आंसू कुछ कहती है...!!![बेटी की महत्ता पर एक कविता]
बेटी क्यों नैनों से,नीर बहाती तुम।
हम सब को दुःख,
क्यों पहुंचाती तुम।
नैनो से बहती नीर नहीं,
यह बहती हैं तकदीर मेरी।
बेटी क्यों नैनों से नीर बहाती तुम ?
हरसब को दुःख पहुचाती तुम।
तुम तो अम्मा की लाडो हो,
घर में सबकी प्यारी हो।
फिर दुःखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनों से नीर बहाती तुम ?
मां की कोख की लाज हो तुम,
मेरी हम सब की हमराज हो तुम।
फिर दुखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनों से नीर बहाती तुम ?
वसुंधरा की तु है एक अविरल धार,
सब डूबते दिखते बारम्बार।
घर की रखवाली करती तुम,
मां की बोझ उठाती तुम।
हम सब की है तु एक शान,
तुम पर है हम सब को गुमान।
फिर दुखी क्यों कर जाती तुम !
बेटी क्यों नैनों से नीर बहाती तुम ?
सम्बन्धों की तु अविरल धार है,
अम्मा की तू खेवनहार है,
मां हरपल कहती -सुनती है तुम्हें ,
तुमको सब बातें बतलाती रहती है तुम्हें,
लगती तुमको अच्छी- बुरी,
सुन जाती चाहे दिल को लगे बुरी ,
फिर दुखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनों से नीर बहाती तुम ?
तु जीत की है एक पहचान,
घर में दिखती लगती महान।
आशा की धार में तु ही तु,
खेवनहार भी तु ही तु,
हौसले की है तु एक मजबूत डोर,
तुझसे दिखती सब कमजोर।
फिर दुःखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनो से नीर बहाती तुम ?
कोमलता की है तु एक श्रंगार,
जीवन में दिखलाती है प्यार।
शीतलता की है एक श्रेष्ठ प्रतीक,
बनती दिखती एक मधुर संगीत।
फिर दुखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनो से नीर बहाती तुम ?
मां की पीड़ा की है एक आस,
घर में सबको है इसका एहसास।
मनप्रीत की है तु एक अनमोल प्यार,
जो हरपल देती एक मजबूत पुकार।
घर आंगन में पाकर तुमको,
घर लगती हरपल ख़ूब गुलजार।
फिर दुःखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनो से नीर बहाती तुम ?
घर- आंगन की मडवा की है,
तु है एक उन्नत पहचान।
बेटी बीन सब सुना- सुना है,
बेटी बीन नहीं है ,
मिटी घर की पहचान।
डोली बेटी की,
जिस घर से उठती नहीं।
घर आंगन उसकी,
महकती व धरकती नहीं।
मा -बाप की तु है,
एक सुंदर खोज।
हर पल उच्श्रृंखल बनी रहती ,
खुशियां लाती हरपल हररोज।
फिर दुःखी क्यों कर जाती तुम,
बेटी क्यों नैनो से नीर बहाती तुम ?
डॉ ०अशोक, पटना, बिहार।
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