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Sunday, April 18, 2021

कविता.. किसान पिता..

 कविता..

 किसान पिता.. 
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पिता, किसान थें
वे फसल, को ही ओढते
और, बिछाते थें..!! 

बहुत कम- पढें लिखे
थें पिता, लेकिन गणित
में बहुत ही निपुण हो
 चलें थें

या, यों कह लें
कि कर्ज ने पिता 
को गणित में निपुण 
बना दिया था...!! 

वे रबी की बुआई
में, टीन बनना चाहते
घर, के छप्पर
के  लिए..!! 

या  फिर, कभी तंबू
या , तिरपाल, वो 
हर हाल में घर को 
भींगनें से बचाना चाहते
थें.. !! 

घर, की दीवारें, 
मिट्टी की थीं, वे दरकतीं
तो पिता कहीं भीतर से
दरक जाते..!! 

खरीफ में सोचते
रबी में में कर्ज चुकायेंगे
रबी में सोचते की खरीफ
में.. !! 

इस, बीच, पिता खरीफ
और रबी होकर रह जाते... ..!! 

उनके सपने, में, बीज, होते
खाद, होता..... !! 

कभी, सोते से जागते
तो, पानी - पानी चिल्लाते..!! 

पानी , पीने के लिए नहीं ..!! 
खेतों के लिए.. !! 
उनके सपने, पानी पे बनते
और, पानी पर टूटते..  !! 

पानी की ही तरह उनकी
हसरतें  भी  क्षणभंगुर होतीं.... !! 

उनके सपने में, ट्यूबल होता, 
अपना  ट्रैक्टर होता.. !! 
दूर- दूर तक खडी़ 
मजबूत लहलहाती हुई
फसलें  होतीं... !!

 बीज और खाद, के दाम
बढते तो पिता को खाना 
महीनों  
अरुचिकर लगता.. !!

खाद,  और बीज के अलावे, 
पिता और भी चिंताओं से 
जूझते..!! 

बरसात में जब, बाढ़
आती, वो, गांव के सबसे 
ऊंचें, टीले पर चढ जातें.. 

वहां से वो देखते पूरा 
पानी से भरा हुआ गांव ..!! 
 माल-मवेशी
रसद, पहुंचाने, आये हैलिकॉप्टर
और सेना के जवान..!! 

उनको, उनका पूरा 
गांव , डूबा हुआ दिखता.. !! 

और, वे भी डूबने लगते
अपने गांव और, परिवार 
की चिंताओं में

बन्नो ताड़ की तरह 
लंबी होती जा रही थी.. 
उसके हाथ पीले
करने हैं....!! 

भाई, शहर में 
 रहकर पढताहै, उसको
 भी पैसे भेजने हैं..!! 

बहुत, ही अचरज की बात है
कि, वे जो कुछ करते
अपने लिए नहीं करते..!!

लेकिन, वे दिनों- दिन
घुलते जातें. घर को लेकर
बर्फ, की तरह पानी में .. 

और,  बर्फ की तरह घर 
की चिंता में एक दिन.. 
ठंढे होकर रह गये पिता ... !! 

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सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी 
मेघदूत मार्केट फुसरो

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