यूं ही धमका धुमका के काम चल जावेगा! पंजाबी पूछ रहें है- अस्सी कोई तेरे मांह पुटटे ने ?
जहां भीड़ भड़क्का है, रैलियां है, वहां जाने से तुम्हें डर लगता है। पिस्सू पड़ जाते हैं। जो अच्छे भले लोग सोसायटियों, साफ सुथरी जगह आराम से बैठै हैं , वहां तुम उन्हें सीधे अस्पताल पहुंचा रहे हो । वैक्सीन लगवाने के बाद भी तुम गुर्रा रहे हो। कहीं ऑड - इवन का फार्मूला अपना रहे हो । संडे को जाउंगा...मंडे को नहीं। किसान रैली और चुनाव रैलियों से डर लगता है?।
खैर ! तुम्हारे कारण कई पुराने पंसारियों , पुराने वैद्यों , नए कैमिस्टों की बंद किस्मतों के ताले खटाक से खुल गए। कइयों के फटाक से बंद हो गए। पिक्चर हाल वाले अपनी बेहाली पर आज तक रो रहे हैं। बड़ी कंपनियों के हाथ अलादीन चिराग छोड़ कर खुद खेलने लगा है। वैक्सीन वैक्सीन खेल रहा है। जनता को वैक्सीन, कोवी शील्ड , फाईजर वाली, तेरी वैक्सीन - मेरी वाली ,भाजपा वाली, सजपा वाली , त्रिमूल वाली , हरी वाली या लाल वाली , किसकी वाली खेल रही हैं। मल्टी नेशनल कंपनियों को वर्क फ्राम होम का फामूर्ला हाथ लग गया है। हींग लगे न फटकड़ी रंग भी चोखा। घर ही दफ्तर , किराया कोई नहीं ।
यह अलग बात है कि बच्चे एंज्वाय कर रहे हैं। मां बाप खुश हैं कि बरखुरदार के पहले 33 परसेंट आते थे अब 93 परसेंट आ रहे हैं। लफंडर से लंफडर भी मेरिट में आ रहे हैं। वो तो दुआ कर रहे हैं- कोरोना बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ। मास्क और सेनेटाइजर वाले पार्टटाइम भैया भी यही चाहते हैं कि जुगाड़ चलता रहे।
कोरोना तुम तो बाला जी के सीरियलों से भी आगे हो गए जिसकी कहानी वही रहती हेै पर हर हफ्ते एक टविस्ट आ जाता है। हर हफ्ते तुम्हारा भी नाम बदल जाता है पर काम वही रहता है।
हां ! तुम्हारी कृपा से हर रोज फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया, अखबारों वगैरा में जाने अनजाने , कभी कभी पहचाने लोग वैक्सीन लगवाते हुए फोटो खिंचवाना नहीं भूलते। इतने गर्व से फोटो खिंचवाते हैं मानो राष्ट्र्पति उन्हें अशोका हाल में सम्मानित कर रहे हों। कई तो पूछ रहें हैं भइया फोटू खिंचवाना भूल गए ....वैक्सीन असर तो करेगी न ? बेशक आधार कार्ड ले जाना भूल जाएं पर एक अदद कैमरा मैन या मोबाइल मैन को साथ ले जाना नहीं भूलते।
बहरहाल तुम कितनी जिंदगियों का लॉकडाउन कर चुके हो। पूरी दुनिया करोड़ों के नीचे आ गई है। कब अपना मुंह काला करवाओगे ? कोरोना तुम कब जाओगे ?
-- मदन गुप्ता सपाटू, मो- 9815619620
No comments:
Post a Comment